चमत्कार। 90 साल की दादी की ढाई घंटे बाद लौटी सांसें, फिर जो हुआ उसने सबको चौंका दिया।

चमत्कार। 90 साल की दादी की ढाई घंटे बाद लौटी सांसें, फिर जो हुआ उसने सबको चौंका दिया।

झांसी के पास एक गांव से चौंकाने वाली और चमत्कारी घटना सामने आई है, जिसने विज्ञान, विश्वास और जीवन-मृत्यु के रहस्यों पर फिर से चर्चा छेड़ दी है। 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला, जिन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था, वे ढाई घंटे बाद अचानक जीवित हो उठीं। यह घटना न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे गांव और सोशल मीडिया पर भी कौतूहल और आश्चर्य का विषय बन गई है।

अंतिम संस्कार की हो चुकी थी तैयारी

यह घटना झांसी जिले के पास स्थित एक छोटे से गांव में घटी, जहां 90 साल की महिला की अचानक तबीयत बिगड़ गई थी। परिजनों ने उन्हें स्थानीय डॉक्टर को दिखाया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। परिवार पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। सदमे में डूबा परिवार रोते-बिलखते घर लौटा और शव को अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए रख दिया।

गांव में ढोल-नगाड़ों की आवाजें गूंज रही थीं, रिश्तेदारों को बुलाया जा चुका था और लकड़ी व अन्य सामग्री इकट्ठा कर दी गई थी। अंतिम स्नान की प्रक्रिया के दौरान अचानक एक सदस्य की नजर महिला की उंगलियों पर पड़ी, जो हल्की सी हिल रही थीं। पहले तो सभी ने इसे भ्रम समझा, लेकिन जब उन्होंने पास जाकर देखा, तो बुजुर्ग महिला की सांसें चलने लगी थीं।

सभी हुए हैरान, डॉक्टर ने कहा “रेयर केस”

बुजुर्ग महिला की सांसें लौटते ही परिवार ने फौरन स्थानीय डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने पुष्टि की कि महिला जीवित हैं और उनका पल्स धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह “कैटाटोनिक स्टेट” या कम रिस्पॉन्सिव हाइपोथर्मिया जैसी स्थितियों का नतीजा हो सकता है, जिसमें व्यक्ति के शरीर के सभी लक्षण मृत जैसे प्रतीत होते हैं, लेकिन भीतर जीवन की सूक्ष्म लहरें अभी भी चल रही होती हैं।

झांसी मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं, लेकिन असंभव नहीं। हाइपोथर्मिया, लो पल्स रेट या न्यूरोलॉजिकल फ्रीज़ जैसी स्थितियों में शरीर की क्रियाएं इतनी धीमी हो जाती हैं कि सामान्य तौर पर जीवन के चिह्न दिखाई नहीं देते।”

वैज्ञानिक पहलू: मौत हमेशा तात्कालिक नहीं होती

विज्ञान के अनुसार, मृत्यु की प्रक्रिया कई बार एक क्षणिक घटना नहीं, बल्कि एक क्रमिक प्रक्रिया होती है। क्लिनिकल डेथ यानी शारीरिक संकेतों का रुकना, और बायोलॉजिकल डेथ यानी कोशिकाओं का पूरी तरह बंद हो जाना — इन दोनों में फर्क होता है। कुछ मामलों में, ऑक्सीजन की कमी के बावजूद मस्तिष्क की गतिविधि सीमित रूप से चलती रहती है। ऐसे में अगर समय रहते ऑक्सीजन और रक्तसंचार बहाल हो जाए, तो व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है।

यह घटना इस धारणा को चुनौती देती है कि अगर दिल की धड़कन बंद हो जाए और सांसें न चलें, तो व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है। अब आधुनिक चिकित्सा में ब्रेन-डेड, कोमा और वेजिटेटिव स्टेट जैसे कई तकनीकी शब्द हैं, जो मृत्यु और जीवन के बीच की उस ‘ग्रे जोन’ को परिभाषित करते हैं।

सामाजिक और धार्मिक प्रभाव

जहां यह घटना चिकित्सा विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर रही है, वहीं गांव और आसपास के क्षेत्रों में इसे चमत्कार माना जा रहा है। कई ग्रामीण इसे देवी का आशीर्वाद और दादी की “अकाल मृत्यु से वापसी” मान रहे हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है और कई लोग दादी से मिलने आ रहे हैं।

इस प्रकार की घटनाएं अक्सर धार्मिक विश्वासों को और प्रबल कर देती हैं। कुछ लोग इसे पुनर्जन्म की निशानी तो कुछ ‘ईश्वर की इच्छा’ बताते हैं। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण इन घटनाओं को शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं से जोड़ता है, फिर भी जनमानस में इसका भावनात्मक असर गहरा होता है।

परिवार की प्रतिक्रिया

परिवार वालों के लिए यह किसी पुनर्जन्म से कम नहीं है। दादी के बेटे ने भावुक होते हुए कहा, “हम तो मान बैठे थे कि अब मां नहीं रहीं। उनकी देह को नहलाया जा रहा था, सब अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्होंने सांस ली। जैसे कलेजे में फिर से जान आ गई हो।”

बुजुर्ग महिला की हालत अब सामान्य बताई जा रही है और वे होश में हैं। परिवार ने फिलहाल किसी भी मेडिकल कॉलेज में उन्हें रेफर नहीं किया, लेकिन चिकित्सकों की निगरानी में रखा गया है।

क्या कहती है मेडिकल रिसर्च?

मेडिकल इतिहास में ऐसे कुछ दुर्लभ मामले दर्ज किए गए हैं जिन्हें “लाजर सिंड्रोम” (Lazarus Syndrome) कहा जाता है — यानी CPR बंद होने के कुछ मिनटों या घंटों बाद मरीज में स्वतः जीवन संकेत लौट आना। इसका नाम बाइबिल में वर्णित ‘लाजर’ नामक व्यक्ति पर रखा गया है, जिसे यीशु मसीह ने मृत घोषित होने के चार दिन बाद जीवित किया था।

दुनिया भर में लाजर सिंड्रोम के करीब 40 केस डॉक्यूमेंटेड हैं, हालांकि इसकी वजहें अब तक स्पष्ट नहीं हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे आर्टेरियल प्रेशर में रुकावट और फिर अचानक बहाली से जोड़ते हैं।

झांसी की यह घटना एक बार फिर जीवन और मृत्यु की सीमाओं पर सवाल खड़ा करती है। यह न केवल चिकित्सा विज्ञान के लिए एक जटिल केस है, बल्कि आम जनता के लिए आस्था और उम्मीद की एक नई मिसाल भी। दादी की यह “वापसी” सिर्फ एक जीवन नहीं, बल्कि पूरे परिवार की खुशियों को दोबारा जिंदा कर गई।

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