
नवरात्रि का पर्व भारत में आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दौरान लोग मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं और नौ दिनों तक व्रत रखते हैं।
व्रत रखना केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसका शरीर और दिमाग दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार उपवास हमारे शरीर को अंदर से शुद्ध करने का काम करता है। यही कारण है कि नवरात्रि जैसे पर्व पर व्रत को एक प्रकार के डिटॉक्स के रूप में भी देखा जाता है।
आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि जब हम व्रत रखते हैं तो पाचन तंत्र को आराम मिलता है। रोजाना भारी भोजन करने से जो अतिरिक्त विषाक्त तत्व (toxins) शरीर में जमा हो जाते हैं, वे धीरे-धीरे बाहर निकलने लगते हैं। इससे शरीर हल्का महसूस करता है और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है। व्रत के दौरान फल, दूध, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा और हल्का भोजन करने से शरीर को जरूरी पोषक तत्व भी मिलते रहते हैं, जिससे कमजोरी नहीं होती।
व्रत केवल शारीरिक लाभ ही नहीं देता बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है। उपवास के दौरान मन को नियंत्रित करने और सकारात्मक सोच विकसित करने का अवसर मिलता है। ध्यान और प्रार्थना से तनाव कम होता है और दिमाग ज्यादा एकाग्र होता है। आयुर्वेद के अनुसार, व्रत करने से शरीर की अग्नि यानी पाचन शक्ति मजबूत होती है और यह शरीर को बीमारियों से बचाने में मदद करती है।
नवरात्रि व्रत को आधुनिक जीवनशैली में एक नेचुरल डिटॉक्स माना जा सकता है। यह न केवल पाचन को सुधारता है बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।
यह जानकारी आयुर्वेद विशेषज्ञों के सामान्य विचारों पर आधारित है। किसी भी प्रकार का उपवास शुरू करने से पहले अपनी स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार डॉक्टर या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।