
रांची।
झारखंड में नक्सल हिंसा ने एक बार फिर से अपने खौफनाक चेहरे को उजागर कर दिया है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्षों में 837 आम नागरिकों की जान नक्सली हिंसा में चली गई। इनमें अधिकांश घटनाएं मुखबिरी (सूचना देने) और लेवी वसूली को लेकर हुईं। यह आंकड़े राज्य में नक्सली आतंक की जड़ें और उनके खतरनाक प्रभाव को दर्शाते हैं।
मुख्य वजह: मुखबिरी और लेवी वसूली
झारखंड के कई जिलों में नक्सली संगठन लंबे समय से लेवी (जबरन वसूली) और खनन व ठेकेदारी में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए लोगों को निशाना बनाते रहे हैं।
मुखबिरी के शक में ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया गया।
ठेकेदारों, व्यापारी वर्ग और यहां तक कि छोटे व्यवसायियों से भी लेवी मांगी जाती रही।
जिन्होंने विरोध किया, उन्हें गोलियों से भून दिया गया या अपहरण कर हत्या कर दी गई।

कौन-कौन से जिले सबसे ज्यादा प्रभावित?

कौन-कौन से जिले सबसे ज्यादा प्रभावित?
रिपोर्ट के अनुसार, पलामू, चतरा, लातेहार, गढ़वा, खूंटी, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले नक्सली हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित रहे।
पलामू और लातेहार में लेवी को लेकर सर्वाधिक हत्याएं हुईं।
खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम में मुखबिरी के शक में ग्रामीणों को जान गंवानी पड़ी।
सरकार और सुरक्षा बलों की पहल
राज्य सरकार ने नक्सल हिंसा को खत्म करने के लिए कई पहल की हैं:
1. सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई गई।
2. नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।
3. आत्मसमर्पण नीति को बढ़ावा देकर कई नक्सली मुख्यधारा में लौटे।
स्थानीय लोगों का दर्द
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि नक्सली संगठनों का आतंक उनके जीवन का सबसे बड़ा डर है। कई परिवारों ने अपने अपनों को खोया है, जिनका अपराध सिर्फ इतना था कि उन्होंने नक्सलियों की मांगें पूरी नहीं कीं या पुलिस को सूचना दे दी।
भविष्य की राह: शांति और विकास
विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए सिर्फ सुरक्षा कार्रवाई ही नहीं बल्कि:
रोज़गार के अवसर बढ़ाना,
युवाओं को शिक्षा और कौशल से जोड़ना,
सरकारी योजनाओं की सही पहुंच सुनिश्चित करना जरूरी है।