
काठमांडू। नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाए गए विवादित बैन को आखिरकार हटा लिया है। बीते कुछ दिनों से नेपाल में ट्विटर (अब X), फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स तक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई थी। सरकार का तर्क था कि सोशल मीडिया पर बढ़ती अफवाहें, फेक न्यूज और राजनीतिक अस्थिरता फैलाने वाली सामग्री समाज में तनाव पैदा कर रही है। लेकिन जैसे ही यह फैसला लागू हुआ, देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेपाल की छवि को नुकसान पहुंचा। अंततः सरकार को बैकफुट पर आकर बैन हटाना पड़ा।
सोशल मीडिया बैन क्यों लगाया गया?
नेपाल सरकार ने दावा किया था कि हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा भड़काने वाले पोस्ट, सांप्रदायिक नफरत और नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां तेजी से बढ़ गई थीं। सरकार का कहना था कि यह माहौल लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के खिलाफ है। इसी वजह से एक अस्थायी बैन का निर्णय लिया गया।
विरोध की लहर
बैन लगते ही सबसे ज्यादा विरोध युवाओं और छात्रों ने किया। काठमांडू, पोखरा और बिराटनगर जैसे शहरों में हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। छात्रों ने इसे “अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला” बताया। नेपाल के पत्रकार संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सरकार के कदम का विरोध किया और इसे तानाशाही की ओर बढ़ता कदम कहा।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नेपाल सरकार से तुरंत बैन हटाने की अपील की। भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
10 तस्वीरों में समझें पूरा बवाल
(यहां पर न्यूज प्रिंट मीडिया या ऑनलाइन पोर्टल में 10 तस्वीरें लगाई जा सकती हैं।)
1. काठमांडू की सड़कों पर बैन के खिलाफ प्रदर्शन करते युवा।
2. विश्वविद्यालयों में छात्रों का धरना।
3. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की तस्वीर।
4. पत्रकारों का काला बिल्ला पहनकर प्रदर्शन।
5. प्रधानमंत्री आवास के बाहर सुरक्षा बढ़ाने की तस्वीर।
6. सोशल मीडिया लॉगिन पर आने वाला “ब्लॉक मैसेज” का स्क्रीनशॉट।
7. प्रदर्शन के दौरान हाथों में प्लेकार्ड लिए महिलाएं।
8. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपी नेपाल की खबरों की झलक।
9. संसद में विपक्षी दल के नेताओं का विरोध।
10. बैन हटाए जाने के बाद खुशी जाहिर करते युवा।
नेपाल की राजनीति में हलचल
यह फैसला नेपाल की राजनीति को भी हिला गया। विपक्षी दलों ने कहा कि सरकार जनता की आवाज दबाना चाहती है। पूर्व प्रधानमंत्री ने इसे संविधान के खिलाफ करार दिया। यहां तक कि सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं ने भी सोशल मीडिया बैन पर सवाल उठाए।
बैन हटाने का दबाव
लगातार बढ़ते विरोध, अंतरराष्ट्रीय दबाव और अर्थव्यवस्था पर असर को देखते हुए सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। आईटी कंपनियों और डिजिटल बिजनेस से जुड़े संगठनों ने भी कहा कि बैन से करोड़ों का नुकसान हो रहा है।
नेपाल सरकार की सफाई
बैन हटाते समय सरकार ने कहा कि यह कदम केवल “टेम्पररी” था और सोशल मीडिया कंपनियों को अब सख्त गाइडलाइन का पालन करना होगा। यदि भविष्य में गलत सूचनाएं फैलाई जाती हैं तो फिर से कड़े कदम उठाए जाएंगे।
नेपाल और सोशल मीडिया का महत्व
नेपाल जैसे देश में जहां बड़ी संख्या में युवा वर्ग विदेश में काम करता है, वहां सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि परिवार से जुड़ने का अहम माध्यम है। टिकटॉक और फेसबुक नेपाल के ग्रामीण इलाकों तक बेहद लोकप्रिय हैं। ऐसे में बैन लगते ही लोगों में असंतोष फैलना स्वाभाविक था।
नेपाल में सोशल मीडिया बैन और उसका विरोध यह दर्शाता है कि आज के समय में इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स लोगों की आज़ादी और लोकतंत्र से सीधे जुड़े हैं। सरकारें चाहें तो सख्त नियम बना सकती हैं, लेकिन पूरी तरह बैन लगाना जनता की नाराजगी को बढ़ा देता है। नेपाल का यह कदम बाकी देशों के लिए भी एक सीख है।