बिहार की राजनीति एक बार फिर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम की साक्षी बनी है। नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) विधायक दल की बैठक में जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया। इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि वह बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 10वें कार्यकाल की शुरुआत करेंगे। यह उपलब्धि उन्हें देश के उन विरले नेताओं की सूची में शामिल करती है, जिन्होंने अपने राज्य में सबसे लंबे समय तक सत्ता चलाई और लगातार राजनीतिक परिवर्तनों के बीच अपनी प्रासंगिकता कायम रखी।

20 नवंबर को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियाँ अंतिम चरण में हैं। परंपरा के अनुसार यह समारोह पटना के गाँधी मैदान में या राजभवन परिसर में आयोजित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित एनडीए के कई वरिष्ठ नेता समारोह में उपस्थित रहेंगे। इस राजनीतिक पल को एनडीए की एकजुटता और बिहार के भविष्य की दिशा तय करने वाले क्षण के रूप में देखा जा रहा है।
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा कई उतार-चढ़ावों से भरी रही है। उन्होंने पहली बार 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत न होने के कारण उन्हें महज़ 7 दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा। यह घटना बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जहाँ सत्ता समीकरण तेजी से बदले और क्षेत्रीय राजनीति की नई धारा उभर कर सामने आई।
साल 2005 में जब बिहार की जनता बदलाव के मूड में थी, तब नीतीश कुमार ने ‘गुड गवर्नेंस’ का नारा दिया और चुनाव में बड़ी जीत हासिल करते हुए पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई। उनके शासन के शुरुआती वर्षों को बिहार में सड़क, शिक्षा, बिजली, कानून-व्यवस्था जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधारों के लिए जाना जाता है।
गठबंधन बदलने के लिए मशहूर पर फिर भी ‘किंगमेकर’
नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा अध्याय उनकी गठबंधन राजनीति रही है। उन्होंने कई बार राजनीतिक समीकरण बदले—कभी भाजपा के साथ, कभी राजद के साथ और कभी अकेले। कई बार आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद, नीतीश ने हमेशा अपनी रणनीति और नेतृत्व क्षमता से सत्ता समीकरणों को अपने पक्ष में मोड़ा।
उनकी इसी राजनीतिक समझ ने उन्हें बिहार में ‘किंगमेकर’ की उपाधि दिलाई। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या राजद—सभी दलों ने अलग-अलग मौकों पर नीतीश कुमार की भूमिका को स्वीकार किया है।
एनडीए में वापसी और फिर 10वां कार्यकाल
पिछले वर्ष के राजनीतिक घटनाक्रम में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर एक बार फिर एनडीए का दामन थामा। भाजपा ने भी बिना शर्त उनका स्वागत किया। एनडीए की विधायक दल की बैठक में नीतीश पर सर्वसम्मति की मुहर लगाई गई, जिससे यह साफ हो गया कि गठबंधन पूरी तरह एकजुट है।
नई सरकार को लेकर एनडीए नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। इस बार मंत्रिमंडल में भाजपा कोटे से दो उपमुख्यमंत्री बनने के संकेत पहले ही मिल चुके हैं। जेडीयू और भाजपा दोनों अपनी-अपनी जातीय व क्षेत्रीय संतुलन की राजनीति को ध्यान में रखकर मंत्री पदों का बंटवारा तय कर रहे हैं।
शपथ ग्रहण समारोह: प्रधानमंत्री मोदी होंगे मौजूद
20 नवंबर को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह को लेकर पूरे बिहार में उत्सुकता है। पटना में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति यह दर्शाती है कि केंद्र सरकार भी नीतीश कुमार के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहती है। सूत्रों के अनुसार, पीएम मोदी समारोह के बाद एनडीए नेताओं के साथ विशेष बैठक भी कर सकते हैं।
बिहार के सामने चुनौतियाँ और नीतीश की प्राथमिकताएँ
हालाँकि नीतीश कुमार अपने 10वें कार्यकाल की शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन बिहार के सामने चुनौती कम नहीं है। बेरोजगारी, उद्योगों की कमी, शिक्षा में गिरावट, स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर स्थिति, शराबबंदी से जुड़े सामाजिक-आर्थिक परिणाम और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे तुरंत ध्यान देने की मांग कर रहे हैं।
नीतीश कुमार ने कई बार कहा है कि उनका मुख्य फोकस ‘विकास और सुशासन’ पर रहेगा। उनके पिछले अनुभवों और प्रशासनिक पकड़ को देखते हुए जनता के बीच उम्मीदें बहुत अधिक हैं।
2025-2030 का दौर: क्या बनाएगा बिहार नई पहचान?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का 10वां कार्यकाल उनके लिए ‘विरासत निर्माण’ का काल हो सकता है। वे यदि इस कार्यकाल में बिहार के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मॉडल को मजबूत कर देते हैं, तो उनकी छवि बिहार के सबसे बड़े ‘विकासवादी नेता’ के रूप में और अधिक स्थापित हो सकती है।
नई सरकार में युवा नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है, जिससे राजनीतिक नेतृत्व में नई ऊर्जा आएगी। बिहार को केंद्र से मिलने वाले बड़े निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, एक्सप्रेसवे और विशेष उद्योग नीति भी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होने की उम्मीद है।
नीतीश कुमार का 10वां कार्यकाल केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि बिहार की बदलती राजनीति का प्रतीक है—जहाँ अनुभव, रणनीति और गठबंधन की मजबूती ने उन्हें लगातार सत्ता के शीर्ष पर बनाए रखा है। 20 नवंबर का शपथ ग्रहण समारोह बिहार की नई दिशा और एनडीए सरकार की नीति-परिकल्पनाओं का संकेत देने वाला होगा।
