
‘एकतरफा मोहब्बत नहीं चलेगी’: ओवैसी का तीखा वार, बिहार में AIMIM अकेले लड़ेगी चुनाव?
बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने महागठबंधन से दूरी बनाते हुए संकेत दिया है कि वह आगामी विधानसभा चुनावों में अकेले उतर सकती है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने साफ कहा है, “एकतरफा मोहब्बत नहीं चलेगी।” यह बयान राज्य की राजनीति में नए समीकरणों के संकेत दे रहा है।
महागठबंधन से ठुकराई गई दोस्ती की पेशकश?
AIMIM ने बिहार में महागठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छा जाहिर की थी, खासकर तब जब विपक्षी खेमे को भाजपा से कड़ी टक्कर मिलने की आशंका है। हालांकि, महागठबंधन की ओर से अब तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। इस उपेक्षा से खफा ओवैसी ने अपनी भावनाएं खुलकर सामने रखीं।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “हमने कई बार महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन हमें गंभीरता से नहीं लिया गया। AIMIM को महज वोटकटवा समझना उनकी भूल है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब पार्टी बिहार में तीसरा मोर्चा बनाने की संभावनाएं तलाश रही है।
सीमांचल पर रहेगा खास फोकस
AIMIM की रणनीति का केंद्र बिहार का सीमांचल क्षेत्र रहेगा, जहां पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ रहा है। कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया जैसे जिलों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, और इन क्षेत्रों में AIMIM का अच्छा असर रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीती थीं, जिससे पार्टी की ताकत का एहसास हुआ था।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सीमांचल में सामाजिक और बुनियादी मुद्दों पर केंद्रित एक अलग मंच खड़ा करने की तैयारी की जा रही है। इसका उद्देश्य उन मतदाताओं तक पहुँचना है जो विकास और प्रतिनिधित्व की कमी से परेशान हैं।
‘तीसरा मोर्चा’ का समीकरण
ओवैसी ने संकेत दिए हैं कि AIMIM अब एक वैकल्पिक राजनीतिक मंच यानी तीसरा मोर्चा खड़ा कर सकती है। हालांकि, उन्होंने अभी तक किसी पार्टी का नाम नहीं लिया है, लेकिन संभावनाएं बन रही हैं कि अन्य क्षेत्रीय दलों और वंचित वर्गों की पार्टियों से बातचीत हो सकती है।
विश्लेषकों के अनुसार, अगर AIMIM कुछ छोटे दलों और सामाजिक संगठनों के साथ गठबंधन करती है, तो वह सीमांचल समेत अन्य क्षेत्रों में भी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कर सकती है। इसका सीधा असर महागठबंधन और एनडीए दोनों पर पड़ेगा, खासकर मुस्लिम और पिछड़े वर्गों के वोट बैंक में बंटवारा संभव है।
महागठबंधन की रणनीति पर सवाल
महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, और वाम दल शामिल हैं, ओवैसी की पार्टी को लेकर स्पष्ट रुख नहीं अपना रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि AIMIM को गठबंधन में शामिल करने से सीमांचल में राजद और कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक पर असर पड़ सकता है, इसी वजह से गठबंधन हिचकिचा रहा है।
हालांकि, कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे अवसर गंवाने वाला कदम मानते हैं। उनका कहना है कि भाजपा जैसी संगठित पार्टी के खिलाफ लड़ाई में विपक्ष को अधिकतम दलों को एकजुट करना चाहिए था।
विपक्षी एकता को झटका?
यह घटनाक्रम विपक्षी एकता पर भी सवाल खड़े करता है, विशेषकर ऐसे समय में जब देश भर में विपक्षी पार्टियां भाजपा के खिलाफ साझा मोर्चा बना रही हैं। बिहार में अगर AIMIM अलग राह पकड़ती है, तो यह विपक्ष के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि “विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी एकजुटता की कमी रही है। AIMIM जैसे दलों को नजरअंदाज करना इस कमजोरी को और बढ़ाता है।”
AIMIM की आगे की योजना
ओवैसी ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी बिहार की राजनीति में कोई छोटी ताकत नहीं रह गई है। “हम अब किसी के भरोसे नहीं रहेंगे, जनता हमारे साथ है,” उन्होंने कहा।
पार्टी ने आगामी दिनों में सीमांचल के विभिन्न जिलों में जनसभाएं, रैलियां और कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई है। साथ ही, युवाओं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ने पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है।
AIMIM की रणनीति अब जाति और धर्म से इतर, बुनियादी मुद्दों—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सड़क जैसी सुविधाओं—पर केंद्रित है। ओवैसी का मानना है कि जनता अब वादों से नहीं, प्रदर्शन से प्रभावित होती है।
बिहार की राजनीतिक सरगर्मी अब और तेज होने वाली है। AIMIM का यह रुख महागठबंधन की चुनावी रणनीति को चुनौती दे सकता है। सीमांचल में तीसरे मोर्चे का उभरना न केवल सीटों के समीकरण बदल सकता है, बल्कि पूरे प्रदेश में चुनावी हवा की दिशा भी तय कर सकता है।
अब देखना होगा कि AIMIM कितनी सफल होती है अपनी रणनीति में, और क्या महागठबंधन को ओवैसी की “एकतरफा मोहब्बत” की कीमत चुकानी पड़ेगी।