सीमांचल की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने क्षेत्र की विकास स्थिति को लेकर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)—सभी पर निशाना साधते हुए पूछा कि “75 सालों में सीमांचल के लिए आखिर किया क्या गया?”

बिहार के इस अहम क्षेत्र में रैली को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि सीमांचल को आज भी भारत का सबसे पिछड़ा हुआ इलाका माना जाता है, जबकि यहां की समस्याएँ दशकों पुरानी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्ता में आने वाली हर पार्टी ने सीमांचल को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन क्षेत्र के वास्तविक विकास पर ध्यान नहीं दिया।
सीमांचल की स्थिति पर ओवैसी का सवाल
अपने भाषण में ओवैसी ने विशेष रूप से दो संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान खींचा—
1. इन्फेंट मोर्टैलिटी रेट (IMR) यानी शिशु मृत्यु दर
2. शिक्षा में पिछड़ापन, विशेषकर मुस्लिम बच्चों का 12वीं तक न पहुंच पाना
ओवैसी ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार सीमांचल में शिशु मृत्यु दर अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। उन्होंने यह भी दावा किया कि “92% मुस्लिम बच्चे 12वीं पास नहीं कर पाते”—जो क्षेत्र में शिक्षा की बदहाली का प्रमाण है।
उन्होंने कहा कि यदि लगातार सत्ता में रहने वाली पार्टियों ने समय रहते शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोज़गार जैसे बुनियादी मुद्दों को प्राथमिकता दी होती, तो आज सीमांचल देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शामिल न होता।
सीमांचल: भौगोलिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझता क्षेत्र
ओवैसी ने भाषण में यह भी रेखांकित किया कि सीमांचल की भौगोलिक परिस्थितियाँ इसे और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
हर साल बाढ़ की मार
स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी
स्कूली ढांचे का कमजोर होना
रोजगार के अवसरों का अभाव
पलायन में लगातार बढ़ोतरी
उन्होंने कहा कि सरकारें बदलती रहीं, लेकिन स्थितियाँ जस की तस बनी हुई हैं। सीमांचल के जिलों—किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया—को कभी वैसी प्राथमिकता नहीं मिली जैसी जरूरत थी।
राजनीतिक पार्टियों पर सीधा हमला
ओवैसी ने अपने भाषण में कांग्रेस, राजद, नीतीश कुमार और बीजेपी—सभी को एक साथ कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इन दलों ने वर्षों तक सत्ता संभालने के बावजूद सीमांचल के विकास के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई।
उन्होंने आरोप लगाया कि:
सीमांचल में उद्योग-धंधों का अभाव अब तक दूर नहीं हुआ है।
अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी हर सरकार के वादों के बावजूद कायम है।
शिक्षा व्यवस्था सुधारने को लेकर कोई ठोस योजना नहीं दिखाई देती।
ओवैसी के अनुसार, जब भी चुनाव आते हैं, बड़ी-बड़ी घोषणाएँ होती हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सीमांचल फिर उसी हाल में छोड़ दिया जाता है।
ओवैसी का विकास मॉडल और संदेश
AIMIM प्रमुख ने कहा कि उनकी राजनीति सिर्फ भाषणों तक सीमित नहीं, बल्कि जमीनी मुद्दों के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने दावा किया कि सीमांचल में AIMIM के जनप्रतिनिधियों ने अस्पतालों, स्कूलों और पंचायत स्तर पर समस्याओं को उठाया है तथा क्षेत्र की आवाज को विधानसभा में पहुंचाने का काम किया है।
उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस बार उन दलों को मौका दें जो वास्तव में सीमांचल की समस्याओं को समझते हैं और उन्हें दूर करने का इरादा रखते हैं।
सीमांचल का राजनीतिक महत्व
बिहार की राजनीति में सीमांचल का महत्व लगातार बढ़ रहा है।
मुस्लिम आबादी का बड़ा प्रतिशत
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के कारण विशेष राहत योजनाओं की जरूरत
रोजगार और शिक्षा को लेकर युवाओं में असंतोष
शहरी-ग्रामीण असमानता
इन सभी कारणों से चुनावी मौसम में सीमांचल सभी पार्टियों के लिए निर्णायक क्षेत्र बन जाता है।
जवाबदेही की मांग
ओवैसी ने कहा कि सिर्फ भाषणों से विकास नहीं होता। उन्होंने जनता को जागरूक करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि लोग उन नेताओं से सवाल पूछें जो वर्षों तक सत्ता में रहे और फिर भी क्षेत्र को बुनियादी सुविधाएँ नहीं दे पाए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सीमांचल के बच्चों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य मिलना उनका अधिकार है, और इसके लिए सरकार को जवाबदेह बनाना ही होगा।
क्या बदलेगा सीमांचल का भविष्य?
ओवैसी के इस बयान के बाद क्षेत्र में राजनीतिक हलचल बढ़ना तय है। जहां AIMIM सीमांचल में अपने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में है, वहीं अन्य राजनीतिक दल भी इस बयान पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस मुद्दे पर सरकार कोई जवाब पेश करती है या फिर पारंपरिक चुनावी बयानबाज़ी ही जारी रहती है।
फिलहाल, ओवैसी के इस सवाल ने एक बार फिर सीमांचल की हालत को राष्ट्रीय बहस में ला खड़ा किया है। आने वाले समय में यह मुद्दा बिहार की राजनीति में एक बड़ा विमर्श बन सकता है।
