
पटना। डिजिटल तकनीक की बढ़ती दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल अब राजनीति के गलियारों तक पहुंच चुका है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां से जुड़ा एक AI वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और कांग्रेस पार्टी को जल्द से जल्द वीडियो हटाने का निर्देश दिया है।
यह खबर न सिर्फ राजनीतिक हलचल का कारण बनी है, बल्कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और AI जनरेटेड कंटेंट को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े कर रही है।
मामला क्या है?
हाल ही में एक वीडियो सामने आया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां को लेकर AI तकनीक से तैयार किया गया कंटेंट प्रसारित किया गया। इस वीडियो में दिखाया गया कंटेंट पूरी तरह काल्पनिक और भ्रामक बताया जा रहा है।
यह वीडियो कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से साझा हुआ था।
वीडियो के सामने आते ही राजनीतिक विवाद शुरू हो गया।
बीजेपी ने इसे प्रधानमंत्री की छवि धूमिल करने की साजिश बताया।
हाईकोर्ट का संज्ञान
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में गंभीरता दिखाई और स्वतः संज्ञान लेते हुए कांग्रेस को कड़ा निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह का वीडियो प्रधानमंत्री और उनकी दिवंगत मां की गरिमा के खिलाफ है।
अदालत ने कांग्रेस को आदेश दिया कि वीडियो को तुरंत सोशल मीडिया से हटाया जाए।
साथ ही, कोर्ट ने चुनाव आयोग और आईटी विभाग को भी इस मामले पर निगरानी रखने को कहा।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
बीजेपी का रुख
भाजपा नेताओं ने इस वीडियो को बेहद शर्मनाक बताया और कहा कि कांग्रेस हताशा में आकर इस तरह के हथकंडे अपना रही है।
बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री और उनकी मां पर इस तरह का अपमानजनक कंटेंट बनाना और साझा करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।
कांग्रेस का पक्ष
कांग्रेस की ओर से बयान आया कि पार्टी ने वीडियो साझा करने की गलती मान ली है और उसे हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। हालांकि पार्टी ने यह भी कहा कि वीडियो किसी “अज्ञात स्रोत” से उन्हें प्राप्त हुआ था।
सोशल मीडिया पर बवाल
जैसे ही यह वीडियो सामने आया, ट्विटर (अब X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जमकर बहस छिड़ गई।
कुछ लोगों ने कांग्रेस की आलोचना की।
वहीं, कुछ यूजर्स ने AI कंटेंट पर कड़े कानून बनाने की मांग की।
#AI_FakeVideo और #Respect_PM ट्रेंड करने लगे।
AI और राजनीति का खतरनाक संगम
यह मामला सिर्फ एक राजनीतिक विवाद नहीं है, बल्कि यह इस बात की भी चेतावनी है कि आने वाले समय में AI का गलत इस्तेमाल चुनाव और लोकतंत्र को प्रभावित कर सकता है।
AI से बनाए गए फेक वीडियो से जनता को गुमराह करना आसान हो जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की तकनीक पर तुरंत कानूनी नियंत्रण जरूरी है।
कई देशों में पहले से ही “Deepfake Regulation” कानून बनाए जा चुके हैं।
कानूनी पहलू
भारत में अभी तक AI जनरेटेड कंटेंट और डीपफेक पर विशेष कानून नहीं है। हालांकि आईटी एक्ट और आईपीसी की कुछ धाराएँ लागू की जा सकती हैं।
धारा 66D (आईटी एक्ट): धोखाधड़ी और भ्रामक सूचना पर लागू होती है।
धारा 500 (आईपीसी): मानहानि का मामला दर्ज किया जा सकता है।
चुनाव आयोग भी ऐसे मामलों में आचार संहिता उल्लंघन की कार्रवाई कर सकता है।
जनता की राय
इस घटना के बाद आम नागरिकों के बीच दो तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आईं:
1. निंदा करने वाले – लोगों का कहना है कि नेताओं की निजी और पारिवारिक गरिमा पर इस तरह प्रहार करना गलत है।
2. सख्त कानून की मांग – बड़ी संख्या में लोगों ने कहा कि फेक वीडियो और AI कंटेंट पर रोक लगाने के लिए भारत को जल्द सख्त कानून लाना चाहिए।
विशेषज्ञों की राय
तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि:
AI जनरेटेड वीडियो को पहचानने के लिए टूल्स विकसित करने की जरूरत है।
सोशल मीडिया कंपनियों को फेक कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
सरकार को एक राष्ट्रीय डीपफेक रेगुलेशन पॉलिसी बनानी होगी।
भविष्य की चुनौतियाँ
भारत में 2025 और उसके बाद चुनावी माहौल में AI का दुरुपयोग बढ़ सकता है।
राजनीतिक पार्टियाँ अपने विरोधियों को निशाना बनाने के लिए डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल कर सकती हैं।
जनता को असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा।
इससे लोकतंत्र और चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल उठेंगे।
पटना हाईकोर्ट द्वारा संज्ञान लेने से यह साफ हो गया है कि AI फेक वीडियो अब केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। कांग्रेस को वीडियो हटाने का आदेश देकर कोर्ट ने एक मजबूत संदेश दिया है।
यह मामला राजनीति से परे जाकर समाज और तकनीक दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कानून, तकनीक और जनजागरूकता तीनों का संतुलन बेहद जरूरी होगा।