
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहा जाता है। इस समय लोग अपने पूर्वजों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से स्मरण करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि “पितृ देवता” हमारे जीवन का आधार हैं और उनका आशीर्वाद ही हमारी उन्नति और समृद्धि का कारण है। पितृपक्ष में पानी (जल) अर्पित करना तर्पण का अहम हिस्सा माना जाता है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर पितरों को पानी क्यों दिया जाता है?
पितृपक्ष और तर्पण का महत्व
पितृपक्ष में तर्पण करना न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह हमारे जीवन के कर्म और संस्कारों से भी जुड़ा है। ‘तर्पण’ शब्द संस्कृत के “त्रृप” धातु से बना है, जिसका अर्थ है – तृप्त करना। जल अर्पण करके हम पितरों की आत्मा को तृप्त करते हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि जब हम पितरों को जल और तिल अर्पित करते हैं तो वे संतुष्ट होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। यह आशीर्वाद ही हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
क्यों दिया जाता है पितरों को पानी?
1. जल जीवन का आधार है:
जल को अमृत माना गया है। जैसे जीवित व्यक्ति के लिए जल आवश्यक है, वैसे ही पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए भी जल अर्पण किया जाता है।
2. पूर्वजों तक संदेश पहुँचाना:
पौराणिक मान्यता है कि तर्पण में दिया गया जल पितृलोक तक पहुँचता है। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं।
3. पांच महाभूतों से जुड़ाव:
हमारा शरीर पांच महाभूतों (जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी) से बना है। जल अर्पण कर हम पितरों के सूक्ष्म शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
4. ऋण से मुक्ति:
पितरों का ऋण चुकाना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। जल अर्पण कर हम इस पितृऋण से उऋण होने का प्रयास करते हैं।
5. आशीर्वाद की प्राप्ति:
मान्यता है कि यदि पितरों को जल नहीं दिया जाए तो वे नाराज हो जाते हैं और वंशजों के जीवन में बाधाएँ आती हैं।
शास्त्रीय प्रमाण
ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि श्राद्ध और तर्पण से पितरों को संतुष्टि मिलती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जल अर्पण किए बिना पितृ तृप्त नहीं होते।
मनुस्मृति और महाभारत में भी पितृपक्ष के दौरान जलदान का महत्व बताया गया है।
तर्पण की विधि
1. प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र पहनें।
2. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके कुशा (दूब घास) आसन पर बैठें।
3. तांबे या पीतल के लोटे में जल, तिल, पुष्प और कुशा डालें।
4. मंत्र उच्चारण करते हुए पितरों के नाम का आह्वान करें।
5. तीन बार जल अर्पण करें – पहले देवताओं के लिए, फिर ऋषियों के लिए और अंत में पितरों के लिए।
6. अंत में पितरों की शांति और मोक्ष की कामना करें।
पितरों को जल अर्पण करने के लाभ
पारिवारिक जीवन में सुख-शांति आती है।
संतान प्राप्ति में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं।
व्यापार और करियर में सफलता मिलती है।
पूर्वजों के आशीर्वाद से घर में समृद्धि बढ़ती है।
पितृदोष और कुलदोष से मुक्ति मिलती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व
धार्मिक मान्यता के साथ-साथ तर्पण का वैज्ञानिक पक्ष भी है।
जल अर्पण करने से मन में शांति और आत्मिक संतोष मिलता है।
ध्यान और मंत्र उच्चारण से मानसिक तनाव कम होता है।
पूर्वजों को स्मरण करने से पारिवारिक एकता और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।
पितरों को जल न देने के परिणाम
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करता, उसे पितृदोष का सामना करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप –
संतान सुख में बाधा आती है।
घर में कलह और अशांति बनी रहती है।
आर्थिक संकट बढ़ता है।
वंश की उन्नति रुक जाती है।
पितृपक्ष 2025 की तिथियाँ
साल 2025 में पितृपक्ष 8 सितंबर से 17 सितंबर तक मनाया जाएगा। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों का स्मरण कर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं।
पितृपक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। जल अर्पण कर हम न सिर्फ पितरों को तृप्त करते हैं, बल्कि उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को भी सुखी और सफल बनाते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष में पितरों को जल अर्पण करना अनिवार्य माना गया है।