
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे हैं। यह दौरा शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) समिट 2025 में उनकी भागीदारी के लिए है। इस समिट का आयोजन बीजिंग में हो रहा है, जहां दुनिया के कई अहम नेता हिस्सा ले रहे हैं। इस यात्रा को भारत-चीन संबंधों, क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक कूटनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पीएम मोदी ने बीजिंग पहुंचते ही भारतीय दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात की और भारतीय समुदाय को संबोधित किया। उनके आगमन पर चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
दौरे का मुख्य एजेंडा
1. SCO समिट 2025 में भागीदारी:
प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन में आतंकवाद विरोधी सहयोग, व्यापारिक संबंधों और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर अपने विचार साझा करेंगे।
2. जिनपिंग और पुतिन से द्विपक्षीय वार्ता:
पीएम मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अलग-अलग मुलाकातें होंगी। इन मुलाकातों में सीमा विवाद, व्यापारिक सहयोग, रक्षा साझेदारी और ऊर्जा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है।
3. भारत-चीन संबंध सुधारने का प्रयास:
पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन के बीच सीमा तनाव, व्यापारिक असंतुलन और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण रिश्ते बिगड़े हैं। यह दौरा रिश्तों को सामान्य करने और संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में अहम कदम हो सकता है।
7 साल बाद चीन क्यों गए पीएम मोदी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा इसलिए खास है क्योंकि वह पिछली बार 2018 में चीन गए थे। तब से लेकर अब तक भारत और चीन के बीच कई बार सीमा विवाद, गलवान घाटी घटना और व्यापारिक तनाव के चलते रिश्तों में खटास आई। ऐसे में यह यात्रा दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का अवसर बन सकती है।
SCO समिट 2025 का महत्व
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन एक प्रमुख बहुपक्षीय संगठन है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं। यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। इस साल के समिट का मुख्य विषय “एशियाई सहयोग और स्थिरता” है।
भारत के लिए क्या है फायदा?
व्यापार और निवेश को बढ़ावा: चीन और रूस के साथ मजबूत आर्थिक साझेदारी से भारत को निवेश के नए अवसर मिल सकते हैं।
ऊर्जा सुरक्षा:
रूस और मध्य एशियाई देशों से ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने पर भी चर्चा होगी।
रणनीतिक सहयोग:
भारत की भूमिका एशिया में एक मजबूत और संतुलित शक्ति के रूप में उभर सकती है।
चीन के साथ विवादित मुद्दे
सीमा विवाद (LAC): गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा।
व्यापारिक असंतुलन: चीन से भारत को आयात ज्यादा और निर्यात कम होने के कारण आर्थिक असंतुलन है।
रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के बीच टकराव की स्थिति।
जिनपिंग और पुतिन से क्या होगी चर्चा?
जिनपिंग से वार्ता: सीमा विवाद सुलझाने, व्यापारिक बाधाएं कम करने और निवेश बढ़ाने पर फोकस।
पुतिन से मुलाकात: रक्षा सौदों, तेल-गैस आपूर्ति और यूक्रेन युद्ध पर भारत की मध्यस्थता की संभावनाएं।
भारत की विदेश नीति पर असर
पीएम मोदी का यह दौरा भारत की विदेश नीति में “संतुलन” की रणनीति को दर्शाता है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मजबूत संबंधों के बीच भारत चीन और रूस से भी संवाद बनाए रखना चाहता है।
भारतीय समुदाय की भूमिका
बीजिंग में बसे भारतीय समुदाय ने पीएम मोदी का स्वागत किया और व्यापारिक अवसरों पर चर्चा की। भारतीय आईटी और स्टार्टअप सेक्टर को चीन में विस्तार देने के लिए भी सुझाव सामने आए।
विशेषज्ञों की राय
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा भारत-चीन संबंधों में नया अध्याय खोल सकता है। हालांकि, वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब दोनों देश जमीनी स्तर पर भरोसे का माहौल बनाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सात साल बाद चीन दौरा सिर्फ एक कूटनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत है। SCO समिट 2025 में उनकी मौजूदगी एशिया के बदलते शक्ति संतुलन में भारत की अहमियत को और मजबूत करेगी।