प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग पहुंच गए, जहां वे जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत का नेतृत्व करेंगे। यह सम्मेलन कई मायनों में ऐतिहासिक है—पहली बार दुनिया की सबसे प्रभावशाली 20 अर्थव्यवस्थाओं का यह मंच किसी अफ्रीकी देश में आयोजित हो रहा है और लगातार चौथी बार यह ग्लोबल साउथ के देशों की मेजबानी में संपन्न होगा। इस दृष्टि से इस सम्मेलन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की खास नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यहां उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आवाज पहले से कहीं ज्यादा बुलंद होने वाली है।

प्रधानमंत्री मोदी के जोहान्सबर्ग पहुंचने पर दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। एयरपोर्ट पर भारतीय समुदाय के लोगों ने भी पारंपरिक तरीके से पीएम का अभिनंदन किया। मोदी के दौरे को न केवल कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, बल्कि इस बार जी-20 एजेंडा में वैश्विक आर्थिक सुधार, ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताएं, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन डेवेलपमेंट और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पारदर्शिता जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। भारत के लिए यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले वर्षों में जी-20 में भारत की भूमिका और प्रभाव लगातार बढ़ा है। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना और ग्लोबल साउथ की आवाज उठाने की रणनीति ने उसे विकासशील देशों का स्वाभाविक नेता बना दिया है। ऐसे में जोहान्सबर्ग सम्मेलन में भारत का एजेंडा बहुपक्षीयता को मजबूत करने, वैश्विक दक्षिण के मुद्दों को आगे बढ़ाने और विकासोन्मुख देशों के लिए बेहतर आर्थिक ढांचे की मांग पर केंद्रित रहेगा।
अफ्रीका में पहली बार जी-20 आयोजित—एक ऐतिहासिक क्षण
जी-20 शिखर सम्मेलन का पहली बार अफ्रीका में आयोजन अपने आप में बहुत बड़ा संदेश देता है। लंबे समय तक वैश्विक मंचों पर अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधित्व को सीमित माना जाता रहा है। इस बार दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी उस बदलाव का संकेत है जिसमें उभरती अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक निर्णय-निर्माण में बराबरी की भागीदारी दी जा रही है। दक्षिण अफ्रीका इस सम्मेलन को अवसर के रूप में देख रहा है ताकि वह दुनिया को दिखा सके कि अफ्रीकी महाद्वीप केवल संसाधनों का स्रोत नहीं है, बल्कि वैश्विक नवाचार, आर्थिक विकास और कूटनीति का एक मजबूत केंद्र भी बन सकता है। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं अफ्रीका के साथ रिश्तों को मजबूत करने को भारत की विदेश नीति का प्रमुख स्तंभ मानते रहे हैं। भारत-अफ्रीका फोरम समिट, डिफेंस सहयोग, मेडिकल और टेक्नोलॉजी सपोर्ट—इन सबके जरिए दोनों पक्ष लगातार अपने रिश्ते को व्यापक बना रहे हैं। यही कारण है कि पीएम मोदी की इस यात्रा को अफ्रीकी देशों के लिए भी एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
ग्लोबल साउथ पर भारत का जोर
सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को सामने रखने वाले प्रमुख नेताओं में रहेंगे। पिछले वर्ष भारत द्वारा आयोजित ‘Voice of Global South Summit’ ने भारत को विकासशील देशों की आवाज उठाने वाला सबसे प्रभावी मंच प्रदान किया था। जोहान्सबर्ग में भी यही रुख देखने को मिलेगा। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत जलवायु वित्त, कर्ज पुनर्गठन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा ट्रांजिशन और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को एजेंडा में प्रमुखता देगा। भारत यह भी उठाएगा कि वैश्विक संस्थानों में सुधार के बिना विकासशील देशों के हित सुरक्षित नहीं रह सकते।
पीएम मोदी की द्विपक्षीय मुलाकातें—भारत के लिए कूटनीतिक अवसर
जी-20 सम्मेलन के इतर पीएम मोदी की कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी प्रस्तावित हैं। इनमें दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, सऊदी अरब, इंडोनेशिया और यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ बैठकें शामिल हो सकती हैं। इन मुलाकातों में व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य और टेक्नोलॉजी सहयोग पर बात हो सकती है। भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों ब्रिक्स का भी हिस्सा हैं, ऐसे में दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करने की संभावना है। इस यात्रा से भारत का अफ्रीकी महाद्वीप में प्रभाव और बढ़ सकता है, जिसे चीन की अफ्रीका नीति के मुकाबले एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में भी देखा जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें मोदी के भाषण पर
जोहान्सबर्ग सम्मेलन में पीएम मोदी के संबोधन को लेकर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों में उत्सुकता है। पिछले वर्षों में मोदी ने वैश्विक मंचों पर भारत की नीतियों और दृष्टि को व्यापक रूप से रखा है, जिससे भारत की साख और नेतृत्व क्षमता बढ़ी है।
विशेषकर कोविड-19 काल में भारत के वैक्सीन मैत्री अभियान और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर मॉडल ने दुनिया को नई दिशा दिखाई है। ऐसे में उम्मीद है कि मोदी का भाषण ग्लोबल इकोनॉमी में स्थिरता और समावेशिता के नए रास्ते प्रस्तुत करेगा।
भारत की प्राथमिकताएँ—एक समावेशी वैश्विक व्यवस्था
भारत का स्पष्ट मानना है कि दुनिया बहुध्रुवीय हो रही है और ऐसे समय में छोटे एवं विकासशील देशों को अधिक प्रतिनिधित्व की जरूरत है। क्रिप्टोकरेंसी रेगुलेशन, सप्लाई-चेन सुरक्षा, हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल इकोनॉमी जैसे विषयों पर भारत समग्र रणनीति पेश कर सकता है।
पिछले वर्षों में भारत ने यह साबित किया है कि वह केवल अपनी नहीं, बल्कि दुनिया के हितों की आवाज भी उठाता है। इसलिए जोहान्सबर्ग सम्मेलन में भारत की भूमिका खासतौर से ध्यान आकर्षित कर रही है।
अफ्रीका की धरती पर आयोजित यह ऐतिहासिक जी-20 शिखर सम्मेलन दुनिया की नज़र में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी की उपस्थिति और भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका इस सम्मेलन की प्रमुख ताकतों में से एक है। जोहान्सबर्ग में होने वाली चर्चाओं, निर्णयों और वैश्विक आर्थिक नीति पर उनके प्रभाव को लेकर भारत सहित पूरी दुनिया उत्सुक है।
