
एमपी में खुलेआम बिक रहा नशे का ज़हर: ठेलों पर आसानी से मिल रही नशे की गोली।
भोपाल/इंदौर | विशेष रिपोर्ट
मध्य प्रदेश के कई शहरों में एक खौफनाक सच्चाई सामने आई है। सड़कों पर लगने वाले ठेलों से अब चाट-पकौड़ी नहीं, बल्कि नशे की गोलियां बिक रही हैं। दैनिक भास्कर की जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि कैसे युवा पीढ़ी खुलेआम बर्बादी की राह पर धकेली जा रही है और प्रशासनिक लापरवाही इस पूरे नेटवर्क को पनपने दे रही है।
5 जगहों से खरीदे गए नशे के सैंपल, पुलिस को सौंपे गए सबूत
दैनिक भास्कर के रिपोर्टर ने इंदौर, भोपाल, उज्जैन, ग्वालियर और जबलपुर जैसे पांच प्रमुख शहरों में स्टिंग ऑपरेशन कर यह खुलासा किया कि किस तरह से सड़क किनारे लगे ठेले और फूड वेंडर्स, खाने के सामान के साथ युवाओं को नशे की गोलियां या पाउडर बेच रहे हैं।
इन ठेलों से रिपोर्टर ने खुद नशीले पदार्थ खरीदे और उन्हें पुलिस अधिकारियों को सौंपकर पूरे रैकेट के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
कैमरे में कैद हुए 10 नशा बेचने वाले चेहरे
भास्कर टीम द्वारा लगाए गए गुप्त कैमरे में नशा बेचते 10 से अधिक लोगों के चेहरे स्पष्ट रूप से कैद हो गए हैं। ये लोग पहले खाने-पीने की चीजें बेचते नजर आते हैं, लेकिन जब ग्राहक ‘खास चीज’ की मांग करता है, तो वे जेब या डिब्बे से नशीली गोली या पाउडर निकालकर देते हैं।
इनमें से कई नाबालिग बच्चों को भी नशे का सामान देते देखे गए, जो इस नेटवर्क की गंभीरता को दर्शाता है।
महज 10-20 रुपये में बिक रहा नशे का ज़हर
चौंकाने वाली बात यह है कि यह नशा बेहद सस्ता है। एक गोली या पाउडर का पैकेट मात्र 10-20 रुपये में बिक रहा है। इसकी वजह से इसे खरीदना युवाओं और स्कूली बच्चों के लिए भी बेहद आसान हो गया है।
नशे का ये डोज ज्यादातर “टैबलेट, सफेद पाउडर या पीने वाले ड्रग” के रूप में मिलता है, जिसे कोल्ड ड्रिंक या पानी के साथ मिलाकर पी लिया जाता है।
स्कूली बच्चों तक पहुंचा नशा, अभिभावक चिंतित
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि कुछ स्कूलों के बाहर लगे फूड स्टॉल्स भी इस नशे के कारोबार से जुड़े हुए हैं। छात्रों को पहले मुफ्त में नशा देकर इसकी आदत डाली जाती है, फिर धीरे-धीरे पैसा वसूला जाता है।
अभिभावक इस खबर से स्तब्ध हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेजने से भी डरने लगे हैं।
पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
हालांकि रिपोर्टर द्वारा सबूत सौंपे जाने के बाद पुलिस ने कुछ जगहों पर कार्रवाई की है, लेकिन बड़े स्तर पर यह नेटवर्क अब भी सक्रिय है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर पुलिस की नज़र से इतने दिनों तक ये ठेले कैसे बचे रहे?
क्या इसमें किसी स्तर पर मिलीभगत है? या फिर प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है कि नशा अब चाट-पकौड़ी की ठेलियों तक पहुंच गया है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
डॉक्टरों और नशा मुक्ति केंद्र के विशेषज्ञों का कहना है कि यह नशा बेहद खतरनाक है। एक बार लत लगने के बाद इसका इलाज आसान नहीं होता। कम उम्र में इसका सेवन करने से मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर भारी नुकसान हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते इस पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह समस्या महामारी बन सकती है।
समाज का नैतिक पतन या प्रशासनिक विफलता?
यह सवाल अब मध्य प्रदेश के हर नागरिक के सामने है। जिस प्रदेश में सरकार ‘ड्रग फ्री इंडिया’ का नारा देती है, वहीं ठेलों पर खुलेआम नशा बिकना गंभीर चिंता का विषय है।
समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह एक सामाजिक और प्रशासनिक दोनों स्तर की विफलता है। जब तक जनता, सरकार और प्रशासन तीनों मिलकर इस पर रोक नहीं लगाएंगे, तब तक आने वाली पीढ़ियां बर्बादी की ओर जाती रहेंगी।
सरकार से क्या है उम्मीद?
अब जब मीडिया ने सबूतों के साथ यह मामला उजागर कर दिया है, तो जनता को उम्मीद है कि सरकार तत्काल एक्शन लेगी। ज़रूरत है एक राज्यव्यापी अभियान की, जिसमें न केवल नशा बेचने वालों पर कार्रवाई हो, बल्कि नशा पीड़ित युवाओं के पुनर्वास पर भी ध्यान दिया जाए।
साथ ही स्कूलों के बाहर स्टॉल्स की नियमित जांच, हेल्पलाइन नंबर की व्यवस्था और जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
मध्य प्रदेश में सड़कों पर बिक रहा नशा न केवल युवाओं के भविष्य को तबाह कर रहा है, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी कमजोर कर रहा है। मीडिया ने अपना काम कर दिखाया है, अब बारी प्रशासन और जनता की है कि इस ज़हर को जड़ से खत्म किया जाए।