
इटावा सफारी पार्क में शेरों की मौत पर राजनीति गरमाई, 34 शेर अब तक गंवा चुके जान
इटावा, उत्तर प्रदेश — मुलायम सिंह यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट रहे इटावा सफारी पार्क में एक बार फिर से शेरों की मौत का मामला सुर्खियों में है। ताज़ा जानकारी के मुताबिक, पार्क में अब तक कुल 34 शेरों की मौत हो चुकी है। इन मौतों को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है।
जानकारी के अनुसार, सफारी पार्क में शेरों की देखभाल के लिए जो धनराशि मिलती है, उस पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि शेरों के रखरखाव के बजट का पूरा इस्तेमाल न होकर, उसका एक बड़ा हिस्सा बैंक में ब्याज के रूप में रखा जा रहा है, जबकि इन पैसों का इस्तेमाल जानवरों की बेहतर देखभाल और सुविधाओं में होना चाहिए था। विपक्ष का कहना है कि इस लापरवाही के चलते कई शेरों की जान गई है।
मुलायम का सपना, अखिलेश का कार्यकाल और BJP के आरोप
इटावा सफारी पार्क की नींव समाजवादी पार्टी के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने रखी थी। उनके कार्यकाल में इसे विकसित करने का सपना देखा गया था ताकि प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा मिले और वन्यजीव संरक्षण को मजबूत किया जा सके। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए सफारी को शुरू किया गया, लेकिन BJP का कहना है कि अखिलेश इसे सही तरीके से चला नहीं पाए।
प्रदेश BJP नेताओं का आरोप है कि मुलायम सिंह के ड्रीम प्रोजेक्ट को अखिलेश सरकार ने अपेक्षित देखभाल नहीं दी, जिससे यह अपनी असली पहचान नहीं बना पाया। अब शेरों की मौत ने इसे पूरी तरह से बदनाम कर दिया है। BJP ने यह भी कहा कि सफारी का संचालन पेशेवर ढंग से नहीं हुआ और प्रबंधन में लगातार लापरवाही बरती गई।
सफारी में शेरों की मौजूदा स्थिति
वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक, इटावा सफारी में वर्तमान में शेरों की संख्या पहले की तुलना में काफी घट गई है। शेरों के बाड़ों में सफाई, पर्याप्त भोजन और नियमित स्वास्थ्य जांच जैसी बुनियादी ज़रूरतों में भी गड़बड़ियां पाई गई हैं। कई बार यहां शेरों को बचाने के लिए पर्याप्त पशु चिकित्सक भी मौजूद नहीं होते।
पिछले कुछ वर्षों में सफारी में वायरल इंफेक्शन, लड़ाई-झगड़े, और कुपोषण जैसी वजहों से कई शेरों की मौत हुई है। जानकारों का मानना है कि शेर जैसे बड़े शिकारी जानवरों की देखभाल में उच्चस्तरीय प्रबंधन, बड़े क्षेत्रफल में खुला आवास और बेहतर चिकित्सा सुविधाएं बेहद ज़रूरी हैं, लेकिन इटावा सफारी में ये मानक लगातार कमजोर रहे।
विपक्ष के सवाल, सरकार की सफाई
समाजवादी पार्टी का कहना है कि इटावा सफारी में आज जो हालत है, उसकी जिम्मेदारी मौजूदा योगी सरकार की है। उनका आरोप है कि सरकार ने पिछले सात सालों में न तो सफारी के विस्तार पर काम किया और न ही शेरों के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था की।
वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि शेरों की मौत के मामलों में जांच हो रही है और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिक पशु चिकित्सा केंद्र और निगरानी तंत्र विकसित किया जाएगा।
ब्याज पर रखी रकम को लेकर विवाद
सबसे बड़ा सवाल इस समय इस बात को लेकर है कि शेरों के रखरखाव के लिए जो बजट आता है, उसका पूरा उपयोग क्यों नहीं किया जाता। सूत्र बताते हैं कि कई बार लाखों रुपये बैंक में जमा रखकर उस पर ब्याज कमाया जाता है, जबकि शेरों के बाड़ों, भोजन और स्वास्थ्य पर सीधा निवेश नहीं किया जाता।
वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि यह वित्तीय कुप्रबंधन न केवल अनैतिक है बल्कि वन्यजीव संरक्षण कानून के मूल उद्देश्यों के भी खिलाफ है।
स्थानीय लोगों और पर्यटकों की राय
इटावा सफारी पार्क एक समय में उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्यटन केंद्र बनने की ओर था। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते थे, लेकिन लगातार हो रही मौतों और खराब प्रबंधन ने इसकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सफारी के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन न तो पर्यटन बढ़ा और न ही शेरों का संरक्षण हो सका।
भविष्य की राह
वन्यजीव संरक्षण के जानकार मानते हैं कि इटावा सफारी को बचाने के लिए अब सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी से काम नहीं चलेगा, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाने होंगे। इसमें प्रशिक्षित स्टाफ, आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं, पर्याप्त भोजन, और बड़े क्षेत्र में शेरों के लिए प्राकृतिक माहौल उपलब्ध कराना सबसे अहम होगा।
यदि सही देखभाल और पारदर्शी प्रबंधन किया जाए, तो इटावा सफारी एक बार फिर उत्तर भारत का बड़ा आकर्षण बन सकता है। लेकिन मौजूदा स्थिति ने यह साफ कर दिया है कि सिर्फ नाम के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट बनाना काफी नहीं है — उसे सच्ची लगन और पेशेवर दृष्टिकोण से चलाना भी ज़रूरी है।