
जापान में जनसंख्या संकट: जन्म दर ऐतिहासिक निचले स्तर पर, मृत्यु दर तीन गुना, देश के अस्तित्व पर मंडराया खतरा।
टोक्यो। जापान दुनिया के उन विकसित देशों में से एक है, जो तेज़ी से घटती जनसंख्या के गंभीर संकट से जूझ रहा है। हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों ने इस संकट की भयावह तस्वीर पेश की है। बीते वर्ष देश में केवल 6 लाख बच्चों का जन्म हुआ, जबकि 16 लाख लोगों की मृत्यु दर्ज की गई। यानी एक साल में जापान की आबादी लगभग 10 लाख कम हो गई। विशेषज्ञों का कहना है कि यह ट्रेंड अगर अगले दशक तक जारी रहा, तो जापान की जनसंख्या संरचना, अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा, यहां तक कि देश के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है।
ऐतिहासिक गिरावट
जापान के स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2024 में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। यह लगातार आठवां साल है जब देश की जन्म दर में गिरावट दर्ज की गई। दूसरी ओर, मृत्यु दर में तेज़ उछाल देखा गया है, जिसमें बुजुर्ग आबादी का बड़ा योगदान है। जापान की मीडियन एज अब लगभग 49 वर्ष हो चुकी है, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
कारण: बदलती जीवनशैली और सामाजिक चुनौतियां
विशेषज्ञ इस गिरावट के पीछे कई कारण गिनाते हैं—
विवाह की घटती दर: युवा वर्ग में विवाह के प्रति रुझान कम हो रहा है।
कैरियर और आर्थिक दबाव: नौकरी की अस्थिरता और महंगे जीवन-यापन की वजह से लोग बच्चों की जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं।
महिलाओं की कार्यक्षेत्र में बढ़ती भागीदारी: हालांकि यह एक सकारात्मक सामाजिक बदलाव है, लेकिन इसके साथ मातृत्व को लेकर देरी का चलन बढ़ा है।
ग्रामीण से शहरी पलायन: छोटे कस्बों और गांवों में आबादी तेजी से घट रही है, जिससे सामाजिक ढांचा भी कमजोर हो रहा है।
सरकार की कोशिशें, लेकिन नाकाफी नतीजे
जापान सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं—
बच्चों के लिए सब्सिडी और नकद प्रोत्साहन राशि।
मुफ्त या सस्ती चाइल्डकेयर सुविधाएं।
पेरेंटल लीव के कानूनों में सुधार।
ग्रामीण इलाकों में रहने के लिए आर्थिक लाभ और टैक्स छूट।
इसके बावजूद, जन्म दर को स्थिर करना तो दूर, उसकी गिरावट को रोकना भी संभव नहीं हो पा रहा है। प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने इसे “देश के अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा” करार देते हुए कहा था कि “अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 2030 के बाद स्थिति संभालना नामुमकिन हो जाएगा।”
जनसंख्या घटने के खतरे
जापान में तेज़ी से घटती जनसंख्या के कई खतरनाक असर सामने आ रहे हैं—
1. कामकाजी आबादी में कमी: कंपनियों को योग्य कर्मचारियों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
2. अर्थव्यवस्था पर दबाव: टैक्स देने वाले युवाओं की संख्या घटने से पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है।
3. ग्रामीण इलाकों का खाली होना: कई गांव पूरी तरह वीरान हो रहे हैं, जिससे सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय अर्थव्यवस्था खत्म हो रही है।
4. सैन्य और सुरक्षा चुनौतियां: घटती जनसंख्या के कारण रक्षा क्षेत्र में भी मानव संसाधन की समस्या बढ़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
जापान अकेला देश नहीं है जो कम जन्म दर की समस्या से जूझ रहा है। दक्षिण कोरिया, इटली, जर्मनी और कुछ स्कैंडिनेवियाई देशों में भी जन्म दर गिर रही है, लेकिन जापान की स्थिति विशेष रूप से गंभीर है क्योंकि यहां गिरावट दशकों से जारी है और बुजुर्ग आबादी का अनुपात बहुत ज्यादा है।
समाधान की तलाश
कई विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि जापान को जनसंख्या संतुलन के लिए प्रवासी नीति में बड़े बदलाव करने होंगे, लेकिन पारंपरिक और सांस्कृतिक कारणों से यह कदम राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। साथ ही, सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाना—जहां विवाह और मातृत्व को लेकर दबाव के बजाय प्रोत्साहन हो—भी जरूरी है।
जापान की घटती जनसंख्या केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संकट भी है। अगर सरकार और समाज ने मिलकर ठोस और दीर्घकालिक रणनीति नहीं अपनाई, तो आने वाले वर्षों में जापान न केवल आर्थिक रूप से कमजोर होगा, बल्कि उसकी वैश्विक पहचान और सांस्कृतिक धरोहर भी खतरे में पड़ सकती है।