

नई दिल्ली। (राजनीतिक डेस्क)

नई दिल्ली। (राजनीतिक डेस्क)
राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (PK) ने आखिरकार अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर बड़ा कदम उठा लिया है। लंबे समय से इस बात पर अटकलें लगाई जा रही थीं कि वे किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, और अब यह साफ हो गया है कि उन्होंने एक ब्राह्मण बहुल सीट को चुना है। यह फैसला यूं ही नहीं लिया गया, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक समीकरण, जातिगत गणित और रणनीतिक सोच छिपी हुई है। इस खबर में हम विस्तार से समझेंगे कि PK ने यह सीट क्यों चुनी, इसके पीछे कौन से फैक्टर काम कर रहे हैं और इसका उनके राजनीतिक करियर पर क्या असर होगा।
प्रशांत किशोर की राजनीति में एंट्री का सफर
प्रशांत किशोर का नाम भारतीय राजनीति में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। चुनावी रणनीतिकार के रूप में उन्होंने कई राज्यों में अपनी छाप छोड़ी—चाहे वह नरेंद्र मोदी का 2014 का लोकसभा चुनाव अभियान हो, नितीश कुमार का महागठबंधन हो या ममता बनर्जी की वापसी का रोडमैप। लेकिन लंबे समय तक बैकस्टेज राजनीति करने के बाद उन्होंने खुद फ्रंटलाइन में आने का फैसला किया।
पिछले दो वर्षों से वे ‘जन सुराज’ अभियान के जरिए जनता के बीच अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने पूरे बिहार और पड़ोसी इलाकों में जनता से संवाद किया और उनकी समस्याओं को समझा। अब जब चुनावी रणक्षेत्र में उतरने का समय आया, तो सीट का चयन सबसे बड़ा सवाल बन गया।

क्यों चुनी ब्राह्मण बहुल सीट?

क्यों चुनी ब्राह्मण बहुल सीट?
ब्राह्मण बहुल सीट का चयन महज संयोग नहीं है। इसके पीछे कई अहम कारण हैं:
1. ब्राह्मण मतदाताओं का निर्णायक प्रभाव
ब्राह्मण समुदाय परंपरागत रूप से राजनीति में प्रभावशाली माना जाता है। इस सीट पर लगभग 20-25% ब्राह्मण वोटर हैं, जो किसी भी प्रत्याशी को जीत दिलाने या हराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। PK जानते हैं कि अगर इस वर्ग का समर्थन मिल गया, तो बाकी समीकरण अपने आप बन सकते हैं।
2. सामाजिक संतुलन साधने की रणनीति
बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादव, कुर्मी, दलित और मुसलमान मतदाताओं का एक बड़ा वोट बैंक है। PK ने ऐसी सीट चुनी जहां ब्राह्मणों के अलावा ओबीसी और दलित वोटरों की भी मजबूत मौजूदगी हो। इससे उन्हें बहुजन समर्थन का लाभ मिलेगा और विरोधी दलों की जातिगत राजनीति को संतुलित किया जा सकेगा।
3. छवि और स्वीकार्यता का फैक्टर
प्रशांत किशोर को एक विकासवादी और आधुनिक सोच वाले नेता के रूप में देखा जाता है। ब्राह्मण समुदाय शिक्षा, विकास और सुधारवादी विचारों के प्रति अपेक्षाकृत ज्यादा झुकाव रखता है। इस दृष्टिकोण से PK की छवि इस वर्ग के साथ मेल खाती है।
4. विपक्षी दलों को चौंकाने की चाल
राजनीति में अक्सर सीट चयन के पीछे विपक्ष को असमंजस में डालने की रणनीति भी होती है। PK ने ऐसी सीट चुनी है जहां उनके उतरने की उम्मीद कम थी। इससे विरोधियों की तैयारियां कमजोर पड़ीं और PK को शुरुआती बढ़त मिल गई।
जातीय समीकरण का गणित
इस सीट पर ब्राह्मणों के अलावा अन्य समुदायों की संख्या भी महत्वपूर्ण है। अनुमानित जातीय संरचना इस प्रकार है:
ब्राह्मण मतदाता: 22-25%
ओबीसी (कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा): 28-30%
दलित/महादलित: 18-20%
मुस्लिम मतदाता: 12-15%
अन्य: 10%
इस गणित से साफ है कि कोई भी प्रत्याशी अकेले एक समुदाय के दम पर जीत दर्ज नहीं कर सकता। PK की रणनीति ब्राह्मण मतदाताओं को कोर सपोर्ट बेस बनाकर बाकी वर्गों को विकास और सुशासन के एजेंडे से जोड़ने की है।
PK का चुनावी एजेंडा क्या होगा?
प्रशांत किशोर हमेशा से ‘डेटा-ड्रिवन पॉलिटिक्स’ के लिए जाने जाते हैं। उनकी कैंपेनिंग का फोकस कुछ प्रमुख बिंदुओं पर रहेगा:
1. शिक्षा और रोजगार पर जोर
बिहार और आसपास के इलाकों में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। PK युवाओं को रोजगार और स्किल डेवलपमेंट का भरोसा देंगे।
2. भ्रष्टाचार विरोधी छवि
उन्होंने हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया है। यह मुद्दा ब्राह्मण और मध्यम वर्गीय मतदाताओं को आकर्षित करेगा।
3. स्थानीय मुद्दों पर फोकस
सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं और किसानों के लिए नीतियां उनकी प्राथमिकता में रहेंगी।
4. धर्म और जाति से ऊपर विकास का एजेंडा
वे खुद को एक ‘न्यू एज पॉलिटिकल लीडर’ के रूप में पेश करेंगे, जो जातिवाद से हटकर काम करना चाहता है।

क्या PK को मिलेगा ब्राह्मण वोट बैंक का पूरा समर्थन?

क्या PK को मिलेगा ब्राह्मण वोट बैंक का पूरा समर्थन?
हालांकि ब्राह्मण वोटर्स का झुकाव PK की ओर दिख रहा है, लेकिन यह भी सच है कि ब्राह्मण समुदाय अक्सर व्यक्तित्व, पार्टी और संभावनाओं के आधार पर वोट देता है। अगर उन्हें लगता है कि PK के जीतने की संभावना मजबूत है और उनका नेतृत्व स्थायी लाभ पहुंचाएगा, तो वे एकजुट होकर समर्थन कर सकते हैं।
लेकिन विपक्षी दल भी इस वोट बैंक को खींचने के लिए कई तरह की रणनीतियां अपना रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस वर्ग को साधने के लिए प्रयासरत हैं।
विपक्षी दलों की रणनीति और PK की चुनौती
प्रशांत किशोर का राजनीतिक सफर अभी शुरुआती दौर में है। विपक्षी दल उनकी ‘बाहरी छवि’ को मुद्दा बना सकते हैं और यह कह सकते हैं कि उन्होंने अभी तक कोई जनप्रतिनिधित्व नहीं किया है। इसके अलावा जातिगत राजनीति में अनुभवी नेता PK को रोकने के लिए गठजोड़ भी कर सकते हैं।
PK को सबसे बड़ी चुनौती होगी—स्थायी संगठन खड़ा करना और भरोसा जीतना। सिर्फ चुनावी रणनीति बनाना और चुनाव जीतना अलग बात है, लेकिन जनसंपर्क और विकास कार्यों से लोगों का दिल जीतना ज्यादा कठिन है।
क्या PK का दांव सफल होगा?
ब्राह्मण बहुल सीट चुनकर प्रशांत किशोर ने यह संदेश दिया है कि वे राजनीति को केवल जातीय चश्मे से नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक संतुलन और विकास के एजेंडे से देखना चाहते हैं। उनका यह दांव कितना सफल होगा, यह आने वाले समय में मतदाता तय करेंगे। लेकिन एक बात तय है—इस सीट का चुनाव अब सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रयोग बन चुका है, जिस पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं।