
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने बढ़ाई कांग्रेस की bargaining power, RJD में बढ़ी सीट शेयरिंग की टेंशन
बिहार में साढ़े तीन दशक के लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस फिर सक्रिय हो रही है। राहुल गांधी की 16-दिवसीय ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने पार्टी की bargaining power को मजबूत किया, जिससे RJD को विधानसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर नई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
बैकग्राउंड और यात्रा का सार
यात्रा का मार्ग: यह यात्रा मुख्यतः उत्तर बिहार के छह जिलों में 23 विधानसभा सीटों से गुज़री, जिनमें बेतिया, नौतन, ढाका, चिरैया, मोतिहारी, नरकटिया, हरसिद्धि और सुगौली शामिल हैं।
मिशन चंपारण: कांग्रेस ने बेतिया और नौतन जैसे क्षेत्रीय तालमेल वाले इलाकों में विशेष ध्यान दिया, जहाँ पिछली बार वे दूसरे नम्बर पर रही थीं।
मिशन की रणनीतिक तैयारी: इस यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं में जोश और ऊर्जा जगाई, जिससे पार्टी का जनाधार मजबूती से उभरकर सामने आया।
कांग्रेस की बढ़ती bargaining power और गठबंधन में RJD की टेंशन
गठबंधन में कांग्रेस का स्थान: इस यात्रा के बाद कांग्रेस महागठबंधन में सीट-बंटवारे में अधिक दबाव में दिख रही है।
RJD में असंतोष: RJD के लिए यह चिंता का विषय बन गया है कि कहीं कांग्रेस महागठबंधन में बराबरी के स्तर पर अपनी मांगें न बढ़ा ले, जिससे सीट बंटवारे की बातचीत टेंशनपूर्ण हो सकती है।
पटना में यात्रा का समापन और प्रदर्शन
पटना मार्च: यात्रा का समापन ‘गांधी से अम्बेडकर’ नामक पैदल मार्च के रूप में गांधी मैदान से अम्बेडकर पार्क तक हुआ, जिसमें राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, झारखंड CM हेमंत सोरेन समेत कई विपक्षी नेता शामिल हुए।
संघर्ष का मंच: इस आयोजन को विपक्ष के लिए जन-आधार और ताकत दिखाने वाले मंच के रूप में देखा गया, जिससे पार्टी को सीटों की मांग में मजबूती मिलने की उम्मीद बनी।
नेतृत्व पर चुप्पी और सीट बंटवारे की रणनीति
Tejashwi का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करना: यात्रा के दौरान RJD नेता तेजस्वी यादव ने खुद को सीएम फेस घोषित किया, जिसे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का समर्थन भी मिला। इस कदम ने गठबंधन के अंदर एक स्पष्ट नेतृत्व संकेत भेजा।
कांग्रेस की हिचकिचाहट: वहीं कांग्रेस अभी तक तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने से कतरा रही है, ताकि सीटों में Bargaining Power बनी रहे और वह गठबंधन में Junior Partner न बन जाए।
2020 की परिस्थितियाँ दोहराने से बचाव: कांग्रेस रणनीतिक रूप से सीट-बंटवारे में पिछली बार की कमजोरी—जहाँ RJD ने देरी से बातचीत की वजह से अकेले टिकट बांट दिए थे—को दोहराना नहीं चाहती।
विश्लेषकों का दृष्टिकोण
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं: यह यात्रा कांग्रेस की बिहार में रणनीतिक वापसी का प्रतीक है—जिससे पार्टी गठबंधन में अपनी अहमियत फिर स्थापित करना चाहती है।
राजनीतिक माहौल गर्म: आगामी चुनाव (अक्टूबर-नवंबर 2025 में संभावित) की तैयारी के बीच यह यात्रा विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की सक्रिय भागीदारी को रेखांकित कर रही है।
समापन व आगे का परिदृश्
राहत के संकेत: यह यात्रा कांग्रेस को बिहार में सक्रियता, जन-आधार और गठबंधन में bargaining leverage दिलाने में कारगर रही।
गठबंधन की सफलता के लिए सीट-शेयरिंग की बातचीत अब निर्णायक चरण में है—जहाँ कांग्रेस की मांगें और RJD की प्रतिक्रिया आगे की राजनीतिक दिशा तय करेंगी।
चुनाव पूर्व यह तय करना होगा कि गठबंधन किस तरह से एकता और आपसी संतुलन बनाए रखता है—जिसमें कांग्रेस की bargaining power एक उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती है।