राज ठाकरे बनाम निशिकांत दुबे: ‘पटक-पटक’ से लेकर ‘डुबो-डुबो’ तक पहुंची जुबानी जंग, भाषा पर गरमाई सियासत

राज ठाकरे बनाम निशिकांत दुबे: ‘पटक-पटक’ से लेकर ‘डुबो-डुबो’ तक पहुंची जुबानी जंग, भाषा पर गरमाई सियासत

मुंबई/नई दिल्ली। महाराष्ट्र में भाषा की सियासत एक बार फिर सुर्खियों में है। मराठी बनाम हिंदी की बहस अब केवल विचारधारा तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब नेताओं के बयानों में आक्रामक शब्दावली और व्यक्तिगत हमले भी देखने को मिल रहे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे के बीच चल रही जुबानी जंग ने इस बहस को नया मोड़ दे दिया है।

जहां एक ओर राज ठाकरे ने हिंदी बोलने वालों को निशाना बनाते हुए ‘डुबो-डुबोकर मारने’ की बात कही, वहीं दूसरी तरफ निशिकांत दुबे ने भी पलटवार करते हुए तंज कसा, “क्या मैंने हिंदी सिखा दी?”

कहां से शुरू हुआ विवाद?

इस पूरे विवाद की शुरुआत हुई थी जब निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रही बहस के संदर्भ में एक बयान देते हुए कहा था कि अगर किसी ने हिंदी का विरोध किया या उत्तर भारतीयों को तंग किया, तो “पटक-पटक के मारेंगे”। यह बयान मीडिया में आते ही विवाद का विषय बन गया और MNS प्रमुख राज ठाकरे ने पलटवार करते हुए कहा, “हम तो डुबो-डुबोकर मारेंगे”।

राज ठाकरे यहीं नहीं रुके। उन्होंने एक जनसभा में कहा कि यदि महाराष्ट्र में कोई मराठी बोलने से इंकार करता है, तो “एक थप्पड़ मारो”। ठाकरे के इस बयान को कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने ‘भड़काऊ’ और ‘उकसावे वाला’ बताया।

दुबे का पलटवार: “मैंने हिंदी सिखा दी?”

राज ठाकरे के इस बयान के बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी ट्विटर (अब X) पर तंज कसते हुए कहा, “मैंने हिंदी सिखा दी क्या ठाकरे जी को?” उन्होंने ठाकरे के बयान की एक क्लिप साझा करते हुए यह टिप्पणी की, जो तेजी से वायरल हो गई।

निशिकांत दुबे ने आगे कहा कि “भारत विविध भाषाओं वाला देश है, लेकिन किसी भी भाषा की जबरदस्ती नहीं की जा सकती, और न ही किसी दूसरी भाषा का अपमान किया जाना चाहिए। ठाकरे का यह बयान न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह क्षेत्रीय कट्टरता को बढ़ावा देने वाला भी है।”

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर पुराना तनाव

महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी, विशेषकर उत्तर भारतीयों को लेकर तनाव कोई नया मुद्दा नहीं है। इससे पहले भी MNS और शिवसेना ने हिंदी भाषी प्रवासियों को लेकर कई बार सख्त रवैया अपनाया है। रेलवे भर्ती से लेकर ऑटो रिक्शा लाइसेंस और व्यापारिक गतिविधियों में स्थानीय भाषा के इस्तेमाल को लेकर अक्सर टकराव होता रहा है।

राज ठाकरे की राजनीति अक्सर ‘मराठी मानुस’ के एजेंडे के इर्द-गिर्द घूमती रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने अपने रुख में नरमी भी दिखाई थी, लेकिन हालिया बयानों से लग रहा है कि वे एक बार फिर पुरानी रणनीति पर लौटते दिखाई दे रहे हैं।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

राज ठाकरे और निशिकांत दुबे के इस बयान युद्ध पर विपक्ष ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि “नेताओं को भाषा के मुद्दे पर बयानबाज़ी करते समय संयम बरतना चाहिए। यह देश सभी भाषाओं का सम्मान करता है।”

कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “राज ठाकरे को अब यह समझ लेना चाहिए कि मुंबई सिर्फ मराठी नहीं, पूरे भारत की है। ऐसी बयानबाज़ी से नफरत ही फैलेगी।”

कानूनी कार्रवाई की मांग

राज ठाकरे के ‘थप्पड़ मारो’ बयान को लेकर कुछ सामाजिक संगठनों और एक्टिविस्ट्स ने राज्य चुनाव आयोग और गृह विभाग से कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि इस प्रकार के बयान चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन भी हो सकते हैं, और इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है।

वहीं कुछ भाजपा नेताओं ने भी ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।

सोशल मीडिया पर बहस तेज

इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर भी ज़ोर पकड़ लिया है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग दोनों नेताओं के बयानों की वीडियो क्लिप्स साझा कर रहे हैं।
जहां एक तबका राज ठाकरे के ‘मराठी स्वाभिमान’ की बात कर समर्थन कर रहा है, वहीं दूसरा तबका इसे क्षेत्रीय कट्टरता और हिंसा भड़काने वाला बयान बता रहा है।

निष्कर्ष

राज ठाकरे और निशिकांत दुबे के बीच चल रही यह जुबानी जंग भले ही एक राजनीतिक बयानबाज़ी लगे, लेकिन यह मुद्दा एक गंभीर सामाजिक बहस की ओर इशारा करता है – क्या भाषाई अस्मिता के नाम पर हिंसा की भाषा को सही ठहराया जा सकता है?

भारत एक बहुभाषी देश है और यहां हर भाषा को सम्मान का अधिकार है। नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके शब्द लाखों लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में बयानबाज़ी में मर्यादा और संविधान की सीमाओं का पालन करना नितांत आवश्यक है।

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