
राजस्थान उच्च न्यायालय ने आसाराम बापू की अंतरिम-जमानत बढ़ाई—हृदय रोग विशेषज्ञ समेत मेडिकल पैनल से स्वास्थ्य रिपोर्ट तलब
जयपुर, 11 अगस्त 2025 — राजस्थान उच्च न्यायालय (जोधपुर), जिसने हाल ही में आसाराम बापू की अंतरिम-जमानत 12 अगस्त से बढ़ाकर 29 अगस्त 2025 तक कर दी है, यह निर्णय उनकी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति और हालिया चिकित्सीय रिपोर्टों के आधार पर लिया गया। साथ ही, न्यायालय ने एक विशेष मेडिकल पैनल की नियुक्ति की भी मंजूरी दी है, जो उनकी सेहत का विस्तारपूर्वक परीक्षण करेगा।
आसाराम बापू—दिवंगत भारतीय साधु—पर 2013 में एक नाबालिग के साथ हुए बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि के बाद उन्हें 2018 में जीवन-कैद की सजा सुनाई गई थी। इस केस में विशेष अनुसूचित जाति/जनजाति (POCSO) कोर्ट द्वारा दंडित किया गया था।
जनवरी 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के कारण मुआवज़े-स्वरूप अंतरिम-जमानत दी थी, जो 31 मार्च 2025 तक मान्य थी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी इसी आधार पर जनवरी में जमानत दी और बाद में निरंतर विस्तार होता गया—जैसे 1 जुलाई, 9 जुलाई, 12 अगस्त तक—जो अब 29 अगस्त तक बढ़ गया है।
न्यायालय का ताज़ा फैसला और कारण (Latest Court Order & Rationale)
न्यायालय द्वारा जमानत की अवधि: 12 अगस्त के बजाय अब यह अंतरिम-जमानत 29 अगस्त 2025 तक बढ़ाई गई है।
स्वास्थ्य आधार: इन्हें अस्पताल में गंभीर हालात में भर्ती बताया जा रहा है—विशेषतः इंडोर के Jupiter Hospital की ICU स्थिति और अत्यधिक उच्च ट्रोपोनिन (हृदय संबंधी मार्कर) स्तर रिपोर्ट की वजह से। Gujarat HC ने पहले भी उन्हें इसी आधार पर 21 अगस्त तक जमानत दी थी।
मेडिकल पैनल की स्थापना: Jodhpur बेंच ने
Ahmedabad के एक सरकारी अस्पताल से एक पैनल गठित करने का निर्देश दिया है, जिसमें कार्डियोलॉजिस्ट (हृदय विशेषज्ञ) और न्यूरोलॉजिस्ट दोनों शामिल होंगे। इस पैनल से ताज़ा रिपोर्ट 27 अगस्त तक कोर्ट में पेश करने को कहा गया है।
प्रवर्तन और निगरानी: जमानत के दौरान आसाराम पर अपने अनुयायियों के साथ सभा या प्रवचन न करने आदि पहले से लगी स्थितियों का पालन सुनिश्चित करने हेतु कोर्ट सतर्क है। पूर्व में भी कोर्ट ने ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया था।
बयान:
वकील निश्चल बौड़ा ने ताज़ा मेडिकल रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत किए, जो कुरकुरा स्वास्थ्य हालात दर्शाते थे।
न्यायमूर्ति मंडल: न्यायाधीश दिवेश मेहता और न्यायाधीश विनीट कुमार माथुर की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
विश्लेषण:
1. न्याय आवश्यकता बनाम संवेदनशीलता
कोर्ट का दृष्टिकोण संतुलन पर आधारित है: एक ओर मानवीय स्वास्थ्य देखभाल आवश्यक है, और दूसरी ओर अपराध की संवेदनशीलता (नाबालिग का रेप) को देखते हुए कानून व्यवस्था की रक्षा।
2. नियमों का कड़ाई से पालन
अदालत ने जमानत के दौरान अनुयायियों से जुड़ी गतिविधियों पर पाबंदी की है और डॉक्टरों की रिपोर्ट की तीव्र समीक्षा के लिए पैनल तैनात किया है—यह अदालत की संजीदगी को दर्शाता है।
3. राहतकर्ताओं की प्रतिक्रिया
हम ऐसा अनुमान नहीं लगा सकते कि पीड़िता पक्ष ने क्या प्रतिक्रिया दी, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में उनकी सुरक्षा और निर्भीकता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
राजस्थान उच्च न्यायालय की यह हालिया कार्रवाई—आसाराम बापू की जमानत में दो सप्ताह का अतिरिक्त विस्तार—उनकी स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए मानवतावादी कदम माना जा सकता है। साथ ही, कोर्ट द्वारा विशेष मेडिकल पैनल की मांग यह सुनिश्चित करती है कि स्वास्थ्य संबंधी दावे पारदर्शी और तथ्यात्मक दृष्टि से पुष्ट हों।
इस प्रकार का फैसला न्याय प्रक्रिया में संवेदनशीलता और सुरक्षा के बीच संतुलन की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है।