
रांची: झारखंड की राजधानी रांची में शनिवार को कुड़मी समाज द्वारा की जा रही मांगों और आंदोलन का आदिवासी संगठनों ने कड़ा विरोध किया। इस विरोध के तहत विभिन्न आदिवासी संगठनों और जनजातीय समाज के लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया और सरकार से कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) की मान्यता देने के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करने की बात कही। आदिवासी समाज का कहना है कि उनकी ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को किसी भी हाल में कमजोर नहीं किया जा सकता।
घटना का विवरण
रांची में आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग पहुंचे। प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए कहा कि कुड़मी समाज की मांगें पूरी तरह से गैर-जरूरी और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत हैं। आदिवासी समाज का तर्क है कि यदि कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाता है, तो आदिवासियों के हक, अधिकार और आरक्षण पर सीधा असर पड़ेगा।
प्रदर्शनकारी संगठनों ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों से मांग की है कि वे इस मुद्दे पर कोई सकारात्मक पहल न करें, अन्यथा आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
आदिवासी संगठनों की प्रमुख बातें
1. आदिवासी महासभा ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए है।
2. युवा आदिवासी संगठन के नेताओं ने कहा कि उनकी पीढ़ियों ने संघर्ष करके अपने अधिकार हासिल किए हैं और अब उन्हें छीनने का प्रयास हो रहा है।
3. महिला आदिवासी मोर्चा ने भी इस विरोध में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कहा कि यह लड़ाई आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए है।
कुड़मी समाज की मांगें
कुड़मी समाज लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है। उनका कहना है कि वे ऐतिहासिक रूप से आदिवासी रहे हैं और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
ऐतिहासिक तर्क: कुड़मी समाज का दावा है कि ब्रिटिश शासन काल तक वे आदिवासी श्रेणी में आते थे।
आर्थिक स्थिति: अधिकांश कुड़मी परिवार खेती पर निर्भर हैं और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
सरकारी मान्यता: उनके मुताबिक, सही पहचान न मिलने से वे योजनाओं और आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
आदिवासी समाज का विरोध क्यों?
आदिवासी संगठनों का कहना है कि –
यदि कुड़मी समाज को ST में शामिल कर लिया जाता है, तो आदिवासी समुदाय को मिलने वाला आरक्षण का लाभ बंट जाएगा।
आदिवासी समाज की संस्कृति और पहचान कमजोर हो जाएगी।
यह कदम राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जा रहा है।
ऐतिहासिक दस्तावेजों में कुड़मी समाज को आदिवासी श्रेणी में नहीं दिखाया गया है।
प्रदर्शन के दौरान माहौल
रांची की सड़कों पर आदिवासी समाज के लोग हाथों में झंडे, बैनर और तख्तियां लिए उतरे।
जगह-जगह नारेबाजी की गई।
“कुड़मी समाज को ST का दर्जा नहीं चलेगा” जैसे नारे गूंजे।
कई स्थानों पर पुलिस बल की तैनाती की गई ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
रांची जिला प्रशासन ने इस विरोध प्रदर्शन को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए पुख्ता इंतजाम किए।
शहर के कई इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया।
संवेदनशील इलाकों में धारा 144 लागू रही।
प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की और शांति बनाए रखने की अपील की।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर राज्य की राजनीति भी गरमा गई है।
सत्तारूढ़ दल का कहना है कि सरकार सभी समुदायों की मांगों को ध्यान से सुन रही है, लेकिन किसी के अधिकारों से समझौता नहीं किया जाएगा।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है।
कुछ दलों ने यह भी कहा कि यह मामला केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए राज्य सरकार को गुमराह करने वाले बयान नहीं देने चाहिए।
विशेषज्ञों की राय
सामाजिक विज्ञानियों और इतिहासकारों का मानना है कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है।
ऐतिहासिक साक्ष्य यह बताते हैं कि कुड़मी समाज कभी आदिवासी श्रेणी में नहीं रहा।
यदि उन्हें ST का दर्जा मिल जाता है, तो इससे अन्य आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है।
इस मामले पर निर्णय लेने से पहले गहन अध्ययन और रिपोर्ट की आवश्यकता है।
भविष्य की रणनीति
आदिवासी संगठनों ने साफ कहा है कि यदि उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो आंदोलन और उग्र होगा।
आने वाले दिनों में राज्यव्यापी चक्का जाम और बड़े धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दी गई है।
इसके अलावा, आदिवासी संगठन दिल्ली कूच करने की भी तैयारी में हैं।
आम जनता की प्रतिक्रिया
इस विवाद पर आम लोगों की भी अलग-अलग राय सामने आई।
आदिवासी समाज से जुड़े लोग इसे अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा का आंदोलन मान रहे हैं।
वहीं कुड़मी समाज से जुड़े लोग इस विरोध को अनुचित बता रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें बराबरी का हक मिलना चाहिए।
आम नागरिकों का कहना है कि सरकार को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे समाज में विभाजन और संघर्ष बढ़े।
रांची में कुड़मी समाज और आदिवासी समाज के बीच चल रहा यह विवाद झारखंड की राजनीति और सामाजिक संरचना पर बड़ा असर डाल सकता है। एक ओर कुड़मी समाज अपने ऐतिहासिक और सामाजिक आधार पर ST का दर्जा मांग रहा है, तो दूसरी ओर आदिवासी समाज अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आया है। यह विवाद न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे पूर्वी भारत की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।