
झारखंड की राजधानी रांची सहित पूरे प्रदेश में इन दिनों कुरमी समाज को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) की सूची में शामिल करने की मांग तेज हो गई है। कुरमी समाज का कहना है कि वे मूल रूप से आदिवासी समुदाय से जुड़े रहे हैं और वर्षों से सामाजिक-आर्थिक शोषण का शिकार होते आए हैं। दूसरी ओर, राज्य के कई आदिवासी संगठन इस मांग का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कुरमी समाज को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कर दिया गया, तो आदिवासियों के आरक्षण और अधिकारों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
कुरमी समाज की मांग क्यों?
कुरमी समाज लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि उनका मूल इतिहास आदिवासी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। समाज के नेताओं का कहना है कि—
अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान प्रशासनिक त्रुटियों के कारण उन्हें आदिवासी सूची से बाहर कर दिया गया।
शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में पिछड़ेपन के चलते उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता है।
1931 की जनगणना में कुरमी समाज को आदिवासी दर्जा प्राप्त था।
कुरमी समाज का तर्क है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने से सामाजिक न्याय की अवधारणा मजबूत होगी और वास्तविक समानता स्थापित होगी।
आदिवासी संगठनों का विरोध
दूसरी ओर, आदिवासी संगठनों और छात्र संघों ने इसका कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि—
कुरमी समाज संख्या में बड़ा और आर्थिक रूप से मजबूत है।
अगर उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया, तो वास्तविक आदिवासी समुदाय (मुंडा, उरांव, संथाल, हो, खड़िया आदि) अपने आरक्षण से वंचित हो जाएंगे।
आदिवासी समाज की अस्मिता और पहचान पर संकट खड़ा हो जाएगा।
रांची, जमशेदपुर, बोकारो और गिरिडीह में कई जगहों पर आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन कर सरकार से कुरमी समाज की मांग को खारिज करने की अपील की।
राजनीतिक दृष्टिकोण
यह मुद्दा अब पूरी तरह राजनीतिक रंग भी लेने लगा है।
सत्ताधारी दल के कुछ नेता कुरमी समाज की मांग का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे एक बड़े वोट बैंक पर असर पड़ेगा।
विपक्षी दल इसे सरकार की “वोट बैंक राजनीति” बताते हुए आदिवासियों को बरगलाने का आरोप लगा रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से अभी इस पर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, लेकिन गृह मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय को कई ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं।
आंदोलन और प्रदर्शन
कुरमी समाज ने रांची में विशाल रैली निकालकर अपनी मांगों को रखा। हजारीबाग, धनबाद और चाईबासा में भी विरोध-समर्थन में सभाएं आयोजित हुईं।
कुरमी समाज ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे।
दूसरी ओर, आदिवासी छात्र संघों ने भी सरकार को आगाह किया है कि अगर कुरमी समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया, तो वे “आदिवासी पहचान बचाओ आंदोलन” चलाएंगे
विशेषज्ञों की राय
समाजशास्त्रियों और इतिहासकारों का कहना है कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है।
अगर कुरमी समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाता है, तो पूरे देश में अन्य जातियों के लिए भी यह एक नजीर बन सकता है।
इससे सामाजिक संतुलन बिगड़ने और आरक्षण व्यवस्था पर व्यापक असर पड़ने की संभावना है।
झारखंड पर असर
यह विवाद झारखंड की राजनीति और समाज दोनों पर गहरा असर डाल सकता है।
आदिवासी समाज झारखंड की आत्मा माना जाता है, ऐसे में उनकी असहमति को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।
दूसरी ओर, कुरमी समाज की बड़ी जनसंख्या भी राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है।
आने वाले विधानसभा चुनावों पर इस मुद्दे का सीधा असर पड़ सकता है।
रांची से उठी यह बहस अब पूरे झारखंड और आसपास के राज्यों में फैल रही है। एक ओर कुरमी समाज अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की मांग कर रहा है, वहीं आदिवासी संगठन इसे अपनी अस्मिता पर हमला मानकर विरोध कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा झारखंड की राजनीति और समाज दोनों के लिए सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा हो सकता है।