
RBI का बड़ा निर्णय
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती का ऐलान किया है। कटौती के बाद रेपो रेट 5.50% से घटकर 5.25% हो गया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब देश में महंगाई नियंत्रित है और आर्थिक गति को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस हो रही है।
गवर्नर का बयान और मीटिंग का फैसला
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बताया कि यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है। उन्होंने कहा कि स्थिर महंगाई और अर्थव्यवस्था में सुधार को देखते हुए ब्याज दरों में राहत देना जरूरी था, जिससे बैंकिंग सेक्टर को पूंजी सस्ती दरों पर मिलेगी और ब्याज दरें घटेंगी।
आम जनता को मिलेगा सीधा फायदा
रेपो रेट घटने का सबसे बड़ा लाभ आम उपभोक्ताओं को मिलेगा। अब बैंकों के लिए RBI से पैसे लेना सस्ता होगा, इसलिए वे ग्राहकों को भी कम ब्याज दरों पर लोन दे पाएंगे। इससे होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की EMI में कमी आएगी, जिससे उपभोक्ताओं की मासिक बचत बढ़ेगी।
लोन और EMI पर असर
कम ब्याज दरों के कारण लाखों लोन धारकों की मासिक किस्तें कम होंगी। जो लोग नया लोन लेने की सोच रहे हैं, उन्हें कम ब्याज पर कर्ज मिलेगा। इससे रियल एस्टेट और ऑटो सेक्टर में मांग बढ़ने की संभावना है, जिसका सकारात्मक प्रभाव समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
आर्थिक विकास को मिलेगी गति
RBI ने संकेत दिया है कि आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिए भविष्य में भी ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं। केंद्रीय बैंक बैंकिंग सिस्टम में liquidity बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) खरीद भी करेगा, जिससे बाजार में नकदी की उपलब्धता बढ़ेगी।
विभिन्न सेक्टर्स में मिलेगा बढ़ावा
विशेषज्ञों का मानना है कि रेपो रेट में कटौती से रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल, MSME और वित्तीय बाजारों को बड़ा फायदा होगा। कम ब्याज दरों से इन सेक्टरों में निवेश और मांग दोनों बढ़ेंगे, जिससे विकास की रफ्तार और तेज होगी।
आम उपभोक्ता और उद्योगों के लिए राहत
कुल मिलाकर, रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती सामान्य उपभोक्ता से लेकर उद्योगों तक सभी के लिए राहत लेकर आई है। यह फैसला अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और विकास को स्थिर बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
यह लेख विश्वासनीय वित्तीय स्रोतों और RBI के आधिकारिक बयानों पर आधारित है। लोन और ब्याज दरों से जुड़े अंतिम निर्णय बैंक की अपनी नीतियों पर निर्भर करते हैं। किसी भी वित्तीय निर्णय से पहले बैंक या वित्तीय सलाहकार की सलाह लेना आवश्यक है।
