धर्म: जगन्नाथ यात्रा के बाद क्या होता है रथ के पहियों और लकड़ी का? जानिए परंपरा से जुड़ी अनोखी बातें।
हर साल ओडिशा के पुरी में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस भव्य यात्रा के बाद रथों के विशाल पहिए और लकड़ियों का क्या किया जाता है? आइए जानते हैं इस अनोखी परंपरा के पीछे की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता।
पुरी की रथ यात्रा में तीन भव्य रथ बनाए जाते हैं—भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए। इन रथों का निर्माण हर साल नए सिरे से किया जाता है, जिसमें खास किस्म की लकड़ियां इस्तेमाल होती हैं। ये रथ यात्रा के बाद फिर कभी प्रयोग में नहीं लाए जाते।
रथ के पहियों का क्या होता है?
रथ यात्रा समाप्त होने के बाद इन रथों को धीरे-धीरे तोड़ा जाता है। सबसे पहले इनके पहिए अलग किए जाते हैं। मान्यता है कि इन पहियों को कोई भी आम व्यक्ति छू नहीं सकता। इन्हें मंदिर के विशेष सेवक ‘महाराणा’ या ‘कारिगर’ बड़ी श्रद्धा से हटाते हैं।
ये पहिए फिर मंदिर परिसर के भीतर सुरक्षित स्थान पर रखे जाते हैं और बाद में इनका उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए होता है। कुछ पहियों को मंदिर के पवित्र अग्निकुंड में समर्पित कर दिया जाता है।
लकड़ी कहां जाती है?
रथ की लकड़ियों को श्रीमंदिर के अंदर स्थित विशेष कक्षों में रखा जाता है। इन लकड़ियों का इस्तेमाल भगवान जगन्नाथ के रसोईघर (महाप्रसाद के लिए उपयोग होने वाले ‘अंतःपुर’) में ईंधन के तौर पर किया जाता है। यह प्रक्रिया भी पूरी तरह शुद्ध और धार्मिक विधियों से की जाती है।
इसके अलावा कुछ लकड़ियों को विशिष्ट धार्मिक कार्यों—जैसे पूजा, हवन या मंदिर की मरम्मत—में भी लगाया जाता है।