
धर्म: भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है? पौराणिक मान्यताओं से लेकर वैज्ञानिक कारणों तक जानिए इसका रहस्य।
भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। श्रावण मास, महाशिवरात्रि या किसी भी सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पण के साथ बेलपत्र चढ़ाना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव को ही बेलपत्र क्यों अर्पित किया जाता है?
पौराणिक मान्यताएं:
1. समुद्र मंथन से जुड़ा रहस्य:
पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ, तब उसमें से विष (हलाहल) निकला। उस विष को भगवान शिव ने लोक-कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया। इससे उनकी देह में गर्मी उत्पन्न हुई। उस गर्मी को शांत करने के लिए उन्हें जल और शीतल वस्तुओं की आवश्यकता हुई। बेलपत्र को शीतल और शुद्ध माना जाता है, इसीलिए शिव को बेलपत्र अर्पित किया जाता है।
2. त्रिदेव का वास:
बेलपत्र में ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवों का वास माना जाता है। इसलिए इसे अर्पित करना संपूर्ण देवताओं की पूजा के समान फलदायी माना गया है।
3. तीन पत्तों का प्रतीक:
बेलपत्र के पत्ते हमेशा त्रिपत्र (तीन पत्तियों वाले) होते हैं, जो भगवान शिव के त्रिनेत्र, त्रिशूल और त्रिगुण स्वरूप का प्रतीक हैं – सत्त्व, रज और तम।
बेलपत्र चढ़ाने की विधि:
बेलपत्र साफ, ताजे और बिना कटे-फटे होने चाहिए।
पत्तियों की डंडी (डंठल) नीचे की ओर होनी चाहिए।
उस पर यदि “ॐ नमः शिवाय” लिखा हो तो विशेष फल मिलता है।
सोमवार या श्रावण मास में बेलपत्र अर्पण विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
बेलपत्र में औषधीय गुण होते हैं। यह वात-पित्त को संतुलित करता है, एंटीऑक्सिडेंट होता है और वातावरण को शुद्ध करता है। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से आसपास का वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
बेलपत्र केवल एक पत्ता नहीं है, बल्कि यह आस्था, विज्ञान और संस्कृति का समन्वय है। शिवभक्तों के लिए यह भक्ति का माध्यम है, और हमारे ऋषि-मुनियों ने इसके महत्व को युगों पहले ही जान लिया था।
अस्वीकरण: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य पाठकों को सांस्कृतिक और धार्मिक जानकारी देना है, न कि किसी विशेष मान्यता को थोपना।