दसलक्षण पर्व

देवघर, झारखंड।जैन धर्म के महान पर्व दसलक्षण पर्व पर देवघर निवासी श्रीमती रेणु जैन (धर्मपत्नी – श्री राजीव जैन) ने 10 दिवसीय कठिन उपवास सम्पन्न कर समाज और नगर का मान बढ़ाया है। महाराष्ट्र के सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी में निर्यापक मुनि श्री 108 वीर सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में यह तपस्या पूर्ण हुई। देवघर लौटने पर जैन समाज ने रेणु जैन का हार्दिक स्वागत और सम्मान किया।
दसलक्षण पर्व का महत्व
जैन धर्म में दसलक्षण पर्व को आत्म-शुद्धि, तपस्या और त्याग का पर्व माना जाता है। यह पर्व पर्युषण महापर्व की समाप्ति के बाद आता है और दस दिनों तक चलता है।
इसमें धर्म के दस लक्षणों –
क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य
का पालन करने का संदेश दिया जाता है।
जैन धर्म के अनुसार, इन दस लक्षणों के अनुसरण से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष मार्ग पर गति मिलती है।
उपवास के लाभ
रेणु जैन ने दस दिनों का उपवास कर यह सिद्ध कर दिया कि कठिन साधना से आत्मा की उन्नति संभव है।
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार उपवास के प्रमुख लाभ हैं—
आत्म-शुद्धि: मन और आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग।
इच्छाओं पर नियंत्रण: भोजन व भौतिक इच्छाओं से दूरी।
मन पर नियंत्रण: क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे कषायों का दमन।
कर्मों का नाश: पिछले जन्मों के संचित कर्मों से मुक्ति का साधन।
आध्यात्मिक उन्नति: संयम और तपस्या से आत्मबल की वृद्धि।
मोक्ष की ओर अग्रसर: संसार के दुखों से मुक्ति की ओर कदम।
रेणु जैन की कठिन तपस्या
श्रीमती रेणु जैन ने इस पर्व के दौरान 10 दिन का निरंतर उपवास कर साधना की।
कठिन तपस्या को पूरा करने के बाद जब वे देवघर लौटीं तो समाज ने उन्हें हर्षोल्लास से सम्मानित किया।
महाराष्ट्र के कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र में, जहाँ हजारों जैन साधक तपस्या करते हैं, वहां वीर सागर जी महाराज के मार्गदर्शन में यह साधना सम्पन्न हुई।

देवघर में हुआ सम्मान समारोह
देवघर वापसी पर स्थानीय जैन समाज ने भव्य स्वागत किया।
इस अवसर पर जैन समाज के अनेक गणमान्य सदस्य मौजूद रहे, जिनमें—
मंत्री सुरेश जैन पाटनी, विनोद जैन, डॉ. आनंद जैन, जुगल किशोर जैन, सुरेश जैन, प्रमोद जैन, चित्रा जैन, कीर्ति जैन, मीना जैन, इन्द्रा जैन
आदि ने भाग लेकर रेणु जैन को सम्मानित किया।
सभी ने एक स्वर में कहा कि उनका यह तप समाज को नई दिशा और प्रेरणा देता है।
जैन धर्म में उपवास का आध्यात्मिक दृष्टिकोण
जैन दर्शन के अनुसार, उपवास केवल शारीरिक अभ्यास नहीं है बल्कि आत्मा की साधना है।
इससे मनुष्य अपनी इच्छाओं, वासनाओं और आसक्तियों पर नियंत्रण पाता है।
जैन आचार्यों का कहना है कि—
उपवास से आत्मबल और धैर्य बढ़ता है।
व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है।
तपस्या और संयम के अभ्यास से मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होता है।

कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र का महत्व
महाराष्ट्र स्थित कुंथलगिरी जैन धर्म का पावन तीर्थ है।
यह स्थान अनेक संतों, आचार्यों और साधकों की तपस्थली रहा है।
यहीं पर रेणु जैन ने अपने 10 दिवसीय उपवास को सफलतापूर्वक पूरा किया।
कहा जाता है कि इस क्षेत्र में साधना करने से आत्मिक शांति और दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है।
समाज के लिए प्रेरणा
रेणु जैन का यह उपवास न केवल उनकी व्यक्तिगत तपस्या है, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा है।
आज के समय में जब भौतिकता की ओर आकर्षण बढ़ रहा है, ऐसे में उनका संयम और तप सभी को धर्ममय जीवन जीने की दिशा देता है।
उनकी साधना यह संदेश देती है कि—
> आत्म-संयम और त्याग ही वास्तविक सुख और मोक्ष का मार्ग है।
अनुमोदना – अनुमोदना – अनुमोदना
जैन परंपरा के अनुसार जब कोई साधक या साध्वी कठिन तपस्या करता है तो समाजजन उसकी अनुमोदना करते हैं।
अनुमोदना का अर्थ है साधक की तपस्या की सराहना करना और उसके आत्मबल को सम्मान देना।
देवघर जैन समाज ने भी एक स्वर में रेणु जैन की तपस्या की अनुमोदना करते हुए कहा—
“अनुमोदना… अनुमोदना… अनुमोदना…”
श्रीमती रेणु जैन ने दसलक्षण पर्व पर 10 दिवसीय उपवास कर समाज और देवघर नगर का गौरव बढ़ाया है।
उनकी साधना यह साबित करती है कि कठिन तप और संयम से ही आत्मा शुद्ध होकर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होती है।
उनके इस आध्यात्मिक प्रयास की अनुमोदना पूरे समाज ने की और उन्हें सम्मानित किया।

