
ऋषि पंचमी 2025: जानें कब मनाई जाएगी, क्या है इसका महत्व और पूजा विधि।
हिंदू धर्म में प्रत्येक पर्व और त्योहार का विशेष महत्व है। इन्हीं महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है ऋषि पंचमी, जो हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के तुरंत बाद आता है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन सप्त ऋषियों की आराधना, गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
ऋषि पंचमी 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, ऋषि पंचमी का पर्व भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस वर्ष 2025 में यह व्रत और पूजा शुभ मुहूर्त में संपन्न की जाएगी। महिलाएं और पुरुष दोनों इस व्रत को कर सकते हैं, लेकिन परंपरागत रूप से इसे विशेष रूप से महिलाएं करती हैं।
ऋषि पंचमी का महत्व
ऋषि पंचमी का पर्व उन सप्त ऋषियों के सम्मान में मनाया जाता है जिन्होंने वेद-पुराण और धर्मग्रंथों के माध्यम से समाज को सही मार्ग दिखाया। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
ऋषि पंचमी की पूजा विधि
1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. गंगा स्नान अथवा किसी पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है।
3. घर या मंदिर में सप्त ऋषियों की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करें।
4. पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और पंचामृत से ऋषियों की पूजा करें।
5. व्रतधारी दिनभर सात्विक आहार लें या निर्जला व्रत रखें।
6. शाम को कथा सुनें और आरती करें।
7. जरूरतमंदों को दान दें, विशेषकर अन्न और वस्त्र दान का महत्व बताया गया है।
ऋषि पंचमी व्रत का फल
ज्योतिष और पुराणों के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ ऋषि पंचमी का व्रत करता है, उसके जीवन से पाप कर्मों का नाश होता है। इस दिन पूजा-पाठ और व्रत करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ और परिवार में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
ऋषि पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि यह हमारे ऋषियों और उनकी महान परंपरा को याद करने का दिन भी है। इस दिन व्रत और पूजा से जहां आत्मिक शुद्धि मिलती है वहीं जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यह लेख धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और पंचांग गणना पर आधारित है। यहां दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी प्रदान करना है। किसी भी प्रकार की पूजा विधि या व्रत करने से पहले स्थानीय परंपरा, पुरोहित या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।