बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को मिली करारी सियासी मात ने न सिर्फ पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि लालू यादव के परिवार के भीतर भी राजनीति को लेकर खींचतान साफ दिखाई देने लगी है। चुनावी नतीजों के अगले ही दिन से आरजेडी की अंदरूनी राजनीति में उथल-पुथल तेज हो गई है। पार्टी के अंदर यह चर्चा तेज है कि इस हार की जिम्मेदारी किस पर आएगी—रणनीतिक फैसलों पर या नेतृत्व के कंधों पर? लेकिन इसी बीच एक बात साफ दिखी… तेजस्वी यादव को मायूस और निराश देखकर लालू प्रसाद यादव सामने आ गए और बेटे के लिए सियासी ढाल बनकर खड़े हो गए।

चुनावी हार ने बदला राजनीतिक माहौल
बिहार के इस चुनाव को आरजेडी ने ‘परिवर्तन’ का चुनाव बताया था। तेजस्वी यादव पूरे राज्य में युवाओं, बेरोजगारी, पलायन और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच पहुंचे थे। रैलियों में भारी भीड़, युवाओं का बड़ा उत्साह और सोशल मीडिया पर तेजस्वी का बढ़ता क्रेज… सब संकेत यह दे रहे थे कि आरजेडी इस बार दमदार प्रदर्शन करेगी। लेकिन नतीजे उम्मीदों के उलट निकले।
आरजेडी को इतनी बड़ी हार की आशंका शायद पार्टी नेतृत्व को भी नहीं थी। हार ने न सिर्फ पार्टी कैडर, बल्कि परिवार के भीतर भी निराशा भर दी। तेजस्वी यादव को नतीजों के बाद मीडिया के कैमरों में मायूस देखा गया। इसी समय लालू यादव ने बेटे को सहारा देने और सार्वजनिक तौर पर बचाव करने का फैसला किया।
लालू ने संभाली कमान, बोले— “तेजस्वी की मेहनत पर कोई सवाल नहीं”
चुनाव नतीजों के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए लालू प्रसाद यादव ने साफ कहा:
“तेजस्वी ने मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी। चुनाव में हार-जीत होती रहती है। भीतर-ही-भीतर हम सभी कारणों की समीक्षा करेंगे।”
लालू ने संकेत दिया कि नेतृत्व पर उंगली उठाने की कोशिश करने वालों को वह सख्त जवाब देंगे। पार्टी सूत्रों का दावा है कि कुछ वरिष्ठ नेताओं ने बंद कमरे की बैठकों में अभियान की रणनीति को लेकर सवाल उठाए थे। चर्चा यह भी रही कि सीट चयन, गठबंधन समीकरण और उम्मीदवारों की लिस्ट पर तेजस्वी की ‘एकतरफा पकड़’ को लेकर अंदरखाने नाराजगी थी।
लेकिन लालू ने इन आवाज़ों पर प्रहार करते हुए साफ कहा कि “अब कोई तेजस्वी पर उंगली नहीं उठाएगा—जो होगा, सामूहिक जिम्मेदारी से होगा।”
परिवार की राजनीति में नए समीकरण
चुनावी झटके के बाद लालू परिवार के भीतर भी कुछ गर्म माहौल बताया जा रहा है। तेज प्रताप यादव पहले ही कई मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में चुनाव की हार ने परिवार की राजनीतिक एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए।
परिवार के करीबी सूत्र बताते हैं कि—
तेजस्वी यादव चुनावी हार से काफी टूट गए थे।
रणनीतिक फैसलों की आलोचना उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित कर रही थी।
इसी समय लालू यादव ने पूरी ताकत से कमान अपने हाथ में ली ताकि घर और पार्टी, दोनों में एकजुटता बनी रहे।
लालू का यह कदम उनके अनुभव, राजनीतिक समझ और पिता होने की संवेदना—दोनों को दर्शाता है। यह साफ है कि पार्टी की अंदरूनी राजनीति चाहे जैसी भी हो, तेजस्वी को बचाने के लिए लालू दीवार की तरह खड़े हैं।
आरजेडी के भीतर शुरू हुई “हार की समीक्षा”
हार के बाद आरजेडी की राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय बैठकों की श्रृंखला शुरू हो चुकी है। इन बैठकों में मुख्य रूप से इन मुद्दों पर चर्चा की जा रही है—
1. चुनावी रणनीति की विफलता
2. गठबंधन सहयोगियों की भूमिका और तालमेल की कमी
3. ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर पकड़
4. युवाओं के समर्थन का वोट में न बदल पाना
5. सोशल मीडिया बनाम ग्राउंड रियलिटी का अंतर
इन सबके बीच एक बात पर सब सहमत दिखे—तेजस्वी यादव अभी भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं और उनकी लोकप्रियता बरकरार है।
क्या आरजेडी में नेतृत्व को लेकर उठेगा सवाल?
चुनाव के बाद कुछ विश्लेषकों ने यह दावा किया कि आरजेडी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा फिर से जोर पकड़ सकती है। तेजस्वी की हार ने पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल खड़े किए। लेकिन लालू प्रसाद यादव ने इस बहस को उसी क्षण खत्म कर दिया जब उन्होंने तेजस्वी का बचाव करते हुए साफ कहा—
“तेजस्वी ही आरजेडी का भविष्य हैं—और रहेंगे।”
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि लालू का यह बयान आरजेडी में किसी भी प्रकार की गुटबाजी पर लगाम लगाने की कोशिश है। यह पार्टी को यह संदेश देने की रणनीति भी है कि परिवार में मतभेद दिखाना नुकसानदेह होगा।
आगे की राजनीति—तेजस्वी की नई भूमिका?
चुनाव हार के बाद अब आरजेडी तेजस्वी को विपक्ष में आक्रामक नेता के रूप में पेश कर सकती है। बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और महंगाई जैसे मुद्दों पर जल्द ही तेजस्वी सड़क पर उतर सकते हैं। पार्टी का मानना है कि जनता के मुद्दों को लेकर तेजस्वी की आवाज जितनी मुखर होगी, पार्टी का जनाधार उतना मजबूत होगा।
लालू यादव भी स्वास्थ्य सीमाओं के बावजूद राजनीतिक सक्रियता बढ़ा सकते हैं। चुनावी हार ने उन्हें भी झकझोरा है, और वह चाहते हैं कि पार्टी फिर से लड़ाई के मैदान में खड़ी हो।
बिहार विधानसभा चुनाव की हार ने आरजेडी और लालू परिवार दोनों को भीतर से झकझोर दिया है। लेकिन इस झटके के बीच सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश यह निकला है— लालू यादव अभी भी अपने बेटे तेजस्वी की सबसे बड़ी ताकत हैं।
उन्होंने हार की घड़ी में बेटे का हाथ थामकर न सिर्फ परिवार, बल्कि पार्टी के भीतर भी अपनी पकड़ का एहसास करा दिया है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आरजेडी हार से सबक लेकर आगे की राजनीति कैसे तय करती है।
