
गंगाजल की पवित्रता का विज्ञान: जानिए क्यों नहीं आती दुर्गंध या सड़न।
भारत में गंगा नदी को केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि एक पवित्र मां के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि गंगाजल कभी खराब नहीं होता, वर्षों तक रखने के बाद भी उसमें दुर्गंध नहीं आती और न ही वह सड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक शोधों ने भी यह प्रमाणित किया है कि गंगाजल में कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो इसे लंबे समय तक शुद्ध और सुरक्षित बनाए रखते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे कौन-कौन से वैज्ञानिक कारण छिपे हैं।
1. गंगाजल में पाई जाने वाली बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) वायरस
गंगाजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज नामक वायरस एक मुख्य कारण हैं कि यह जल खराब नहीं होता। ये वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं और जल को लंबे समय तक शुद्ध बनाए रखते हैं। यही वजह है कि गंगा का पानी अपने आप में एक प्राकृतिक रोगाणुनाशक होता है।
2. पानी में मौजूद रेडियोधर्मी तत्व
कुछ वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, गंगाजल में रेडियोधर्मी तत्वों की मात्रा भी बहुत सूक्ष्म रूप में पाई जाती है, जो जल को सड़ने या बदबूदार होने से रोकती है। हालांकि इसकी मात्रा बहुत कम होती है, लेकिन यह जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करने में सहायक होती है।
3. ऑक्सीजन बनाए रखने की विशेष क्षमता
अन्य नदियों की तुलना में गंगा नदी का पानी अधिक मात्रा में घुली हुई ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen) को बनाए रखने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि गंगा का पानी जीवनदायिनी और शुद्ध माना जाता है। यह ऑक्सीजन जल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों को पनपने से रोकती है।
4. हिमालय की जड़ी-बूटियों का प्रभाव
गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री है, जो हिमालय की गोद में स्थित है। वहां से बहते समय यह जल कई प्रकार की औषधीय वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों के संपर्क में आता है। इन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण गंगाजल को रोगाणुनाशक और शुद्ध बनाता है।
5. आत्मशुद्धिकरण की प्राकृतिक क्षमता
गंगा नदी के जल में Self-Purification यानी आत्मशुद्धिकरण की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। यह क्षमता जल में मौजूद हानिकारक तत्वों को खुद-ब-खुद नष्ट कर देती है। वैज्ञानिक इसे ‘नैचुरल बायोलॉजिकल प्रोसेस’ कहते हैं।
धार्मिक आस्था और विज्ञान का मेल
जहां धार्मिक दृष्टिकोण से गंगाजल को पवित्र माना जाता है, वहीं वैज्ञानिक तथ्य भी इस मान्यता को मजबूती प्रदान करते हैं। यही कारण है कि गंगाजल का उपयोग पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और अंतिम संस्कार तक में किया जाता है।