
स्मृति शेष दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सातवां दिन, मुख्यमंत्री ने किया पारंपरिक “सात कर्म”
नेमरा/रांची। झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं झारखंड आंदोलन के प्रख्यात नेता स्मृति शेष दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी के निधन को आज सात दिन पूरे हो गए। पूरे प्रदेश के जन-जन के ‘गुरुजी’ के नाम से विख्यात शिबू सोरेन के पारंपरिक श्राद्ध कर्म का आज सातवां दिन था। इस अवसर पर उनके पैतृक गांव नेमरा में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने अपने परिजनों संग दिवंगत आत्मा की शांति हेतु पारंपरिक “सात कर्म” का आयोजन किया और पूरे श्रद्धाभाव के साथ इसे संपन्न किया।
कार्यक्रम की शुरुआत सुबह से ही विधि-विधान के साथ हुई। ग्रामीण और दूर-दराज से आए सैकड़ों श्रद्धालु नेमरा पहुंचकर गुरुजी को श्रद्धांजलि देने पहुंचे। गाँव के हर घर में आज एक सन्नाटा और स्मृतियों की गूंज थी। जगह-जगह गुरुजी के योगदान और संघर्ष के किस्से सुनाए जा रहे थे।
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने परिजनों के साथ सात कर्म के पारंपरिक विधान में भाग लिया। उन्होंने पंडितों के मंत्रोच्चारण के बीच गुरुजी के चित्र के समक्ष पुष्प अर्पित किए और पारंपरिक पूजा-अर्चना कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
मुख्यमंत्री ने कहा
> “गुरुजी सिर्फ मेरे पिता ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड के पिता समान थे। उनका जीवन संघर्ष, त्याग और समाज की सेवा के लिए समर्पित था। आज जब मैं उनका सात कर्म कर रहा हूँ, तो यह सिर्फ एक बेटे का कर्तव्य नहीं, बल्कि उस युगपुरुष के प्रति समर्पण है, जिन्होंने हमें पहचान और अधिकार दिलाया।”
हेमंत सोरेन ने आगे कहा कि गुरुजी के संघर्ष और विचार सदैव आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नेमरा से ही वे राज्य के कामकाज को पूरी तत्परता से संभाल रहे हैं, ताकि जनता की सेवा में कोई कमी न रह जाए।
गुरुजी की विरासत
शिबू सोरेन का नाम झारखंड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वे झारखंड आंदोलन के जननायक रहे, जिन्होंने आदिवासी, मूलवासी, किसान और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी। केंद्र और राज्य स्तर पर उन्होंने महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए विकास और सामाजिक न्याय के लिए कई निर्णायक कदम उठाए। उनका राजनीतिक सफर और संघर्ष आज भी लोगों के लिए प्रेरणा है।
नेमरा में उमड़ी भीड़
गुरुजी के सातवें दिन की रस्म में नेमरा गांव में अपार भीड़ उमड़ी। दूर-दराज से आए लोग पारंपरिक परिधानों में श्रद्धांजलि देने पहुंचे। स्थानीय महिलाएं पारंपरिक गीत गा रही थीं और पुरुष वर्ग गुरुजी के संघर्ष की कहानियां सुना रहे थे।
गांव के बुजुर्गों का कहना था कि गुरुजी ने हमेशा गांव और गरीबों के लिए दरवाजे खुले रखे। वे साधारण जीवन जीते थे, लेकिन सोच और दृष्टि बहुत बड़ी थी।
राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों का आगमन
आज के सात कर्म में झारखंड के विभिन्न हिस्सों से कई राजनीतिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और आमजन शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में कहा कि गुरुजी का जाना झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति है।
भावुक माहौल
कार्यक्रम के दौरान कई मौके ऐसे आए जब माहौल बेहद भावुक हो गया। गुरुजी की पुरानी तस्वीरें, उनसे जुड़े संस्मरण और लोगों की आंखों में छलकते आंसू पूरे वातावरण को गमगीन कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने भी कई बार भावनाओं को संभालते हुए रस्में पूरी कीं।
प्रदेशभर में श्रद्धांजलि कार्यक्रम
सिर्फ नेमरा ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड में आज विभिन्न स्थानों पर श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया गया। कार्यकर्ताओं, समर्थकों और आम जनता ने अपने-अपने क्षेत्रों में दीप जलाकर और मौन रखकर गुरुजी को श्रद्धांजलि दी।
जनता से अपील
मुख्यमंत्री ने अंत में जनता से अपील की कि गुरुजी के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए सभी मिलकर कार्य करें। उन्होंने कहा कि गुरुजी का सपना एक समृद्ध, आत्मनिर्भर और न्यायपूर्ण झारखंड का था, और यह जिम्मेदारी अब हम सबकी है।
सातवें दिन का यह पारंपरिक श्राद्ध कर्म न केवल गुरुजी के प्रति श्रद्धांजलि था, बल्कि यह उनके विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का संकल्प भी था। नेमरा गांव में आज सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक युगपुरुष के जीवन और संघर्ष का सम्मान हुआ।
गुरुजी भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी प्रेरणा, उनकी शिक्षाएं और उनकी लड़ाई की गूंज हमेशा झारखंड के जन-जन में जीवित रहेगी।