
ग्रामीण बैंकों के निजीकरण के विरोध में झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक के चारों संगठनों की एकजुटता, IPO के खिलाफ ऐतिहासिक काला बैच आंदोलन
देवघर। झारखंड में आज बैंकिंग क्षेत्र में एकजुटता और जनविरोध की ऐतिहासिक तस्वीर देखने को मिली जब झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक (JRGB) के चारों कर्मचारी संगठनों ने IPO (Initial Public Offering) के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया। राज्य की सभी 450 शाखाओं में बैंक कर्मियों और अधिकारियों ने काले बैच और काली पट्टी पहनकर अपने कार्यस्थलों पर शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराया। इस संगठित और निर्णायक आंदोलन ने सरकार को स्पष्ट संदेश दिया कि ग्रामीण बैंकों का निजीकरण किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
संगठनों की एकता और नेतृत्व
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व संयुक्त रूप से चारों संगठन कर रहे हैं:
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक कर्मचारी संघ
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक अधिकारी संघ
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक ऑफिसर एसोसिएशन
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन
इन संगठनों के महासचिवों – नितेश कुमार मिश्रा, केशव भारद्वाज, विकेश कुमार और नवल वर्मा – के संयुक्त नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित किया गया, बल्कि इसे बैंकिंग आंदोलन के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
राज्यभर में शाखाओं पर विरोध
राज्य के सभी जिलों और ग्रामीण क्षेत्रों में फैली बैंक की 450 शाखाओं में कर्मचारियों और अधिकारियों ने पूरे अनुशासन और प्रतिबद्धता के साथ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। सभी शाखाओं में कर्मियों ने काले बैच या काली पट्टी पहनकर काम किया और ग्राहकों को भी इस आंदोलन के मकसद और प्रभाव के बारे में जागरूक किया।
संघ के महासचिव नितेश कुमार मिश्रा ने कहा, “यह सिर्फ विरोध का प्रतीक नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक संरचना को बचाने की लड़ाई है। IPO के माध्यम से ग्रामीण बैंकों को निजी हाथों में सौंपने का प्रस्ताव न केवल बैंक कर्मियों के भविष्य को खतरे में डालेगा, बल्कि गांव, किसान, महिला समूह, छोटे व्यवसायी – सभी के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।”
वित्त मंत्री को भेजा गया संयुक्त ज्ञापन
चारों महासचिवों द्वारा हस्ताक्षरित एक संयुक्त ज्ञापन आज बैंक के अध्यक्ष के माध्यम से भारत सरकार के वित्त मंत्री को भेजा गया। इस ज्ञापन में IPO प्रस्ताव को तुरंत रद्द करने की मांग की गई है। साथ ही, इसमें विस्तार से बताया गया है कि ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने से ग्रामीण भारत की सामाजिक और आर्थिक असमानता और बढ़ेगी।
ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश की प्रमुख बैंक यूनियनें – AIBEA, BEFI, NOBW, INBEF आदि – इस आंदोलन के साथ खड़ी हैं और किसी भी समय राष्ट्रव्यापी संघर्ष के लिए तैयार हैं।
आंदोलन के नारे और जनभावना
इस आंदोलन में दो प्रमुख नारे गूंजते रहे:
“ग्रामीण बैंक बचाओ – गाँव बचाओ – भारत बचाओ”
“IPO वापस लो – जनता की पूंजी सुरक्षित रखो”
इन नारों के माध्यम से आंदोलनकारियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह सिर्फ बैंक कर्मचारियों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह गांवों की आजीविका, किसानों की वित्तीय पहुंच और देश की आत्मनिर्भरता से जुड़ा सवाल है।
महासचिव केशव भारद्वाज ने कहा, “सरकार को यह समझना होगा कि ग्रामीण बैंक कोई सामान्य वित्तीय संस्था नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास की रीढ़ है। IPO के माध्यम से पूंजी बाजार में उतारने की यह कोशिश दरअसल लाभ कमाने के उद्देश्य से की जा रही है, जबकि ग्रामीण बैंक का मूल उद्देश्य सेवा है।”
आगामी आंदोलन कार्यक्रम
चारों संगठनों ने IPO प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलन को चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ाने का ऐलान किया है। आगामी कार्यक्रम इस प्रकार हैं:
21 से 30 जुलाई: सोशल मीडिया पर व्यापक प्रचार और जनजागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
23 जुलाई: सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन और DFS (Department of Financial Services) को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
1 से 8 अगस्त: देशभर के सांसदों को व्यक्तिगत रूप से ज्ञापन सौंपे जाएंगे।
19 अगस्त: दिल्ली के जंतर मंतर पर विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन होगा, जिसमें देशभर से हजारों बैंक कर्मचारी शामिल होंगे।
सर्दियों के संसद सत्र के दौरान: दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की गई है।
यदि IPO अधिसूचना जारी होती है: तत्काल प्रभाव से देशव्यापी हड़ताल की जाएगी।
कर्मचारियों से एकजुटता की अपील
संयुक्त रूप से जारी अपील में चारों संगठनों ने कहा है कि यह आंदोलन केवल नौकरी और वेतन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत की आत्मा, उसकी सामाजिक संरचना और आर्थिक स्वायत्तता की रक्षा का आंदोलन है। सभी बैंक कर्मियों से अपील की गई है कि वे पूर्ण निष्ठा और सक्रियता के साथ आगामी कार्यक्रमों में भाग लें।
आज का काला बैच आंदोलन झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक के इतिहास में एक ऐसा दिन बन गया जब कर्मचारियों ने संगठित होकर लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण और प्रभावी तरीके से अपनी बात सरकार के सामने रखी। यह आंदोलन एक बड़े जनसंग्राम का संकेत है, जो आने वाले दिनों में और व्यापक रूप ले सकता है। सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह इस जनभावना को समझे और ग्रामीण बैंकों के IPO प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से वापस ले।