
टूटती छतों में भविष्य की नींव: जर्जर भवनों में चल रही बच्चों की पढ़ाई ।
राजस्थान के कई सरकारी स्कूल खतरे के साये में, 350 साल पुराने खंडहरनुमा महल में चल रही क्लासें, अभिभावक बोले – बच्चे भेजना जान जोखिम में डालना
जयपुर/सीकर/झुंझुनूं | ग्राउंड रिपोर्ट
राजस्थान के कई जिलों में शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। एक ओर सरकार स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुविधाओं की बात करती है, वहीं जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट ने इस विडंबना को उजागर कर दिया है, जिसमें बच्चे खंडहर में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं।
लटकती छत, गिरते सरिये, बैठने को जगह नहीं
सीकर जिले के एक स्कूल की तस्वीरें देखकर आप चौंक जाएंगे। स्कूल की छतें टूटी हुई हैं, सरिये झूल रहे हैं और दीवारों में मोटी दरारें हैं। बरसात में पानी कमरे के अंदर बहने लगता है और कई बार बच्चों को खड़े होकर क्लास करनी पड़ती है क्योंकि बैठने की जगह नहीं है।
350 साल पुराने महल में चल रहा स्कूल
सीकर जिले के ही एक गांव में 350 साल पुराने एक खंडहरनुमा महल में स्कूल संचालित हो रहा है। इस महल की छत कभी भी गिर सकती है। दीवारों की ईंटें बाहर झांक रही हैं। हालांकि प्रशासन ने अभी तक कोई स्थायी विकल्प नहीं दिया है।
माता-पिता ने बच्चों का नाम कटवाने की मांग की
इस स्थिति को देखकर अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा। कई माता-पिता स्कूल पहुंचे और बच्चों का नाम कटवाने की बात कही। उनका कहना है कि वे अपने बच्चों को जान जोखिम में डालकर पढ़ने नहीं भेज सकते। एक महिला अभिभावक ने बताया, “हर बार जब बच्चा स्कूल जाता है, तो दिल बैठा रहता है कि कहीं कुछ हो न जाए।”
गांव के बुजुर्गों की चिंता – “ये तो हादसे को बुलावा है”
गांव के एक बुजुर्ग भगवत प्रसाद कहते हैं, “यह महल अब कब्र बन चुका है। कभी भी दीवारें गिर सकती हैं। 100 बच्चे रोज इसके नीचे बैठते हैं, ये तो किसी बड़े हादसे को आमंत्रण है।”
विद्यालय स्टाफ भी दहशत में, लेकिन मजबूरी में डटे
स्कूल के प्रधानाध्यापक कहते हैं, “हमने कई बार पंचायत और जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर भवन की मरम्मत या स्थानांतरण की मांग की है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हम खुद डरते हैं कि कब दीवार गिरे और अनहोनी हो जाए।”
बजट जारी, लेकिन कार्रवाई ठप
सरकारी रिकॉर्ड में इन स्कूलों की मरम्मत के लिए बजट स्वीकृत किया जा चुका है। मगर काम अब तक शुरू नहीं हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारी सिर्फ कागज़ों में काम करते हैं, ज़मीनी हकीकत कुछ और है।
राज्यभर में 9,000 से अधिक स्कूल जर्जर भवनों में
एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान में करीब 9,000 से अधिक स्कूल जर्जर या अर्ध-जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जहां बच्चों और शिक्षकों के लिए शौचालय, पीने का पानी और सुरक्षित छत तक उपलब्ध नहीं है।
NCPCR और बाल अधिकार आयोग भी गंभीर
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों से जवाब मांगा है कि ऐसे स्कूलों में पढ़ाई क्यों चल रही है जहां जान का खतरा हो सकता है। वहीं राज्य बाल आयोग ने भी कहा है कि बच्चों को इस तरह की परिस्थितियों में शिक्षा देना मानवाधिकारों का हनन है।
सरकारी प्रतिक्रिया – जल्द मिलेगी वैकल्पिक व्यवस्था
राज्य के शिक्षा विभाग ने माना है कि कुछ स्कूल जर्जर भवनों में चल रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक, “प्राथमिकता के आधार पर इन स्कूलों का स्थानांतरण या मरम्मत का काम शुरू किया जाएगा। आपदा राहत कोष से कुछ बजट भी जारी किया गया है।”
समाधान क्या है?
विशेषज्ञों की मानें तो शिक्षा के बुनियादी ढांचे को लेकर एक अलग और प्रभावी नीति की ज़रूरत है। सिर्फ भवन निर्माण ही नहीं, बच्चों की सुरक्षा, मनोवैज्ञानिक प्रभाव और गुणवत्तापूर्ण वातावरण को भी ध्यान में रखना होगा।
शिक्षा केवल किताबों और पाठ्यक्रमों तक सीमित नहीं हो सकती। जब बच्चे अपने स्कूल में सुरक्षित ही महसूस न करें, तो कैसे उम्मीद करें कि वे मन लगाकर पढ़ेंगे? यह समय है जब सरकार और समाज दोनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चों का भविष्य किसी जर्जर ईमारत के नीचे दम न तोड़ दे।
1. लटकते सरिये: स्कूल की छत से लटकते हुए सरिये, नीचे बैठे हैं बच्चे
2. दरकी दीवार: दीवार में मोटी दरार, हर दिन बढ़ रहा खतरा
3. खंडहर स्कूल: 350 साल पुराने महल में चल रही क्लास, बाहर बोर्ड तो अंदर डर