
कांवड़ मार्ग पर QR कोड लगाने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी – उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब।
नई दिल्ली। सावन का महीना आते ही उत्तर भारत में कांवड़ यात्रा का माहौल बन जाता है। लाखों श्रद्धालु शिवभक्ति में डूबकर हरिद्वार, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थलों से गंगाजल लेकर अपने-अपने शहरों की ओर रवाना होते हैं। इस दौरान कांवड़ यात्रा मार्ग पर विशेष सुरक्षा, सुविधा और अनुशासन बनाए रखने के लिए सरकारें कई तरह के निर्देश जारी करती हैं। इस बार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार द्वारा एक नया आदेश जारी किया गया, जिसने विवाद को जन्म दे दिया है – और अब यह मामला सीधे देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने इस वर्ष कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों, प्रतिष्ठानों और ढाबों पर क्यूआर कोड (QR Code) लगाने का आदेश जारी किया था। प्रशासन का तर्क था कि इससे सुरक्षा, निगरानी और किसी भी आपात स्थिति में त्वरित पहचान में मदद मिलेगी। लेकिन इस आदेश को कुछ वर्गों ने धार्मिक स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया और इसके खिलाफ याचिका दायर की गई, जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों से इस फैसले पर जवाब तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि कांवड़ मार्ग पर दुकानों में QR कोड लगाने का उद्देश्य क्या है और यह किस कानूनी प्रावधान के तहत अनिवार्य किया जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी धार्मिक आयोजन के नाम पर नागरिकों की निजता, व्यापारिक स्वतंत्रता या धार्मिक समानता प्रभावित होती है, तो उसकी कानूनी जांच आवश्यक है। अदालत ने दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।
QR कोड लगाने के पीछे सरकार का तर्क
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रशासनिक अधिकारियों ने सफाई देते हुए कहा कि QR कोड का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। QR कोड की मदद से हर दुकान या संस्थान की सटीक पहचान, स्वामित्व, लोकेशन और संपर्क विवरण तुरंत प्राप्त किया जा सकता है।
कांवड़ यात्रा के दौरान कई बार आपराधिक घटनाएं, झगड़े या चोरी-झपटमारी जैसी घटनाएं सामने आती हैं। ऐसे में प्रशासन को यह QR कोड प्रणाली बहुत उपयोगी लग रही है जिससे किसी भी आपातकालीन स्थिति में तुरंत जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।
इसके अलावा सरकार ने यह भी कहा कि यह व्यवस्था अस्थायी और स्वैच्छिक है। इसे किसी धर्म विशेष को निशाना बनाकर लागू नहीं किया गया है, बल्कि केवल कांवड़ मार्ग की सुरक्षा और निगरानी के लिए सीमित समय के लिए लागू किया गया है।
याचिकाकर्ता के आरोप क्या हैं?
इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता का कहना है कि यह आदेश भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है। याचिका में कहा गया है कि केवल सावन के कांवड़ मार्ग पर ही ऐसा आदेश क्यों? क्या अन्य धार्मिक आयोजनों – जैसे ईद, बकरीद, दुर्गा पूजा, गुरुपर्व, या क्रिसमस के समय ऐसी निगरानी व्यवस्था लागू होती है?
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि QR कोड के माध्यम से दुकानदारों की निगरानी, पहचान और उनके डेटा का संग्रह किया जा सकता है, जो उनकी निजता के अधिकार (Right to Privacy) का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह आदेश धार्मिक पक्षपात और एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की आशंका भी उत्पन्न करता है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं। विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह धार्मिक आयोजनों में भी साम्प्रदायिक एजेंडा खोज रही है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने कहा कि यदि सरकार को सुरक्षा की चिंता है तो तकनीक का सहारा लेने में बुराई नहीं, लेकिन यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए।
वहीं, भारतीय जनता पार्टी और राज्य सरकारों ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि जनहित और सुरक्षा सर्वोपरि है। पार्टी नेताओं ने कहा कि जो लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, वे वास्तव में सुरक्षा व्यवस्था को बाधित करने का प्रयास कर रहे हैं।
जनता की राय बंटी हुई
जनता के बीच भी इस QR कोड व्यवस्था को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोग इसे एक आधुनिक, डिजिटल और स्मार्ट निगरानी प्रणाली मान रहे हैं, जिससे कांवड़ यात्रा जैसी विशाल जनसंख्या वाली धार्मिक यात्रा में व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलेगी।
वहीं, कई दुकानदारों ने चिंता जताई है कि QR कोड लगाने से उनकी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक हो सकती है, जिससे प्राइवेसी और सुरक्षा दोनों खतरे में पड़ सकते हैं।
क्या है आगे की राह?
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं। यदि राज्य सरकारें अदालत को संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं, तो इस व्यवस्था पर रोक लग सकती है। दूसरी ओर, यदि अदालत सरकार के सुरक्षा तर्कों से सहमत होती है, तो QR कोड प्रणाली आने वाले वर्षों में अन्य धार्मिक आयोजनों के लिए भी एक मानक प्रक्रिया बन सकती है।
इस मामले में अगली सुनवाई आने वाले कुछ हफ्तों में होने की संभावना है। तब तक के लिए अदालत ने इस पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है, लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि संविधान की भावना के खिलाफ कोई भी आदेश मान्य नहीं होगा।
QR कोड लगाने जैसे तकनीकी उपाय जहां प्रशासन को सुरक्षा और नियंत्रण में सहायता दे सकते हैं, वहीं इनका संविधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रभाव भी गंभीर चिंता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट इस बीच संतुलन की राह तलाश रहा है — ताकि ना सुरक्षा से समझौता हो, और ना ही नागरिक अधिकारों से।