बिहार चुनाव में नहीं लगेंगी लंबी लाइनें: चुनाव आयोग ने 12,817 नए बूथ बनाए, मतदाताओं को मिलेगी राहत

बिहार चुनाव में नहीं लगेंगी लंबी लाइनें: चुनाव आयोग ने 12,817 नए बूथ बनाए, मतदाताओं को मिलेगी राहत

पटना। आगामी बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर तैयारियां तेज हो चुकी हैं। इस बार मतदाताओं को बूथों पर लंबी लाइनों से राहत मिलने जा रही है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम के दौरान मतदान केंद्रों का पुनर्गठन कर लिया गया है। राज्य में अब तक के चुनावी इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मतदान केंद्रों की संख्या में इज़ाफ़ा किया गया है।

चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रति बूथ अधिकतम 1200 मतदाताओं का प्रावधान तय किया गया है। इस मानक के तहत राज्य में 12,817 नए मतदान केंद्र बनाए गए हैं। पहले राज्य में कुल 77,895 मतदान केंद्र थे, जो अब बढ़कर 90,712 हो गए हैं।

भीड़ नहीं, व्यवस्था और दूरी को मिलेगा महत्व

कोविड-19 महामारी के बाद से चुनावी प्रक्रिया में सामाजिक दूरी और स्वच्छता को सर्वोपरि मानते हुए निर्वाचन आयोग ने यह फैसला लिया था कि किसी भी मतदान केंद्र पर भीड़ न लगे। उसी दिशा में यह पुनर्गठन किया गया है।

बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (सीईओ) ने बताया कि बूथों की संख्या बढ़ने से मतदाताओं को कतारों में लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इसके अलावा, बुजुर्गों, महिलाओं और दिव्यांग मतदाताओं के लिए अलग से सुविधा दी जाएगी।

1200 मतदाताओं का मानक क्यों?

निर्वाचन आयोग ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1200 तय की है। ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि मतदाता आसानी से, बिना किसी अव्यवस्था के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। पहले कई क्षेत्रों में एक बूथ पर 1500-2000 तक मतदाता दर्ज थे, जिससे वहां भीड़, अव्यवस्था और असुविधा होती थी।

इस पुनर्गठन का लाभ विशेषकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मिलेगा, जहां पहले संसाधनों की कमी और मतदाता सूची के असंतुलन की शिकायतें मिलती रही हैं।

कौन से जिले सबसे ज़्यादा प्रभावित?

सूत्रों के मुताबिक, पटना, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जैसे बड़े जिलों में सबसे ज्यादा नए बूथ बनाए गए हैं। यह वे क्षेत्र हैं जहां मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। इसके अलावा सीमांचल क्षेत्र के जिलों जैसे किशनगंज, अररिया और पूर्णिया में भी नए बूथों की संख्या बढ़ाई गई है।

तकनीक और पारदर्शिता का मेल

चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया में तकनीक का भी भरपूर उपयोग किया। बूथों के पुनर्गठन के लिए जियो-टैगिंग, GIS मैपिंग, और डेटा एनालिटिक्स का सहारा लिया गया। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि नए बनाए गए बूथ वास्तव में जरूरत वाले क्षेत्रों में हों और मतदाताओं की पहुंच में हों।

इसके अलावा, इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों को भी सूचित किया गया और उनके सुझावों को भी गंभीरता से लिया गया, जिससे पारदर्शिता बनी रही।

मतदाताओं को जानना जरूरी

चूंकि कई पुराने मतदान केंद्र अब विभाजित होकर दो या अधिक बूथों में बदल गए हैं, इसलिए मतदाताओं को चुनाव से पहले अपने नए बूथ की जानकारी प्राप्त करना जरूरी है। इसके लिए आयोग ने Voter Helpline App, www.nvsp.in पोर्टल और 1950 हेल्पलाइन नंबर की सुविधा दी है। मतदाता SMS या ऑनलाइन माध्यम से यह जान सकते हैं कि उनका नया बूथ कहां स्थित है।

दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष प्रबंध

इस बार निर्वाचन आयोग की प्राथमिकता में दिव्यांग मतदाता, वरिष्ठ नागरिक और महिलाएं विशेष रूप से शामिल हैं। नए बूथों पर व्हीलचेयर, रैंप, पीने का पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित की जाएंगी। महिला मतदाताओं के लिए सखी बूथों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बूथों की संख्या में वृद्धि का असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा। कम भीड़, बेहतर सुविधा और जागरूकता के चलते मतदाता अधिक संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचेंगे। इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी और चुनाव की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।

आने वाले चुनावों के लिए संदेश

यह पुनर्गठन न केवल बिहार के लिए, बल्कि देशभर के लिए एक मॉडल बन सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां बड़े जनसंख्या क्षेत्रों में मतदान केंद्रों पर दबाव बहुत अधिक होता है।

बिहार में चुनाव आयोग की यह पहल मतदाताओं को बेहतर सुविधा देने की दिशा में एक बड़ी और सार्थक कोशिश है। इससे ना सिर्फ मतदान प्रक्रिया अधिक सुगम होगी, बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी भी और मजबूत होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस संरचनात्मक बदलाव का असर आगामी विधानसभा चुनावों में मतदान दर पर कितना पड़ता है ।

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