
नवाब अब्दुल समद का मकबरा या ऐतिहासिक शिव मंदिर?
फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक ऐतिहासिक ढांचे को लेकर धार्मिक पहचान का विवाद गहराता जा रहा है। यह ढांचा शहर के खागा कस्बे में स्थित है, जिसे कुछ लोग नवाब अब्दुल समद का मकबरा बता रहे हैं, जबकि हिंदू पक्ष का दावा है कि यह एक प्राचीन शिव मंदिर है। मामले के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन ने मौके पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया है और किसी भी तरह की अनहोनी से बचने के लिए चौकसी बढ़ा दी गई है।
विवाद की जड़
स्थानीय इतिहासकारों के मुताबिक, यह संरचना लगभग 17वीं-18वीं सदी की है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह नवाब अब्दुल समद का मकबरा है, जिनका उस दौर में क्षेत्र पर शासन था। उनका दावा है कि यह स्थान मुस्लिम समुदाय के लिए धार्मिक महत्व रखता है और लंबे समय से वहां इबादत होती आई है।
दूसरी ओर, हिंदू संगठनों का कहना है कि यह स्थल मूल रूप से एक शिव मंदिर था, जिसे मुगल काल में तोड़कर या बदलकर मकबरे का रूप दिया गया। उनका तर्क है कि ढांचे में मौजूद कुछ पत्थरों पर प्राचीन शिलालेख, नंदी प्रतिमा के अवशेष और मंदिर शैली की नक्काशी के निशान मिलते हैं।
माहौल गरम, सोशल मीडिया पर बहस तेज
पिछले कुछ दिनों से इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में पोस्ट, वीडियो और पुराने फोटो वायरल हो रहे हैं, जिनमें लोग अपनी-अपनी दलीलें रख रहे हैं। कुछ वीडियो में कथित नंदी की टूटी हुई मूर्ति और मंदिरनुमा स्थापत्य दिखाया जा रहा है, जबकि दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग मकबरे से जुड़ी धार्मिक परंपराओं का हवाला दे रहे हैं।
इसी वजह से स्थानीय माहौल तनावपूर्ण हो गया है। प्रशासन ने अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
प्रशासन की सख्ती और सुरक्षा व्यवस्था
फतेहपुर के जिलाधिकारी ने कहा कि मामले की जांच पुरातत्व विशेषज्ञों और राजस्व विभाग की संयुक्त टीम से कराई जाएगी। टीम यह पता लगाएगी कि ढांचे की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि क्या है।
एसपी ने बताया कि इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात है, ड्रोन से निगरानी की जा रही है और धारा 144 लागू कर दी गई है। किसी भी पक्ष को बिना अनुमति धार्मिक आयोजन या प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है।
दोनों पक्षों के दावे
मुस्लिम पक्ष का दावा: यह नवाब अब्दुल समद का मकबरा है, जहां 200 साल से अधिक समय से कब्र मौजूद है और मुस्लिम समुदाय यहां फातिहा पढ़ने आता है।
हिंदू पक्ष का दावा: यहां पहले शिव मंदिर था, जिसके प्रमाण शेष स्थापत्य, मूर्तियां और पत्थरों पर बने लेख हैं। इतिहास के दस्तावेजों में भी इस स्थल का उल्लेख मंदिर के रूप में मिलता है।
राजनीतिक रंग भी चढ़ा
स्थानीय राजनीतिक नेताओं ने भी इस विवाद में बयान देना शुरू कर दिया है। कुछ नेता हिंदू पक्ष का समर्थन करते हुए इसे “धार्मिक पुनर्स्थापना” का मामला बता रहे हैं, जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि यह “सदियों पुरानी विरासत” से छेड़छाड़ है। राजनीतिक दखल से विवाद और भड़कने की आशंका है।
विशेषज्ञों की राय
इतिहासकारों का कहना है कि ऐसे विवादों को हल करने के लिए निष्पक्ष पुरातत्व जांच जरूरी है। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले संरचना की निर्माण शैली, सामग्री, शिलालेख और ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन होना चाहिए।
अगला कदम
प्रशासन की टीम जल्द ही स्थल का सर्वे करेगी और रिपोर्ट सौंपेगी। तब तक किसी भी तरह के धार्मिक परिवर्तन, मरम्मत या निर्माण पर रोक है। जिले के संवेदनशील माहौल को देखते हुए पुलिस-प्रशासन ने लोगों से शांति बनाए रखने और कानून हाथ में न लेने की अपील की है।
फिलहाल, यह ऐतिहासिक ढांचा फतेहपुर में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की बहस का केंद्र बन गया है, और सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि जांच रिपोर्ट आने के बाद विवाद किस दिशा में जाता है।