
वाराणसी के फुलवरिया स्थित पहलू का पुरा प्राथमिक विद्यालय में सोमवार दोपहर मिड-डे मील वितरण के दौरान खौलती दाल गिरने से कक्षा 1 के सात वर्षीय छात्र ऋषभ सोनकर गंभीर रूप से झुलस गए। उनके दोनों पैर 30% तक झुलस चुके हैं और उन्हें मंडलीय अस्पताल की बर्न यूनिट में भर्ती कराया गया है। इस दौरान शिक्षक की अपमानजनक टिप्पणी — “घर में जलता तो क्या करती, अब जाओ इलाज कराओ” — ने समाज में गहरा आक्रोश उत्पन्न कर दिया है।
हादसे की घटना
पहलू का पुरा प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे मील वितरण के समय लाइन में खड़े ऋषभ के ऊपर अचानक खौलती सब्जी (दाल) गिर गई। यह घटना धक्का-मुक्की के चलते हुई, जिसके कारण बर्तन लाइन में खड़े बच्चे से टकराया और वे गर्म दाल उसके पैरों पर पहुंच गई। तुरंत प्राथमिक अस्पताल ले जाया गया, और हालत गंभीर होने पर उसे मंडलीय अस्पताल की बर्न यूनिट में ट्रांसफर कर दिया गया।
चिकित्सा स्थिति
चिकित्सकों के अनुसार, ऋषभ के दोनों पैर लगभग 30% तक झुलस चुके हैं। वह अभी मंडलीय अस्पताल की बर्न यूनिट में भर्ती है और उसका इलाज जारी है।
स्कूल व शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ममता गुप्ता ने बताया कि यह दुःखद घटना तब घटित हुई, जब रसोइया और शिक्षक भोजन वितरण में मौजूद थे। उन्होंने आश्वासन दिया कि बच्चे का हरसंभव इलाज कराया जाएगा और विद्यालय शाखा (खंड), काशी विद्यापीठ एवं जिला शिक्षा अधिकारी स्तर पर इसकी निगरानी सुनिश्चित की जा रही है। विभाग द्वारा बच्चे के इलाज का पूरा खर्च वहन करने का भी निर्देश दिया गया है।
टीचर का विवादित कथन
कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी उल्लेखित है कि एक शिक्षक ने कहा: “घर में जलता तो क्या करती, अब जाओ इलाज कराओ।” यह तीखा और संवेदनहीन कथन परिवार और जनता में भारी आलोचना का कारण बना है। हालांकि प्राथमिक स्रोतों (जैसे Live Hindustan) में यह प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से नहीं मिली, पर यह वाक्यांश अन्य माध्यमों में उभरा है।
सामाजिक और कानूनी पहलू
यह घटना प्राथमिक विद्यालयों में सुरक्षा उपायों और शिक्षकों व स्टाफ की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है। मिड-डे मील कार्यक्रम जैसे बड़े पैमाने पर चलने वाले अभियान में बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। साथ ही, संवेदनहीन टिप्पणी से सामाजिक विश्वास का क्षरण होता है और शिक्षा प्रणाली की नैतिकता पर सवाल उठते हैं।
शिक्षा विभाग को घटना की स्वतंत्र जांच कराके, जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
शिक्षक और रसोइया प्रशिक्षण के माध्यम से भावनात्मक एवं व्यावसायिक संवेदनशीलता बढ़ाने का प्रशिक्षण अविलंब आरंभ होना चाहिए।
भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के लिए भोजन वितरण व्यवस्था को और अधिक अनुशासित, सुरक्षित व अधिक देखरेख से संचालित किया जाना चाहिए।
वाराणसी के इस दर्दनाक हादसे ने बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 7 साल के मासूम ऋषभ की दुर्घटना और शिक्षक के कथन ने शिक्षा प्रणाली की संवेदनहीनता पर चोट की है। सामाजिक और प्रशासनिक दोनों स्तर पर तत्काल कार्रवाई जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके और बच्चों को सुरक्षित वातावरण मिल सके।