
मालदा: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर तनाव और बयानबाज़ी की गर्मी बढ़ गई है। मालदा जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहाँ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के जिला अध्यक्ष अब्दुर रहीम बख्शी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधायक दल के मुख्य सचेतक को खुली धमकी दी। उन्होंने मंच से खुलेआम कहा—”ये बंगाल है… तुम्हारे मुंह में तेजाब डाल दूंगा।”
यह बयान सामने आते ही राजनीति में भूचाल आ गया है। भाजपा ने इसे लोकतंत्र और राजनीतिक शुचिता पर हमला बताया है, वहीं टीएमसी ने सफाई देते हुए कहा कि विपक्ष अनावश्यक रूप से बयान को तूल दे रहा है।
मामला क्या है?
जानकारी के अनुसार, मालदा जिले में एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान भाजपा के विधायक दल के मुख्य सचेतक ने स्थानीय प्रशासन पर सवाल खड़े किए। इसी दौरान भीड़ को संबोधित करते हुए टीएमसी के जिला अध्यक्ष अब्दुर रहीम बख्शी गुस्से में आ गए और उन्होंने मंच से धमकी भरे लहजे में कहा कि—”यह बंगाल है… यहां विपक्षियों को बख्शा नहीं जाएगा। जरूरत पड़ी तो तुम्हारे मुंह में तेजाब डाल दूंगा।”
भाजपा का पलटवार
धमकी वाला यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही भाजपा नेताओं ने टीएमसी पर जमकर निशाना साधा। भाजपा ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की राजनीति अब लोकतांत्रिक बहस और विचारों से हटकर गुंडागर्दी पर आधारित हो चुकी है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा—”यह घटना बताती है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलकर हिंसा के बल पर सत्ता में बने रहना चाहती है। भाजपा कार्यकर्ताओं और विधायकों को धमकी देना बंगाल में आम हो गया है।”
इसके अलावा, भाजपा ने चुनाव आयोग और गृह मंत्रालय से इस घटना पर तत्काल संज्ञान लेने और आरोपी नेता पर कठोर कार्रवाई की मांग की है।
टीएमसी का बचाव
वहीं दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस की ओर से बयान आया कि विपक्ष मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि अब्दुर रहीम बख्शी का बयान भावनाओं में दिया गया था और उसे शाब्दिक रूप से नहीं लिया जाना चाहिए।
पार्टी के प्रवक्ता ने कहा—”हमारे नेता ने जानबूझकर किसी को नुकसान पहुँचाने की धमकी नहीं दी। भाजपा इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।”
बंगाल की राजनीति और हिंसा का इतिहास
यह कोई पहला मौका नहीं है जब पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा और धमकी के स्वर सामने आए हों। चुनावी मौसम हो या संगठनात्मक कार्यक्रम, आए दिन कार्यकर्ताओं के बीच झड़प और नेताओं की बयानबाज़ी सुर्खियों में रहती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल में हिंसा आधारित राजनीति की एक लंबी परंपरा रही है। पहले वाम मोर्चा और अब टीएमसी पर विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि वे भय और हिंसा का सहारा लेकर सत्ता पर काबिज़ रहते हैं।
स्थानीय स्तर पर इस घटना ने लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया है। आम नागरिकों का कहना है कि राजनीतिक नेताओं से लोकतांत्रिक भाषा और शालीन व्यवहार की उम्मीद की जाती है। “तेज़ाब डाल दूंगा” जैसी धमकियाँ न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं, बल्कि समाज में हिंसा को बढ़ावा देती हैं।
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने इस बयान की कड़ी आलोचना की है। कई यूज़र्स ने लिखा कि अगर जनता के प्रतिनिधि ही इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करेंगे तो आम लोग किससे सुरक्षा की उम्मीद करेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद बंगाल की राजनीति को आने वाले समय में और गरमा सकता है। राज्य में पंचायत चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव के समीप आते ही ऐसे बयान राजनीतिक दलों के लिए हथियार बनते रहेंगे। भाजपा इसे मुद्दा बनाकर जनता के बीच ले जाएगी, जबकि टीएमसी डैमेज कंट्रोल में जुटी रहेगी।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि विपक्षी दल हमेशा से यह आरोप लगाते आए हैं कि बंगाल में लोकतंत्र खतरे में है और प्रशासन सत्ता पक्ष के दबाव में काम करता है। यह बयान भाजपा को अपने आरोपों को और मजबूती से रखने का मौका देगा।
मालदा की यह घटना फिर से दिखाती है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति अब सामान्य संवाद और विचारों की लड़ाई से हटकर हिंसक शब्दों और धमकियों पर उतर आई है। भाजपा और टीएमसी दोनों इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल करेंगे।
अब देखना होगा कि चुनाव आयोग, पुलिस प्रशासन और मुख्यमंत्री इस पूरे मामले पर क्या कदम उठाते हैं। क्या आरोपी टीएमसी नेता पर कार्रवाई होगी या यह मामला भी बंगाल की राजनीति की दूसरी घटनाओं की तरह धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाएगा?