
सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है? खड़े होकर या बैठकर? जानें शास्त्रों की राय
सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। इस दौरान लाखों भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पुण्य अर्जित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जल चढ़ाने का भी एक नियम होता है? आइए जानते हैं शास्त्रों और पुराणों के अनुसार शिवलिंग पर जल चढ़ाने की सही विधि।
1. खड़े होकर या बैठकर – क्या है सही तरीका?
शिव पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय श्रद्धा और नियमों का पालन बहुत जरूरी होता है।
शास्त्रों के मुताबिक जल अर्पण करते समय बैठना ही श्रेष्ठ माना गया है।
खड़े होकर जल चढ़ाना अशुद्धि या जल्दबाजी का प्रतीक माना जाता है। बैठकर जल अर्पित करने से मन एकाग्र रहता है और भक्ति भाव पूर्ण होता है।
यदि भीड़ ज्यादा हो या जगह कम हो, तो खड़े होकर भी जल अर्पण किया जा सकता है, लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए कि बैठकर ही पूजा करें।
2. किस पात्र से जल चढ़ाना चाहिए?
जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे को सबसे पवित्र माना गया है। तांबे का पात्र ऊर्जा को बढ़ाता है और शिवजी को प्रिय है। प्लास्टिक या स्टील के बर्तन से जल अर्पित करने से बचना चाहिए।
जल में यदि बेलपत्र, धतूरा, चंदन, काले तिल या दूध मिलाया जाए तो और अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।
3. जल कैसे चढ़ाएं?
जल अर्पण करते समय “ॐ नमः शिवाय” या “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करें। जल धीरे-धीरे शिवलिंग के ऊपरी भाग पर अर्पित करें, जिससे वह पूरे शिवलिंग को स्नान कराए। जल सीधे नंदी (बैल) की पीठ या सिर पर न गिरे, यह अपशगुन माना जाता है।
सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए केवल जल चढ़ा देना ही काफी नहीं है, बल्कि सही नियमों और शुद्ध मन से किया गया जलाभिषेक ही फलदायी होता है। इसलिए जब भी शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, बैठकर, तांबे के पात्र से और मंत्रों के साथ श्रद्धापूर्वक अर्पित करें।