बेटी ने प्रेम विवाह किया, तो परिवार ने 70 हजार देकर कराया पिंडदान, 40 से ज्यादा रिश्तेदारों ने मुंडवाया सिर, बलि भी दी —

बेटी ने प्रेम विवाह किया, तो परिवार ने 70 हजार देकर कराया पिंडदान, 40 से ज्यादा रिश्तेदारों ने मुंडवाया सिर, बलि भी दी —

वरना समाज से बहिष्कार का डर
संपर्क टूटने की धमकी के बाद सामाजिक ‘प्रायश्चित’ की रस्में निभाईं, मामला चर्चा में

स्थान: बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा क्षेत्र |
रिपोर्टर: विशेष संवाददाता

आज के समय में जब देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, अंतरजातीय विवाहों को लेकर लोगों में स्वीकार्यता बढ़ रही है — लेकिन समाज के कुछ हिस्सों में आज भी जाति, परंपरा और सामाजिक मर्यादा के नाम पर भयावह घटनाएं सामने आ रही हैं। एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां एक युवती के लव मैरिज करने के बाद उसके परिवार को गांव और समाज के दबाव में आकर सामाजिक ‘प्रायश्चित’ करना पड़ा।

परिवार वालों ने 70 हजार रुपए खर्च कर कथित तौर पर बेटी का पिंडदान कराया, बलि दी गई और 40 से ज्यादा रिश्तेदारों ने अपने-अपने सिर मुंडवाए। यह सब इसलिए हुआ ताकि गांव के लोग और रिश्तेदार फिर से उनके साथ बातचीत करने लगें, क्योंकि लड़की की शादी के बाद पूरा परिवार सामाजिक बहिष्कार जैसा झेल रहा था।

प्रेम विवाह बना विवाद का कारण

जानकारी के अनुसार, युवती ने अपनी मर्जी से उसी गांव या आसपास के युवक से विवाह कर लिया था। शादी पूरी तरह सहमति से हुई थी, लेकिन युवक की जाति अलग थी। इससे लड़की के परिवार और रिश्तेदारों में आक्रोश फैल गया। स्थानीय परंपराओं और जातिगत सोच के चलते यह विवाह ‘समाज के खिलाफ’ माना गया।

जब यह खबर पूरे गांव में फैली, तो पंचायत स्तर पर बैठकें हुईं और लड़की के परिवार पर दबाव बनाया गया कि जब तक ‘प्रायश्चित’ नहीं होगा, तब तक कोई उनसे न रिश्तेदारी रखेगा और न बात करेगा।

70 हजार में कराना पड़ा पिंडदान, बलि भी दी गई

समाज से कटे परिवार ने रिश्तेदारों को मनाने के लिए एक कथित ‘पिंडदान संस्कार’ का आयोजन करवाया। इस आयोजन में लगभग 70 हजार रुपए खर्च किए गए। बताया जा रहा है कि एक पंडित को बुलाकर बाकायदा वैदिक मंत्रों के साथ लड़की का ‘पिंडदान’ करवाया गया — मानो वह अब जीवित ही न हो। इसके अलावा एक बकरे की बलि भी दी गई।

पिंडदान और बलि की यह रस्में केवल मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए नहीं, बल्कि ‘समाज में पुनः स्थान पाने’ के लिए की गईं। इस दौरान एक भोज का भी आयोजन किया गया, जिसमें गांव के प्रभावशाली लोगों को बुलाया गया।

40 से ज्यादा रिश्तेदारों ने मुंडवाया सिर

‘प्रायश्चित’ की इस प्रक्रिया में परिवार के 40 से ज्यादा पुरुष सदस्यों ने सिर मुंडवाया। माना जाता है कि मृत्यु के बाद जब अंतिम संस्कार होता है, तभी सिर मुंडवाया जाता है — लेकिन यहां जीवित बेटी के प्रेम विवाह के कारण ऐसा किया गया।

यह पूरा आयोजन कथित रूप से समाज और रिश्तेदारों के दबाव में किया गया। आयोजन के बाद गांव के लोगों ने फिर से बातचीत शुरू की और परिवार को सामाजिक रूप से ‘स्वीकृति’ दी गई।

सामाजिक दबाव और अंधविश्वास की मिसाल

यह घटना हमारे समाज में मौजूद कट्टर सोच और अंधविश्वास का एक और उदाहरण है। प्रेम विवाह करने वाली लड़की को तो शायद इस बात का अंदाजा भी न होगा कि उसके परिवार को ऐसी ‘शुद्धिकरण’ की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।

सवाल यह उठता है कि आज भी जब संविधान हर व्यक्ति को अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है, तो समाज इस तरह की कुप्रथाओं को क्यों बढ़ावा दे रहा है?

प्रशासन और कानून की चुप्पी

इस पूरे मामले में अब तक किसी प्रशासनिक हस्तक्षेप की खबर नहीं है। जबकि संविधानिक अधिकारों के उल्लंघन की आशंका इस पूरे प्रकरण में साफ दिखती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के ‘पिंडदान’ और बलि की रस्में न केवल अमानवीय हैं, बल्कि यह मानसिक प्रताड़ना का भी रूप हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि किसी लड़की ने अपनी मर्जी से विवाह किया है और वह बालिग है, तो उसके खिलाफ इस तरह के कर्मकांड और सामाजिक बहिष्कार पूरी तरह असंवैधानिक और दंडनीय हैं।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

यह खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई, लोगों ने इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं। कई लोगों ने इसे ‘शर्मनाक’ बताया है और कहा है कि यह घटना समाज की उस जड़ता को दिखाती है, जिससे निकलना अब जरूरी है।

एक यूजर ने लिखा, “ये कौन सा युग चल रहा है? बेटी की शादी के बाद उसका पिंडदान और बलि? प्रशासन को सख्त कदम उठाने चाहिए।”
वहीं, कुछ लोगों ने इसे ‘परिवार की मजबूरी’ बताया, जिन्होंने सामाजिक दबाव में आकर यह कदम उठाया।

यह घटना न केवल जातिवाद और सामाजिक रुढ़ियों की जड़ता को उजागर करती है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करती है कि क्या आज भी भारत का समाज व्यक्तिगत स्वतंत्रता को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है?

इस तरह की घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि आधुनिकता की बात करने वाले हमारे समाज को वास्तव में अब मानसिक रूप से आधुनिक बनने की भी जरूरत है — जहां एक लड़की का अपनी मर्जी से शादी करना उसकी मौत का कारण न बने और परिवार को ऐसे ‘प्रायश्चित’ की नौबत न आए।

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