पहाड़ गिरा, तब स्कूल में पढ़ रहे थे 250 बच्चे: सूझबूझ से बचाई गई जानें, तोप के गोलों की तरह गिरे पत्थर

पहाड़ गिरा, तब स्कूल में पढ़ रहे थे 250 बच्चे: सूझबूझ से बचाई गई जानें, तोप के गोलों की तरह गिरे पत्थर

किन्नौर (हिमाचल प्रदेश)।
शुक्रवार को किन्नौर जिले के एक गांव में ऐसा हादसा हुआ जो अगर कुछ मिनट भी देर होता, तो एक बड़ी त्रासदी में तब्दील हो सकता था। यहां एक स्कूल के नजदीक अचानक पहाड़ का बड़ा हिस्सा दरक गया। उस वक्त स्कूल के भीतर करीब 250 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। ग्रामीणों और स्कूल प्रशासन की सूझबूझ और तेज़ प्रतिक्रिया से सभी बच्चों की जान बच गई, वरना परिणाम विनाशकारी हो सकते थे।

ग्रामीणों ने बताया कि लैंडस्लाइड इतनी भयानक थी कि ऐसा लगा जैसे पहाड़ से तोप के गोले छोड़े जा रहे हों। बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़े हवा में उड़ते हुए सीधे घरों की छतों और दीवारों में जा लगे। कई घरों की दीवारें चटक गईं और खिड़कियां टूट गईं। गांव में अफरातफरी मच गई।

हादसे का दृश्य: “एक धमाका हुआ, फिर बस पत्थर ही पत्थर”

घटना सुबह 10:45 बजे की है। स्कूल के बच्चों ने पहले तेज गर्जना जैसी आवाज सुनी, फिर धरती थोड़ी देर के लिए हिलने लगी। तभी सामने की पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा ढहने लगा। शिक्षक और स्थानीय ग्रामीण तुरंत हरकत में आए। उन्होंने बच्चों को फौरन स्कूल के पिछले हिस्से की ओर निकाला, जो सुरक्षित क्षेत्र था।

प्राइमरी स्कूल की प्रधानाचार्या सुनीता ठाकुर ने बताया, “एक पल को तो कुछ समझ ही नहीं आया, लेकिन पहाड़ी की तरफ से जो आवाज आ रही थी, उससे खतरे का अंदेशा हो गया था। हमने बच्चों को बाहर निकालना शुरू किया और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से सुरक्षित स्थान पर ले गए।”

ग्रामीणों की बहादुरी बनी बच्चों की ढाल

घटना के दौरान गांव के कई युवा और बुजुर्ग तत्काल स्कूल पहुंचे और बच्चों को सुरक्षित निकालने में मदद की। रामनाथ नेगी, जो गांव के वरिष्ठ नागरिक हैं, ने बताया, “ऐसा मंजर हमने पहले कभी नहीं देखा। पत्थर हवा में उड़ रहे थे और गोलों की तरह घरों में घुस रहे थे। लेकिन भगवान का शुक्र है कि कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ।”

ग्रामीणों ने बताया कि अगर लैंडस्लाइड का समय दोपहर 12 बजे के आसपास होता, जब स्कूल की छुट्टी होती है और बच्चे इधर-उधर निकलते हैं, तो मामला गंभीर हो सकता था।

प्रशासन की सक्रियता: तुरंत भेजी गई राहत टीम

हादसे की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन हरकत में आया। SDM कल्पा, मेघा राणा ने तुरंत NDRF और लोक निर्माण विभाग की टीम को मौके पर भेजा। उन्होंने कहा, “स्थिति का जायजा लिया गया है। फिलहाल किसी प्रकार की जानहानी नहीं हुई है, लेकिन एहतियातन स्कूल को अगले तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया है।”

स्थानीय प्रशासन ने पहाड़ी क्षेत्र के आसपास रहने वाले परिवारों को अलर्ट कर दिया है और कहा है कि जब तक भूगर्भीय सर्वे पूरा नहीं होता, उस इलाके में आवाजाही सीमित रखी जाए।

वैज्ञानिकों ने जताई चिंता: लगातार कमजोर हो रही पहाड़ियां

लैंडस्लाइड की यह घटना जलवायु परिवर्तन और निर्माण कार्यों पर भी सवाल खड़े करती है। भूगर्भशास्त्री प्रो. डी.सी. शर्मा ने कहा, “हिमालयी क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ गई हैं। अनियंत्रित कटाई, सड़क चौड़ीकरण और भारी बारिश की वजह से पहाड़ कमजोर हो चुके हैं। अब छोटे झटकों से भी वे दरकने लगते हैं।”

बच्चों और अभिभावकों की मनःस्थिति

हादसे के बाद बच्चों में डर और तनाव साफ देखा गया। कई बच्चों को शाम तक अपने माता-पिता से चिपके हुए देखा गया। रजनी, एक छात्रा ने बताया, “हमें लगा अब सब खत्म हो जाएगा। बहुत डर लग रहा था। लेकिन हमारे टीचर हमें लेकर भागे और हमें बचा लिया।”

अभिभावकों ने सरकार से अपील की है कि पहाड़ी स्कूलों की सुरक्षा के लिए विशेष नीति बने। बच्चों के स्कूल ऐसे स्थानों पर हों जो लैंडस्लाइड की जद में न आते हों।

भविष्य की तैयारी: स्कूलों के लिए अलर्ट सिस्टम की मांग

इस घटना ने एक बार फिर साबित किया कि स्कूल और सार्वजनिक संस्थानों में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर अलर्ट सिस्टम होना जरूरी है। अगर ऐसी कोई चेतावनी पहले मिलती, तो स्थिति को और बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था।

ग्रामीणों की मांग है कि पहाड़ी इलाकों में स्कूल, अस्पताल और पंचायत भवन जैसे संस्थानों के लिए भू-सर्वेक्षण को अनिवार्य किया जाए और यदि खतरा पाया जाए तो वैकल्पिक स्थल पर उन्हें स्थानांतरित किया जाए।

किन्नौर की यह घटना भले ही एक बड़ी त्रासदी में बदलने से बच गई, लेकिन यह एक चेतावनी है कि हिमालयी क्षेत्रों में विकास कार्यों और संरचनाओं की योजना अत्यंत सावधानी से बनानी चाहिए। प्रशासन को चाहिए कि इस तरह की घटनाओं से सबक लेकर भविष्य में और सतर्कता बरते, ताकि बच्चों की जिंदगियां सुरक्षित रह सकें।

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