
पानी उतरा तो दिखी दर्दनाक सच्चाई: खेत में एक-दूजे से लिपटे मिले चाचा-भतीजे के शव, पार्वती नदी में बाढ़ बनी काल ।
राजगढ़ (मध्य प्रदेश)। पार्वती नदी में आई भयावह बाढ़ ने एक गांव के परिवार को ऐसा जख्म दे दिया जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। जब बाढ़ का पानी उतरा तो गांव के पास खेत में जो दृश्य सामने आया, वह दिल को झकझोर देने वाला था। खेत की मिट्टी में एक-दूजे से लिपटे दो शव पड़े थे — एक 10 साल का मासूम बच्चा और उसका चाचा।
ये मंजर उस वक्त सामने आया जब ग्रामीण बाढ़ उतरने के बाद नुकसान का जायजा लेने निकले। बाढ़ के दौरान लापता हुए 10 वर्षीय शिवम यादव और उसके चाचा राजू यादव के शव खेत में पड़े मिले, जहां वे पानी के तेज बहाव में बह गए थे।
खेत में डाले पाइप हटाने गए थे दोनों, लेकिन मौत बनकर आई बाढ़
जानकारी के अनुसार, मंगलवार की दोपहर शिवम और उसके चाचा राजू अपने खेत में पानी के पाइप हटाने के लिए निकले थे। पार्वती नदी में अचानक पानी का तेज बहाव आया और देखते ही देखते दोनों उसमें बह गए। घरवालों ने काफी देर इंतजार किया लेकिन जब दोनों नहीं लौटे, तो गांव वालों की मदद से उनकी तलाश शुरू की गई।
शाम तक दोनों का कोई सुराग नहीं मिला। रात भर परिवार रोते-रोते बिता रहा था। बुधवार सुबह जब पानी कुछ कम हुआ, तो खोजबीन फिर शुरू की गई। उसी दौरान खेत के एक हिस्से में दोनों के शव नजर आए – एक दूसरे से लिपटे हुए।
शवों की स्थिति देख रो पड़ा गांव
जब गांववालों ने शवों को देखा तो हर आंख नम हो गई। शिवम का नन्हा शरीर चाचा राजू से चिपका हुआ था, मानो उसने आखिरी सांस तक खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश की हो। चाचा भी भतीजे को कसकर पकड़े हुए थे, जैसे उसे हर हाल में बचाना चाहते थे।
इस मार्मिक दृश्य को देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया। यह तस्वीर केवल एक हादसे की नहीं, बल्कि उस भावनात्मक रिश्ते की भी थी, जो संकट की घड़ी में भी मजबूती से खड़ा रहा।
बाढ़ से तबाही, प्रशासन पर उठे सवाल
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पार्वती नदी में बाढ़ हर साल आती है, लेकिन इस बार प्रशासन ने कोई विशेष चेतावनी नहीं दी। न ही किसी प्रकार की राहत व्यवस्था पहले से की गई थी। यदि समय पर जानकारी दी गई होती तो शायद यह हादसा टल सकता था।
गांव वालों ने प्रशासन से सवाल किया कि जब मौसम विभाग ने पहले ही भारी बारिश और बाढ़ की संभावना जताई थी, तब क्यों नहीं लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया?
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
शिवम यादव अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसकी मां बेसुध होकर बार-बार बेटे के नाम की रट लगाए जा रही है। राजू यादव, जो पेशे से किसान थे, अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे। अब घर में कमाई का कोई साधन नहीं बचा।
गांव के सरपंच और अन्य समाजसेवियों ने जिला प्रशासन से पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देने की मांग की है। प्रशासन ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और आपदा राहत फंड से सहायता का आश्वासन भी दिया है।
भावनात्मक लहर, गांव में शोक का माहौल
पूरे गांव में मातम पसरा हुआ है। स्कूल के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं—हर कोई इस हृदयविदारक घटना से व्यथित है। लोग लगातार पीड़ित परिवार के घर पहुंचकर उन्हें सांत्वना देने की कोशिश कर रहे हैं। शिवम के स्कूल में भी शोकसभा आयोजित की गई, जहां उसके शिक्षकों और सहपाठियों ने श्रद्धांजलि दी।
प्राकृतिक आपदाओं से सीख जरूरी
यह घटना एक बार फिर यह याद दिलाती है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लापरवाही कितनी महंगी साबित हो सकती है। बाढ़, बारिश और नदी-नालों के उफान से पहले ही लोगों को सचेत किया जाना चाहिए।
आपदा प्रबंधन विभाग को चाहिए कि गांव-गांव में चेतावनी और जागरूकता अभियान चलाए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं टाली जा सकें। साथ ही राहत और बचाव दलों को हर संभावित क्षेत्र में तैनात किया जाए।