हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना के बाद आरती करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। आरती न सिर्फ ईश्वर की स्तुति है, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा, शुद्ध वातावरण और मन की एकाग्रता बढ़ाने का एक पवित्र माध्यम भी है। धार्मिक मान्यताओं और ऊर्जा के सिद्धांतों के अनुसार आरती हमेशा दक्षिणावर्त यानी क्लॉकवाइज दिशा में ही घुमाई जाती है। ऐसा मानना है कि दक्षिणावर्त दिशा में घुमाने से ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और घर-परिवार में शुभता का संचार होता है। आइए जानें आखिर क्यों आरती दक्षिणावर्त होती है, इसका आध्यात्मिक रहस्य क्या है और आरती का सही तरीका क्या बताया गया है।

दक्षिणावर्त दिशा में आरती घुमाने का धार्मिक रहस्य
हिंदू धर्मग्रंथों में दक्षिणावर्त को शुभ दिशा माना गया है। यह दिशा सूर्य के उदय से अस्त तक की प्राकृतिक गति को दर्शाती है। माना जाता है कि सूर्य का मार्ग हमेशा दाईं ओर घूमता है, इसलिए पूजा में दक्षिणावर्त दिशा शुभ फल देती है। आरती को इस दिशा में घुमाने से ऊर्जा का प्रवाह ईश्वर से भक्त तक पहुंचता है और वातावरण पवित्र होता है।
ऊर्जा विज्ञान से समझें आरती की दिशा का महत्व
ऊर्जा के सिद्धांतों के अनुसार दक्षिणावर्त दिशा में गति करने से सकारात्मक ऊर्जा का चक्र बनता है। इस दिशा का प्रभाव मन, शरीर और आसपास के वातावरण में शांत और सकारात्मक तरंगों का निर्माण करता है।
आरती की लौ को क्लॉकवाइज घुमाने से अग्नि तत्व सक्रिय होता है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि करता है।
आरती कितनी बार घुमानी चाहिए? जानें सही संख्या
धार्मिक मान्यताओं में आरती की थाली घुमाने की संख्या भी निर्धारित है। माना जाता है—
भगवान के चरणों के लिए 4 बार
नाभि क्षेत्र के लिए 6 बार
मुख क्षेत्र के लिए 3 बार
पूरे शरीर के लिए 7 बार
कुल मिलाकर थाली को कम से कम 20 बार दक्षिणावर्त घुमाना शुभ माना गया है। हालांकि कई मंदिरों और घरों में भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार थाली अधिक बार भी घुमा सकते हैं।
आरती करते समय किन नियमों का पालन जरूरी है?
आरती केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति समर्पण और पवित्रता का सूचक है। इसलिए इसमें कुछ नियमों का पालन अत्यंत जरूरी कहा गया है—
आरती हमेशा दाहिने हाथ से की जाए।
दीपक या कपूर स्थिर और शुद्ध होना चाहिए।
आरती के समय मन को एकाग्र रखें।
आरती पूरी होने के बाद इसे भगवान के सामने तीन बार घुमा कर सभी को दिखाएं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा सब में पहुंचे।
आरती के बाद हाथ से हवा लेकर अपने ऊपर और घर के सभी सदस्यों पर फेरें।
आरती का आध्यात्मिक महत्व
आरती को पूजा का समापन माना जाता है, लेकिन इसका महत्व शुरुआत से भी अधिक बताया गया है। यह मन की शांति, घर में समृद्धि, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, आरती करते समय भक्त और भगवान के बीच ऊर्जात्मक संबंध बनता है जो जीवन में सुख-शांति लाता है।
यह लेख धार्मिक मान्यताओं, पारंपरिक रीति-रिवाजों और प्रचलित मान्यता पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी विश्वास या परंपरा का प्रचार नहीं, बल्कि जानकारी साझा करना है। पाठक अपनी श्रद्धा और मान्यता के अनुसार ही निर्णय लें।
