
बैद्यनाथ धाम मंदिर में सबसे पहले क्यों चढ़ाई जाती है राखी? देवघर के ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अनोखी परंपरा, ।
देवघर, झारखंड का पावन स्थल बैद्यनाथ धाम मंदिर न केवल अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की कई अनोखी परंपराएं भी श्रद्धालुओं के दिल में खास जगह रखती हैं। इन्हीं में से एक परंपरा है — सबसे पहले बाबा बैद्यनाथ को राखी चढ़ाने की। सावन माह में लाखों कांवड़िए गंगाजल लेकर बाबा के दरबार में जलाभिषेक करने आते हैं, लेकिन श्रावणी मेले के समापन के बाद भाद्रपद माह में राखी चढ़ाने की विशेष परंपरा निभाई जाती है।
परंपरा की शुरुआत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राखी यानी रक्षासूत्र केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा और आशीर्वाद का भी प्रतीक है। मान्यता है कि सबसे पहले राखी बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाई जाती है, ताकि पूरे साल भक्तों और नगरवासियों की रक्षा हो। यहां भादो मेला की शुरुआत बाबा को राखी अर्पित करने से होती है।
ऐतिहासिक लोककथाओं में कहा जाता है कि जब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की रक्षा के लिए अपने आंचल से कपड़ा बांधा था, तब से रक्षासूत्र की परंपरा का विस्तार हुआ। बैद्यनाथ धाम में इसे दिव्य रूप देते हुए सावन के बाद भाद्रपद में राखी बाबा को बांधने की रस्म प्रचलित हो गई।
धार्मिक मान्यता
1. रक्षा का वचन – बाबा बैद्यनाथ को राखी बांधकर यह आशीर्वाद मांगा जाता है कि पूरे नगर और भक्तों की हर आपदा से रक्षा हो।
2. श्रद्धा का प्रतीक – यह परंपरा भक्त और भगवान के बीच अटूट विश्वास को दर्शाती है।
3. सालभर की मंगलकामना – मान्यता है कि राखी चढ़ाने से पूरे वर्ष सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
भादो मेला और राखी चढ़ाने की रस्म
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को भादो मेला का शुभारंभ होता है। इस दिन मंदिर के पुजारी विशेष पूजा-अर्चना कर बाबा को राखी अर्पित करते हैं। इसके बाद ही आम भक्तों के लिए राखी चढ़ाने का सिलसिला शुरू होता है।
राखी अक्सर लाल-पीले रंग की होती है, जिस पर अक्षत, रोली और हल्दी का तिलक किया जाता है।
राखी चढ़ाने के बाद भक्त शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा और भस्म भी अर्पित करते हैं।
मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ रक्षा-सूत्र बांधने की विशेष विधि निभाई जाती है।
पौराणिक कथा से जुड़ाव
पुराणों के अनुसार, राक्षस राजा रावण ने कठोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने की कोशिश की। लेकिन रास्ते में छल के कारण शिवलिंग यहीं स्थिर हो गया। तब से बाबा बैद्यनाथ को ‘कामना लिंग’ के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि राखी चढ़ाने से भगवान विशेष रूप से प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं और उन्हें संकट से बचाते हैं।
सामाजिक संदेश
बैद्यनाथ धाम में राखी चढ़ाने की परंपरा सुरक्षा और भाईचारे का संदेश देती है। यह केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। यहां हर जाति और वर्ग के लोग मिलकर बाबा को राखी अर्पित करते हैं।
सावन से भादो तक का धार्मिक सफर
सावन मेला: गंगाजल से जलाभिषेक, लाखों कांवड़ियों की भीड़
भादो मेला: राखी चढ़ाने से शुरुआत, स्थानीय सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन
विशेष पूजा: मंदिर परिसर में रात्रि जागरण, शिव महिमा के भजन, आरती और प्रसाद वितरण
आज भी जीवंत परंपरा
आज भी यह परंपरा उतनी ही श्रद्धा से निभाई जाती है जितनी सदियों पहले शुरू हुई थी। स्थानीय लोग मानते हैं कि बाबा बैद्यनाथ को सबसे पहले राखी बांधना उनके पूरे वर्ष को सुरक्षित और मंगलमय बना देता है। यही कारण है कि भाद्रपद माह के इस विशेष अवसर पर मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
बैद्यनाथ धाम में राखी चढ़ाने की परंपरा धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम है। यह रस्म हमें याद दिलाती है कि जैसे बहन भाई की लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए राखी बांधती है, वैसे ही भक्त भी अपने ईष्टदेव से सुरक्षा और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
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देवघर के बैद्यनाथ धाम मंदिर में सबसे पहले राखी चढ़ाने की परंपरा का धार्मिक महत्व, भादो मेले से जुड़ी मान्यता और पौराणिक कथा जानें।
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