
सांभर वड़ा में छेद क्यों होता है? जानिए इसके पीछे की दिलचस्प वजह!
साउथ इंडियन फूड में सांभर वड़ा एक लोकप्रिय डिश है, जिसे देखते ही हर फूडी का दिल खुश हो जाता है। बाहर से कुरकुरा और अंदर से नरम वड़ा, जब गर्मागरम सांभर में डूबा होता है, तो उसका स्वाद किसी स्वर्गिक अनुभव से कम नहीं लगता। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि इस वड़े के बीच में छेद क्यों होता है? क्या यह बस एक डिजाइन है या इसके पीछे कोई ठोस वजह है? चलिए, जानते हैं इसकी पूरी कहानी।
छेद वाली बनावट: स्वाद के पीछे विज्ञान
वड़े में छेद सिर्फ उसे आकर्षक दिखाने के लिए नहीं होता, बल्कि इसके पीछे पारंपरिक कुकिंग का विज्ञान छिपा है। छेद से वड़ा सिर्फ एक जैसा फ्राई होता है, बल्कि यह कई और मायनों में उपयोगी भी है।
🔥 1. समान रूप से पकाने में मदद करता है
वड़ा मोटा होता है और अगर इसका बीच का हिस्सा ठोस रहे तो तलने के दौरान वह अच्छी तरह से नहीं पकता। इसलिए वड़े में बीच में छेद किया जाता है, ताकि तलते समय गर्म तेल पूरे वड़े के संपर्क में आ सके और वह अंदर तक अच्छी तरह कुरकुरा और पक जाए।
🍴 2. पकाने में समय और तेल की बचत
छेद के कारण वड़े को पकाने में अपेक्षाकृत कम समय और कम तेल लगता है। बिना छेद वाले वड़े को अच्छे से पकाने के लिए उसे ज़्यादा देर तलना पड़ता, जिससे ज्यादा तेल भी लगता और ऊर्जा भी।
🧂 3. बेहतर टेक्सचर और स्वाद
जब वड़ा चारों तरफ से अच्छी तरह फ्राई होता है, तो उसका टेक्सचर शानदार होता है – बाहर क्रिस्पी और अंदर स्पंजी। यही कारण है कि वड़े का असली स्वाद तभी आता है जब वह एक समान रूप से पका हो, जो कि छेद से संभव होता है।
🍛 4. सांभर में जल्दी डूबता है और स्वाद सोखता है
जब वड़ा सांभर में डाला जाता है तो छेद वाला वड़ा ज्यादा जल्दी और गहराई से सांभर का स्वाद सोखता है, क्योंकि उसका बीच खुला होता है और मसालेदार सांभर हर हिस्से में समा जाता है।
क्या छेद होना जरूरी है?
हालांकि आज के समय में वड़े की कई वैरायटीज बनती हैं – जैसे मिनी वड़ा, मिक्स वेज वड़ा, बिना छेद के वड़ा आदि – लेकिन पारंपरिक “उड़द दाल” वड़ा, जिसे “मेंदु वड़ा” कहा जाता है, उसी क्लासिक छेद के साथ बनता है। यह सिर्फ साउथ इंडिया तक सीमित नहीं रहा, अब देशभर के साथ-साथ विदेशों में भी लोग इसकी इस खासियत को पसंद करते हैं।
कैसे बना वड़ा का छेद एक ट्रेडिशन?
पारंपरिक रूप से वड़ा हाथ से बनाया जाता था और अंगूठे से बीच में हल्का सा छेद कर दिया जाता था। यह कई पीढ़ियों से चली आ रही एक कुकिंग ट्रिक है, जो समय के साथ परंपरा में बदल गई। खास बात ये है कि यह सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी बेहद कारगर साबित हुई।
वड़े के बीच का छेद उसकी पहचान है – स्वाद और विज्ञान का मेल। यह एक ऐसा उदाहरण है कि कैसे पारंपरिक रेसिपीज़ में भी विज्ञान छिपा होता है, जो स्वाद को बेहतर बनाता है और पकाने की प्रक्रिया को आसान।
अब जब अगली बार आप सांभर वड़ा खाएं, तो वड़े के उस छोटे से छेद की अहमियत को ज़रूर याद करें। यह सिर्फ एक आकार नहीं, बल्कि अनुभव को बेहतर बनाने की सोच है!