विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: धरती बचाने की दिशा में जागरूकता की अनोखी मुहिम”

“विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: धरती बचाने की दिशा में जागरूकता की अनोखी मुहिम”

नई दिल्ली,धरती मां कराह रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जंगल सिमट रहे हैं और हवा में जहर घुलता जा रहा है। लेकिन अब वक्त है कुछ कर दिखाने का। हर साल 28 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) हमें इस संकट को पहचानने और समाधान की ओर बढ़ने का अवसर देता है।

इस खास दिन का मकसद लोगों को प्रकृति के प्रति जिम्मेदार बनाने और संसाधनों के संरक्षण की दिशा में प्रेरित करना है। इस वर्ष का थीम है — “Sustaining Nature for a Sustainable Future”, यानी ‘प्रकृति का संरक्षण ही भविष्य की स्थिरता है।

क्यों जरूरी है प्रकृति का संरक्षण?

विज्ञान और तकनीक की प्रगति के साथ मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। आज विश्वभर में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता में गिरावट, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी समस्याएं मानव अस्तित्व के लिए खतरा बन चुकी हैं।

वनों की कटाई ने न केवल जीव-जंतुओं के आवास छीने, बल्कि वर्षा और जलचक्र को भी प्रभावित किया है।

जल संकट वैश्विक आपातकाल का रूप ले चुका है। WHO के अनुसार, 2030 तक आधी से ज्यादा दुनिया को पीने के साफ पानी की गंभीर किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र स्तर बढ़ रहा है और तटीय क्षेत्रों पर खतरा मंडरा रहा है।

हर व्यक्ति की भूमिका जरूरी हैं।
प्रकृति का संरक्षण केवल सरकार या संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें हर नागरिक की भागीदारी उतनी ही जरूरी है। छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं:

प्लास्टिक का उपयोग कम करें और पुनः उपयोग वाली चीजों को अपनाएं।

जल की बर्बादी रोकें। नल बंद रखें, वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दें।

पेड़ लगाएं और आसपास हरियाली बढ़ाएं।

स्थानीय और जैविक उत्पादों का उपयोग कर कार्बन फुटप्रिंट घटाएं।

सार्वजनिक परिवहन को अपनाएं और ईंधन की खपत घटाएं।

भारत में प्रकृति संरक्षण की दिशा में कुछ प्रेरणादायक पहलें:

1. सूर्य उगाने की पहल – राजस्थान के गांवों में महिलाएं सोलर एनर्जी से गांवों को रोशन कर रही हैं।

2. मियावाकी जंगल – देश के कई हिस्सों में शहरी क्षेत्रों में इस जापानी तकनीक से मिनी जंगल विकसित किए जा रहे हैं।

3. प्लास्टिक बैंक – केरल में युवाओं ने प्लास्टिक को इकट्ठा कर उसे निर्माण सामग्री में बदलना शुरू किया।

विद्यार्थी और युवा बनें ‘ग्रीन वॉरियर्स’ युवाओं को प्रेरित करना है। विद्यार्थी अपने स्कूल-कॉलेज में ‘ग्रीन क्लब’ बना सकते हैं, पेड़-पौधों की देखभाल कर सकते हैं, और ‘ग्रीन प्रोजेक्ट्स’ पर काम कर सकते हैं।

आज का युवा अगर पर्यावरण के लिए प्रतिबद्ध हो जाए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।

सरकार और नीति निर्माताओं से अपेक्षा

हालांकि सरकारें कई प्रयास कर रही हैं — जैसे राष्ट्रीय हरित मिशन, स्वच्छ भारत अभियान, सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध — लेकिन ज़मीनी क्रियान्वयन और जागरूकता अब भी एक बड़ी चुनौती है।

नीतियों का फायदा तभी मिलेगा जब समाज का हर वर्ग इसमें भागीदार बने। मीडिया, कॉरपोरेट सेक्टर, स्कूल और पंचायतें — सभी को मिलकर एक साझा दृष्टिकोण अपनाना होगा।

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर हमें सिर्फ संदेश नहीं देना, बल्कि व्यवहार में बदलाव लाना है।
यह समय है जब हमें प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का रास्ता अपनाना होगा, नहीं तो हम एक अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं।

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