
35 साल पहले टीवी पर राज करता था ‘मुल्ला नसरुद्दीन’: हास्य और हकीकत का अद्भुत संगम
भूमिका:1990 के दशक का भारतीय टेलीविजन एक स्वर्णिम युग था। इस दौर में दर्शकों को मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश देने वाले कई ऐसे शोज़ मिले, जो आज भी लोगों की यादों में जिंदा हैं। इन्हीं में से एक नाम है – “मुल्ला नसरुद्दीन”। यह शो ना सिर्फ अपने हास्य से भरपूर अंदाज के लिए जाना गया, बल्कि इसकी कहानियों में छुपा गहरा दर्शन और व्यंग्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
मुल्ला नसरुद्दीन: कौन थे ये किरदार?
मुल्ला नसरुद्दीन मूल रूप से मध्य एशिया और अरब लोककथाओं का एक प्रसिद्ध किरदार है। उसे तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान से लेकर भारत तक के लोक साहित्य में जगह मिली है। एक बुद्धिमान लेकिन हास्यप्रधान शख्सियत जो सामान्य घटनाओं में भी असामान्य सोच दिखाता है। उसकी कहानियां मज़ेदार होती थीं, लेकिन उनका मकसद होता था समाज को आइना दिखाना।
टीवी पर शो की एंट्री:
1980 के दशक के आखिर और 90 के शुरुआती वर्षों में जब दूरदर्शन का बोलबाला था, तब “मुल्ला नसरुद्दीन” नामक एक टेलीविजन शो आया जिसने भारतीय दर्शकों को गुदगुदाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर कर दिया। इस शो का निर्माण सी. एफ. एस. आई. (चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया) द्वारा किया गया था, और इसका निर्देशन फारूक़ मशीह ने किया था।
बच्चों का पसंदीदा, बड़ों का आइना:इस शो की खास बात यह थी कि यह बच्चों को ध्यान में रखकर बनाया गया था, लेकिन इसकी गहराई बड़ों को भी उतनी ही प्रभावित करती थी। मुल्ला अपने गांव में लोगों की समस्याओं को अपने अलग अंदाज़ में सुलझाता था। उसका नजरिया सीधा, व्यावहारिक और हास्य से भरपूर होता था। वह राजा, दरबारी, दुकानदार, गरीब और अमीर सभी से एक बराबरी की भाषा में बात करता था।
किरदार और अभिनय:
मुल्ला नसरुद्दीन का किरदार निभाने वाले अभिनेता ने इसे इतना जीवंत बना दिया था कि लोग उसे असल मुल्ला समझने लगे। उसकी चाल-ढाल, बोलने का तरीका और चेहरे के हावभाव इतने स्वाभाविक थे कि बच्चे उन्हें अपने नायक की तरह देखने लगे। शो में अन्य सहायक कलाकार भी शानदार थे, जो ग्रामीण परिवेश, समाज की बुराइयों और इंसानी फितरत को दर्शाने में मदद करते थे।
सामाजिक संदेश और व्यंग्य:
हर एपिसोड एक नई कहानी लाता था, जो आम जीवन की घटनाओं से प्रेरित होती थी — भ्रष्टाचार, मूर्खता, लालच, झूठ, दिखावा, और धर्म का ढोंग जैसे विषयों पर मुल्ला अपने तंज और चुटीले संवादों से वार करता था। सबसे खास बात थी कि यह व्यंग्य बच्चों की समझ में भी आता था और बड़ों को भी चुभता था।
हास्य की ताकत से बदलाव की कोशिश:
मुल्ला नसरुद्दीन जैसे किरदार भारतीय टेलीविजन के उस दौर का हिस्सा थे, जब मनोरंजन को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश होती थी। मुल्ला की कहानियों ने यह दिखाया कि हास्य केवल हंसाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली माध्यम भी बन सकता है।
दर्शकों की प्रतिक्रिया:
90 के दशक में जब टीवी सीरियल सीमित हुआ करते थे, मुल्ला नसरुद्दीन घर-घर में देखा जाता था। इसका प्रसारण रविवार सुबह होता था, और पूरे परिवार को साथ में हंसने का मौका मिलता था। यह वह दौर था जब दर्शकों को न तो तेज़-तर्रार स्क्रिप्ट चाहिए होती थी और न ही हाई-टेक ग्राफिक्स — केवल एक अच्छी कहानी, दमदार अभिनय और सच्चाई से जुड़ी बातें ही काफी होती थीं।
आज की पीढ़ी और मुल्ला नसरुद्दीन:
आज जब बच्चों के मनोरंजन के नाम पर केवल एनिमेशन और एक्शन शोज़ का बोलबाला है, मुल्ला नसरुद्दीन जैसे सीरियल की कमी साफ महसूस होती है। यह शो हमें याद दिलाता है कि सादगी में भी कितनी शक्ति होती है। शायद आज के समय में ऐसे किरदारों की ज़रूरत और भी ज्यादा है, जो हँसी के माध्यम से समाज की कमियों को उजागर करें।
“मुल्ला नसरुद्दीन” केवल एक टीवी शो नहीं था, बल्कि वह भारतीय टेलीविजन का एक ऐसा अध्याय था जिसने मनोरंजन के जरिए ज्ञान, हास्य और दर्शन को एकसाथ परोसा। ऐसे कार्यक्रमों की वापसी न सिर्फ मनोरंजन को सार्थक बना सकती है, बल्कि नई पीढ़ी को एक बेहतर सोच भी दे सकती है। 35 साल बाद भी मुल्ला की कहानियां हमें यही सिखाती हैं — “अगर समझदारी में हास्य हो, तो वह सबसे प्रभावी संदेश बन जाता है।”