
बिहार में पत्रकारिता पर हमला: बेगूसराय में पत्रकार प्रिंस कुमार और परिवार पर जानलेवा हमला, लोकतंत्र की आवाज को कुचलने की साजिश।
बिहार में एक बार फिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ—पत्रकारिता—पर खौफनाक हमला हुआ है, जिसने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बेगूसराय जिले के चेरिया बरियारपुर थाना क्षेत्र में एक स्थानीय पत्रकार प्रिंस कुमार और उनके परिवार को दिनदहाड़े बुरी तरह पीटा गया। हमलावर कोई और नहीं, बल्कि गांव के मुखिया के पति प्रमोद महतो और उसके सहयोगी थे, जो पत्रकार की निष्पक्ष और साहसी रिपोर्टिंग से नाराज थे।
सच की कीमत: खून और आंसू
प्राप्त जानकारी के अनुसार, पत्रकार प्रिंस कुमार क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार, सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी और पंचायत स्तर पर हो रही अनियमितताओं को उजागर कर रहे थे। उन्होंने हाल ही में कुछ गंभीर खुलासे किए थे, जिनसे स्थानीय सत्ता से जुड़े लोगों की पोल खुल रही थी। इसी बात से नाराज होकर मुखिया पति प्रमोद महतो और उसके गुर्गों ने 16 जुलाई की शाम पत्रकार के घर पर हमला बोल दिया।
परिजनों को भी नहीं छोड़ा
यह हमला सिर्फ प्रिंस कुमार पर ही नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार पर था। हमलावरों ने लाठी-डंडों, लोहे की रॉड और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए उनके परिजनों को भी बेरहमी से पीटा। हमले के दौरान पत्रकार और उनके परिजनों के सिर, हाथ और पीठ पर गंभीर चोटें आईं। पूरा परिवार खून से लथपथ होकर बेहोश हो गया। ग्रामीणों की मदद से उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है।
प्रत्यक्षदर्शियों का बयान
स्थानीय लोगों का कहना है कि पत्रकार की रिपोर्टिंग से कई लोगों की पोल खुल रही थी। उन्होंने बताया कि हमलावर खुलेआम धमकी दे रहे थे कि अगर कोई सच बोलने या लिखने की कोशिश करेगा, तो उसका यही अंजाम होगा। ग्रामीणों ने प्रशासन से इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
इस जघन्य घटना के बाद भी प्रशासन की तरफ से कोई ठोस और त्वरित कार्रवाई नहीं की गई है। घटना के बाद पत्रकार संगठनों और बुद्धिजीवियों ने प्रशासनिक निष्क्रियता पर नाराजगी जताई है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सत्ता से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना अब भी मुश्किल है?
पत्रकार संगठनों की प्रतिक्रिया
घटना के बाद राज्यभर के पत्रकार संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अगर इस तरह के हमलों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो पत्रकारिता का स्वरुप ही खत्म हो जाएगा। प्रेस की आज़ादी और लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवाज़ उठाने की जरूरत है।
बेगूसराय की यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि स्वतंत्र पत्रकारिता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा प्रहार है। यह सवाल खड़ा करती है कि जब सच्चाई को उजागर करने वाले पत्रकार ही सुरक्षित नहीं, तो आम नागरिक कैसे सुरक्षित रहेंगे? अब वक्त आ गया है कि सरकार और प्रशासन जागे, दोषियों को सख्त सजा दे और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कानून बनाए।
क्योंकि जब कलम डरने लगे, तो स्याही खून बन जाती है।