थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद: एक मंदिर बना तनाव की वजह

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद: एक मंदिर बना तनाव की वजह

नई दिल्ली/फ्नॉम पेन्ह/बैंकॉक:
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच हालिया सीमा तनाव ने फिर एक बार दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति में ऐतिहासिक विरासत और क्षेत्रीय संप्रभुता के टकराव को उजागर कर दिया है। इस विवाद की जड़ें एक प्राचीन मंदिर—प्रेआ विहेयर मंदिर (Preah Vihear Temple)—में छिपी हैं, जिसकी दीवारें न सिर्फ इतिहास की गवाही देती हैं, बल्कि आज की कूटनीति और राष्ट्रीयता की भी कसौटी बन गई हैं।

प्रेआ विहेयर मंदिर: इतिहास की छाया में राजनीति

11वीं सदी में निर्मित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और खमेर साम्राज्य की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। लेकिन इस स्थान का महत्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। यह मंदिर थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा के पास एक पहाड़ी पर स्थित है, जिससे दोनों देशों के लिए यह भौगोलिक और प्रतीकात्मक दृष्टि से भी अहम हो जाता है।

1954 में जब फ्रांसीसी उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद कंबोडिया स्वतंत्र हुआ, तब से यह क्षेत्र दोनों देशों के बीच विवाद का विषय बन गया। 1962 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने अपने फैसले में कहा कि मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में आता है, लेकिन इसके आसपास का इलाका—विशेषकर इसके उत्तर की ओर का सीमावर्ती क्षेत्र—थाईलैंड के अधिकार में रहा। इसी अस्पष्टता ने दशकों से तनाव को जीवित रखा।

हालिया संघर्ष: आग फिर भड़की

2025 की शुरुआत में मंदिर के आसपास कुछ निर्माण गतिविधियों और सैन्य गतिविधियों के कारण विवाद फिर उभर आया। कंबोडिया ने आरोप लगाया कि थाई सैनिकों ने उसके क्षेत्र में घुसपैठ की है, जबकि थाईलैंड का दावा है कि वह सिर्फ अपने सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा कर रहा है।

इस तनाव ने स्थानीय निवासियों में डर और असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया है। सीमावर्ती गांवों में स्कूल बंद हो गए हैं और दोनों देशों की सेनाएं एक बार फिर आमने-सामने खड़ी हैं। अब तक किसी बड़ी हिंसक झड़प की खबर नहीं है, लेकिन दोनों देशों में राष्ट्रवादी भावना और मीडिया के प्रचार ने स्थिति को और संवेदनशील बना दिया है।

राजनीतिक संदेश और राष्ट्रीय गौरव

इस मंदिर के नियंत्रण को लेकर दोनों देशों में गहरी राजनीतिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। कंबोडिया के लिए यह मंदिर उसकी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, तो थाईलैंड के लिए यह एक राष्ट्रवादी भावना से जुड़ा मुद्दा बन चुका है। दोनों देशों की राजनीति में मंदिर को लेकर आक्रामक बयानबाज़ी और भावनात्मक अपील देखी जा रही है।

कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने हाल ही में एक सार्वजनिक बयान में कहा, “हमारी विरासत पर कोई दावा नहीं कर सकता। हम अपने इतिहास और संस्कृति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।” वहीं, थाईलैंड की संसद में विपक्षी नेताओं ने सरकार पर दबाव डाला है कि वह “राष्ट्रीय गौरव से समझौता न करे।”

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की गुंजाइश

संयुक्त राष्ट्र और ASEAN जैसे क्षेत्रीय संगठन इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण समाधान की अपील कर चुके हैं। वर्ष 2013 में ICJ ने एक बार फिर स्पष्ट किया था कि मंदिर परिसर के पास का क्षेत्र भी कंबोडिया का हिस्सा है, लेकिन इस फैसले को थाईलैंड ने पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस विवाद का समाधान निकालने की फिर ज़रूरत महसूस की जा रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दोनों देश आपसी संवाद और समझौतों के जरिए स्थायी सीमा निर्धारण नहीं करते, तब तक ऐसे तनाव समय-समय पर उभरते रहेंगे।

स्थानीय लोगों की चिंता: संस्कृति से ज़्यादा रोज़गार की भूख

सीमा के दोनों ओर रहने वाले ग्रामीण इस पूरे विवाद से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। मंदिर पर्यटन का एक बड़ा केंद्र रहा है, जिससे कई स्थानीय लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। हर बार जब विवाद बढ़ता है, मंदिर को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता है, और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है।

एक स्थानीय दुकानदार का कहना है, “हमें मंदिर से श्रद्धा भी है और पेट की रोटी भी। लेकिन हर बार हम ही बीच में पिसते हैं। जब नेता लड़ते हैं, तो हमारी रोज़ी रोटी छिन जाती है।”

भविष्य की राह: इतिहास को राजनीति से अलग रखने की ज़रूरत

ऐसे ऐतिहासिक धरोहर स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल केवल भावनाओं को भड़काने और सीमाओं को मजबूत करने का काम करता है, जबकि इनका उद्देश्य मानवता और संस्कृति को जोड़ना होना चाहिए। प्रेआ विहेयर मंदिर दक्षिण-पूर्व एशिया की सांझी विरासत का प्रतीक हो सकता है, यदि दोनों देश इसे विवाद की जगह सहयोग का केंद्र मानें।

विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है कि थाईलैंड और कंबोडिया मिलकर इस क्षेत्र को एक संयुक्त सांस्कृतिक स्थल के रूप में विकसित करें, जहां दोनों देश अपनी भागीदारी से इतिहास और पर्यावरण की रक्षा करें।

निष्कर्ष: संस्कृति के नाम पर संघर्ष नहीं, संवाद हो

प्रेआ विहेयर मंदिर सिर्फ पत्थरों की एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि यह एक परीक्षा है—राजनीति और संस्कृति के संतुलन की, सीमा और सहयोग की, इतिहास और भविष्य की। थाईलैंड और कंबोडिया के लिए यह एक अवसर हो सकता है—संघर्ष नहीं, साझा विरासत को संभालने का।

 

 

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