देवघर। सिंह दरवाजा तोड़ने के विरोध में बोले सांसद निशिकांत दुबे – “जब तक सांसद रहूंगा, मंदिर की मूल संरचना से कोई छेड़छाड़ नहीं होने दूंगा”

देवघर। सिंह दरवाजा तोड़ने के विरोध में बोले सांसद निशिकांत दुबे – “जब तक सांसद रहूंगा, मंदिर की मूल संरचना से कोई छेड़छाड़ नहीं होने दूंगा”

बाबा बैद्यनाथ मंदिर कॉरिडोर प्रोजेक्ट पर दी प्रतिक्रिया, 900 करोड़ का प्रस्ताव केंद्र को भेजने की पुष्टि

देवघर। गोड्डा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने रविवार को बाबा बैद्यनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया कि वे मंदिर की मूलभूत संरचना में किसी भी प्रकार का बदलाव बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 900 करोड़ रुपये का प्रपोजल केंद्र को भेजा है, लेकिन यह तभी साकार होगा जब यहां के लोग इसे चाहेंगे। साथ ही उन्होंने कॉरिडोर के प्रस्तावित नक्शे में सिंह दरवाजा को तोड़ने की योजना का भी कड़ा विरोध किया।

सिंह दरवाजा विवाद पर सीधा बयान

सांसद दुबे ने कहा कि कॉरिडोर के नक्शे में सिंह दरवाजा को तोड़ने का प्रस्ताव शामिल है, और इसी का उन्होंने विरोध किया है। उनके मुताबिक, सिंह दरवाजा सिर्फ एक प्रवेश द्वार नहीं बल्कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।
उन्होंने आरोप लगाया कि “मेरे खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया गया है, वह इसी वजह से किया गया, क्योंकि मैं सिंह दरवाजा तोड़ने के खिलाफ खड़ा हूं और कुछ लोग इसके पक्ष में हैं।”

2009 से सांसद, संरचना की सुरक्षा का संकल्प
निशिकांत दुबे ने कहा, “जब तक मैं सांसद हूं, बाबा मंदिर की मूलभूत संरचना में कोई छेड़छाड़ नहीं होने दूंगा। यह सिर्फ मेरी राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मेरी आस्था और धर्म की रक्षा का संकल्प है।”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वे 2009 से गोड्डा के सांसद हैं और लगातार बाबा बैद्यनाथ धाम के विकास के लिए प्रयासरत हैं।

मां काली मंदिर की खंडित मूर्ति का मुद्दा
बैद्यनाथ मंदिर परिसर में स्थित मां काली की खंडित मूर्ति को लेकर भी सांसद ने चिंता जताई। उन्होंने बताया कि नई मूर्ति आ चुकी है, लेकिन पुरानी मूर्ति को अब तक नहीं हटाया गया है।
उन्होंने सवाल उठाया – “इस मूर्ति को किसने लगवाया, कब और कहां से लाई गई, इसका कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है। जब तक इसकी उत्पत्ति और स्थापना का प्रमाण नहीं मिलता, तब तक इसे कैसे हटाया जा सकता है?”
सांसद ने कहा कि यह सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रश्न नहीं, बल्कि परंपरा और इतिहास से जुड़े तथ्यों की पहचान का मामला है।

कॉरिडोर निर्माण को लेकर जनता की राय पर जोर

सांसद ने माना कि बैद्यनाथ मंदिर के लिए कॉरिडोर निर्माण एक बड़ा प्रोजेक्ट है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के फैसलों में स्थानीय जनता की सहमति अनिवार्य है।
“अगर यहां के लोग चाहेंगे तो कॉरिडोर बनेगा, वरना इसे थोपा नहीं जाएगा,” सांसद दुबे ने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि विकास के नाम पर इतिहास और विरासत को मिटाना किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।

विवाद और राजनीतिक पृष्ठभूमि

हाल के दिनों में बाबा बैद्यनाथ मंदिर कॉरिडोर प्रोजेक्ट को लेकर राजनीतिक और धार्मिक स्तर पर बहस तेज हो गई है। प्रस्तावित नक्शे में मंदिर परिसर के कुछ हिस्सों, खासकर सिंह दरवाजा, को तोड़ने की योजना सामने आने के बाद कई पक्षों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
निशिकांत दुबे का यह बयान ऐसे समय आया है जब उन पर मंदिर के गर्भगृह में जबरन प्रवेश और धक्का-मुक्की के आरोप में केस दर्ज हुआ है। हालांकि, सांसद का कहना है कि यह मुकदमा सिर्फ उनके विरोधी रुख के कारण किया गया है।

इतिहास और महत्व
बाबा बैद्यनाथ धाम, जिसे बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए आस्था का केंद्र है। यहां हर साल सावन मास में करोड़ों श्रद्धालु जलार्पण के लिए आते हैं। सिंह दरवाजा मंदिर परिसर का प्रमुख प्रवेश द्वार है, जो सदियों से इस धाम की पहचान बना हुआ है।
इतिहासकारों का मानना है कि ऐसे पुरातन ढांचों का संरक्षण न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी आवश्यक है।

भविष्य की स्थिति अस्पष्ट
फिलहाल 900 करोड़ के इस कॉरिडोर प्रोजेक्ट का भविष्य स्थानीय जनता की राय और केंद्र सरकार के अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा। सिंह दरवाजा को लेकर विरोध जारी है, और इस बीच मंदिर की खंडित मूर्ति का मुद्दा भी चर्चा में बना हुआ है।
सांसद निशिकांत दुबे के बयान से स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा न सिर्फ धार्मिक, बल्कि राजनीतिक रूप से भी गर्म रहने वाला है।

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के कॉरिडोर निर्माण की योजना, सिंह दरवाजा का संरक्षण, और खंडित मां काली की मूर्ति – ये तीनों मुद्दे फिलहाल देवघर और आसपास के इलाके में बहस का केंद्र बने हुए हैं।
जहां एक ओर विकास और सुविधाओं के नाम पर बदलाव की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर विरासत और परंपरा को बचाने की आवाज भी बुलंद हो रही है। सांसद निशिकांत दुबे का यह ताजा बयान इस बहस को और तेज कर सकता है।

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