पटना AIIMS हॉस्टल में डॉक्टर ने की आत्महत्या: एनेस्थीसिया इंजेक्शन से ली अंतिम सांस, मेडिकल सिस्टम पर उठे सवाल

पटना AIIMS हॉस्टल में डॉक्टर ने की आत्महत्या: एनेस्थीसिया इंजेक्शन से ली अंतिम सांस, मेडिकल सिस्टम पर उठे सवाल

पटना, 18 जुलाई।
देश के प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों में से एक पटना AIIMS शुक्रवार रात एक हृदयविदारक खबर का गवाह बना। संस्थान के एमडी फर्स्ट ईयर के छात्र, 26 वर्षीय डॉ. यजुवेंद्र साहु ने अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि उन्होंने बेहोशी की दवा यानी एनेस्थीसिया के इंजेक्शन का इस्तेमाल कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

डॉ. यजुवेंद्र मूल रूप से ओडिशा के निवासी थे और जनवरी 2025 में ही AIIMS पटना में दाखिला लिया था। वे प्रतिभाशाली छात्र माने जाते थे। उनकी असामयिक मौत ने न केवल संस्थान, बल्कि पूरे मेडिकल समुदाय को झकझोर कर रख दिया है।
शनिवार सुबह जब उनके कमरे का दरवाजा देर तक नहीं खुला, तो उनके रूममेट और अन्य छात्रों को संदेह हुआ। दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बावजूद अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर AIIMS प्रशासन को सूचना दी गई। तुरंत फुलवारीशरीफ थाना पुलिस को बुलाया गया। पुलिस की मौजूदगी में जब दरवाजा तोड़ा गया, तो कमरे का दृश्य बेहद दुखद था—यजुवेंद्र का शरीर ठंडा हो चुका था और पास में इंजेक्शन की खाली शीशियां पड़ी थीं।
फॉरेंसिक जांच और पोस्टमॉर्टम
पुलिस ने घटनास्थल से प्राथमिक सबूत जुटाए और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। फॉरेंसिक टीम यह जांच कर रही है कि इस्तेमाल की गई दवा कौन-सी थी, और क्या यह मामला स्पष्ट आत्महत्या का है या इसके पीछे कोई अन्य पहलू छिपा है।

AIIMS प्रशासन ने भी इस मामले में हर संभव सहयोग की बात कही है और मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए किसी भी निष्कर्ष पर जल्दबाज़ी से पहुंचने से बचने की अपील की है।
डॉ. यजुवेंद्र: एक होनहार छात्र
यजुवेंद्र साहु मेडिकल क्षेत्र में एक उज्ज्वल भविष्य की कल्पना लिए AIIMS जैसे संस्थान में दाखिल हुए थे। वे स्वभाव से शांत और पढ़ाई में अत्यंत गंभीर बताए जाते हैं। उनके सहपाठियों ने उन्हें मेहनती और मददगार छात्र बताया। इस तरह का निर्णय लेना उनके लिए असामान्य माना जा रहा है।

हालांकि, उनके मानसिक स्वास्थ्य या किसी व्यक्तिगत समस्या के बारे में अब तक कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। पुलिस और प्रशासन दोनों ही उनके मोबाइल, डायरी और अन्य डिजिटल साक्ष्यों की भी जांच कर रहे हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर गहराते सवाल
यह घटना एक बार फिर मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल खड़े करती है। यह पहला मामला नहीं है जब किसी मेडिकल छात्र ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया हो। अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, लंबा और कठिन पाठ्यक्रम, नींद की कमी, सामाजिक अलगाव और पेशेवर असुरक्षा जैसे कई कारक छात्रों को भीतर से तोड़ देते हैं।

AIIMS पटना प्रशासन ने घटना के बाद छात्रों के लिए काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की विशेष व्यवस्था की घोषणा की है। मनोचिकित्सकों की एक टीम छात्रों से व्यक्तिगत और सामूहिक बातचीत कर रही है ताकि कोई और छात्र अकेलेपन का शिकार न बने।

छात्रों की प्रतिक्रिया: ‘ये सिर्फ एक मौत नहीं है’
घटना के बाद पूरे AIIMS परिसर में मातम पसरा हुआ है। छात्रों ने यह मांग की है कि संस्थान में नियमित मानसिक स्वास्थ्य जांच, स्ट्रेस मैनेजमेंट वर्कशॉप और ओपन हेल्पलाइन नंबर की व्यवस्था की जाए।
एक छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह सिर्फ यजुवेंद्र की मौत नहीं है, यह पूरे सिस्टम की नाकामी है जो हमें मशीन बना देता है, इंसान नहीं रहने देता।”
मेडिकल एजुकेशन सिस्टम को चेतावनी
डॉ. यजुवेंद्र साहु की आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, यह भारतीय मेडिकल एजुकेशन सिस्टम के लिए एक गहरी चेतावनी है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी संस्थानों में जरूरी जागरूकता और समर्थन का अभाव है। कई बार छात्र अपने मन की बात कहने से डरते हैं, समाज की अपेक्षाएं और पारिवारिक दबाव उन्हें मौन बना देता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान: मेडिकल कॉलेजों में नियमित सत्र, ओपन हेल्पडेस्क और विशेषज्ञों की नियुक्ति ज़रूरी है
फैकल्टी की जिम्मेदारी: शिक्षकों को छात्रों के व्यवहार में आए बदलावों पर सतर्क रहना चाहिए।
छात्रों के लिए ‘सेफ स्पेस’: जहां वे बिना किसी भय के अपनी बातें साझा कर सकें।
पॉलिसी स्तर पर बदलाव: सरकार और मेडिकल काउंसिल को इस दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे।

डॉ. यजुवेंद्र साहु की मौत न सिर्फ उनके परिवार, दोस्तों और शिक्षकों के लिए एक अपूरणीय क्षति है, बल्कि यह पूरे मेडिकल सिस्टम को झकझोरने वाली घटना है। जब तक हम मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व नहीं देंगे जितना अकादमिक प्रदर्शन को देते हैं, तब तक ऐसे हादसे रुकने की संभावना कम ही है।

यह समय है खुद से यह सवाल पूछने का: क्या हम अपने डॉक्टरों को ही जीने की पूरी आज़ादी दे पा रहे हैं?

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