राजनेता जेल में बैठकर सचिवालय नहीं चला सकते’: पूर्व Solicitor General हरीश साल्वे ने 130वें संविधान संशोधन विधेयक का समर्थन किया”

कांग्रेस के वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व Solicitor General ऑफ इंडिया, हरीश साल्वे ने हाल ही में पेश किए गए संसद में संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025 का समर्थन करते हुए कहा है कि “राजनेता जेल से कार्यालय नहीं चला सकते” – यह संवादात्मक टिप्पणी यह स्पष्ट करती है कि सार्वजनिक कार्यालय व्यक्तिगत अधिकार का विषय नहीं है, बल्कि एक सार्वजनिक उत्तरदायित्व है।

1. विधेयक क्या कहता है?

यह विधेयक 20 अगस्त, 2025 को लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसे Joint Parliamentary Committee (JPC) को भेज दिया गया है जो इसकी विस्तृत समीक्षा करेगा।

यदि पीएम, सीएम अथवा अन्य मंत्री किसी गंभीर अपराध (जिसमें 5 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है) में गिरफ्तार होकर लगातार 30 दिनों तक जेल में रहे, तो:

प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा; यदि ऐसा नहीं किया, तो वह पद से स्वतः हटा दिया जाएगा।

अन्य मंत्रियों को राष्ट्रपति या राज्यपाल के माध्यम से हटाया जा सकता है, अगर 31वें दिन तक संबंधित PM/CM ने सलाह नहीं दी।

पुनर्नियुक्ति की संभावना: एक बार रिहा होने पर, यह व्यक्ति पुन: पद पा सकता है – अर्थात् न्यायोचित दोषसिद्धि तक पुनर्नियुक्ति संभव है।

2. हरीश साल्वे का दृष्टिकोण

आर्थिक विश्व नेटवर्क (Republic World) को दिए गए इंटरव्यू में साल्वे ने कहा, “Leaders opposing this think, ‘I have earned this office… why should I leave the office?’” इस टिप्पणी से उन्होंने राजनेताओं की उत्तरदायित्वहीनता पर जोर डाला।

उन्होंने Hawala डायरी मामला उद्धृत करते हुए कहा कि उस समय LK Advani ने खुद बगैर दोषसिद्धि के पद छोड़ा था, लेकिन दूसरी ओर Lalu Prasad Yadav जेल में रहते हुए पत्नी के माध्यम से CM कार्यालय चला रहे थे – इसे “लोकतंत्र का दुरुपयोग” बताया।

साल्वे का मानना है कि ऐसी स्थिति में जनता का विश्वास कमजोर होता है; यदि कोई अधिकारिक पद रखते हुए जेल में है, तो सार्वजनिक विश्वास और संवैधानिक मर्यादा टूट जाती है।

3. विपक्ष का आरोप और तर्क

ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी, प्रियंका गांधी, अभिषेक मनु सिंहवी जैसे नेताओं ने विधेयक को “ड्रेकोनियन”, “अखंड लोकतंत्र का उल्लंघन” और फर्जी आरोपों का राजनीतिक हथियार बताया।

एम.के. स्टालिन ने इसे “डिक्टेटरशिप की ओर एक क़दम” करार दिया, और कहा कि विधेयक निर्दोषता की वैधानिक धारणाओं को खत्म कर रहा है।

पिनारायि विजयन ने इसे “neo-fascist strategy” करार देते हुए कहा कि विधेयक उन प्रदेशों की सरकारों को अस्थिर करने की साजिश है जहाँ भाजपा नहीं अघ्क्षित रूप से सत्ता में है।

TMC ने JPC की प्रक्रिया को “farce” कहा और इस समिति में नामांकन से इनकार कर दिया।

4. विधेयक का राजनीतिक और संवैधानिक महत्व

यह विधेयक संवैधानिक विश्वास और सार्वजनिक नैतिकता की बहाली का यत्न है, लेकिन यह राजनीतिक उपयोगिता के लिए भी प्रयोगात्मक जाँच जैसा प्रतीत होता है। JPC में भेजने का मतलब ही एक रणनीतिक राजनीतिक मूव है।

Research के अनुसार, राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा मंत्रियों की बर्खास्तगी सुनियोजित होगी, और पुनर्नियुक्ति की भी व्यवस्था है, जिससे संविधान की संभावनाओं में बदलाव की झलक मिलती है।

हरीश साल्वे का कहना है कि “office sacred trust है, personal entitlement नहीं” – यह भाषण स्पष्ट रूप से इस विधेयक के पीछे के नैतिक आधार को रेखांकित करता है। हालांकि, विपक्ष का स्टैंड भी संप्रभुता और कोर्ट की स्वायत्तता का रक्षण है। इस संघर्ष का नतीजा यह है कि लोकतंत्र बनाम राजनीतिक रणनीति की लड़ाई संसद और न्यायिक स्तर पर लंबी चलेगी।

  • Related Posts

    अनिल अंबानी के घर पर CBI की छापेमारी, 17,000 करोड़ के बैंक फ्रॉड केस में दर्ज हुई FIR

    ContentsFIR दर्ज, बैंकों के कंसोर्टियम से लिया गया लोनकिन बैंकों का पैसा फंसा?अनिल अंबानी और रिलायंस ग्रुप की मुश्किलेंCBI की छापेमारी की रणनीतिअनिल अंबानी की प्रतिक्रियाबैंकिंग सेक्टर पर असरक्या है…

    गणेश चतुर्थी 2025: पूजा में अपनाएं ये वास्तु नियम, घर में आएगी सुख-समृद्धि और दूर होंगी जीवन की बाधाएं।

    Contentsगणेश चतुर्थी का महत्वक्यों जरूरी है गणेश पूजा में वास्तु का पालन?गणेश चतुर्थी पूजा में वास्तु के प्रमुख नियम1. मूर्ति की स्थापना की दिशा2. मूर्ति का चयन3. पूजा स्थल की…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *