न हाथ न पैर, BA की डिग्री लिए रोजगार की तलाश में गढ़वा से CM आवास पहुंचा यह शख्स।

रांची। झारखंड की राजधानी रांची में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां गढ़वा जिले के रहने वाले एक दिव्यांग युवक ने अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाने के लिए सीएम आवास का रुख किया। इस युवक के न तो हाथ हैं और न ही पैर, बावजूद इसके उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर स्नातक (BA) की डिग्री हासिल की है। अब वह रोजगार की तलाश में भटक रहा है और सरकार से नौकरी देने की गुहार लगा रहा है। यह घटना न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज में दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशीलता की कमी को भी उजागर करती है।

संघर्ष की मिसाल बना गढ़वा का बेटा

गढ़वा जिले के एक छोटे से गांव से आने वाले इस युवक का जीवन बेहद संघर्षमय रहा है। जन्म से ही हाथ-पैर न होने के बावजूद उसने हार नहीं मानी। अपने परिजनों और समाज के ताने-बाने के बीच उसने पढ़ाई जारी रखी और स्नातक की पढ़ाई पूरी की। डिग्री लेने के बाद उसने उम्मीद जताई थी कि सरकार उसकी योग्यता और हौसले को देखते हुए उसे रोजगार उपलब्ध कराएगी। लेकिन कई महीनों तक विभागों के चक्कर काटने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली।

सीएम आवास तक पहुंचा फरियादी

आखिरकार, हताश होकर उसने झारखंड के मुख्यमंत्री आवास का रुख किया। उसके इस कदम ने न केवल वहां मौजूद सुरक्षा बल और अधिकारियों का ध्यान खींचा, बल्कि मीडिया का फोकस भी इस ओर गया। युवक ने बताया कि वह चाहता है कि सरकार उसकी योग्यता को देखते हुए कोई सम्मानजनक नौकरी दे, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके और परिवार का सहारा बन पाए।

सरकार और समाज के लिए सवाल

यह घटना झारखंड सरकार के दिव्यांग कल्याण और रोजगार योजनाओं पर भी सवाल खड़े करती है। राज्य में दिव्यांगजनों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं, जिनका उद्देश्य उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना है। लेकिन अगर एक पढ़ा-लिखा दिव्यांग युवक अपनी डिग्री के बावजूद बेरोजगार घूम रहा है, तो यह योजनाओं की विफलता को दर्शाता है। समाज को भी यह सोचना होगा कि दिव्यांगजनों को सहानुभूति नहीं बल्कि अवसर देने की जरूरत है।

क्या कहती है सरकारी नीति?

झारखंड सरकार के अनुसार, राज्य में दिव्यांगजनों के लिए 4% आरक्षण का प्रावधान है। साथ ही, कई प्रकार की स्कॉलरशिप और आर्थिक सहायता योजनाएं भी उपलब्ध हैं। लेकिन जमीनी हकीकत अक्सर इन नीतियों से मेल नहीं खाती। इस मामले में युवक का कहना है कि उसने कई बार आवेदन किया, लेकिन हर बार या तो फाइलें लंबित रह गईं या प्रक्रिया में अनदेखी हुई।

अब क्या करेगा सरकार?

मामले के मीडिया में आने के बाद सीएम कार्यालय ने युवक से बातचीत की और उसे आश्वासन दिया कि उसके मामले की जांच कराई जाएगी। अधिकारियों का कहना है कि दिव्यांगजनों को उनके हक का रोजगार दिलाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि इस युवक को सिर्फ रोजगार ही नहीं बल्कि उसके संघर्ष को देखते हुए प्रेरणा स्रोत के रूप में भी प्रस्तुत किया जाए।

संदेश और सबक

गढ़वा के इस युवक की कहानी हमें यह सिखाती है कि शारीरिक अक्षमता के बावजूद हौसले बुलंद हों तो कुछ भी संभव है। लेकिन इसके साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी योजनाओं के कागजों से निकलकर वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचना ही सबसे बड़ा काम है। यदि सरकार और समाज मिलकर दिव्यांगजनों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए, तो ऐसे किसी भी प्रतिभाशाली और मेहनती व्यक्ति को संघर्ष के बजाय सम्मानजनक जीवन मिल सकता है।

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